शुक्र है, मान गए धरती के ‘भगवान’

भटनेर पोस्ट न्यूज. जयपुर.
एक-दो दिन नहीं, पूरे 16 दिन। राजस्थान में ‘धरती के भगवान’ माने जाने वाले डॉक्टर्स मरीजों से दूरी बनाकर बैठे थे। यूं कहिए रूठे हुए थे। मरीजों का कोई दोष नहीं था। डॉक्टरों का गुस्सा सरकार पर था लेकिन भुगत रही थी जनता। यानी डॉक्टरों के लिए मरीज। आखिरकार, दोनों पक्ष राजी हो गए। समझौता हो गया। अब बुधवार से प्राइवेट हॉस्पीटल्स के बंद दरवाजे मरीजों के लिए खुल जाएंगे। डॉक्टर्स ने औपचारिक तौर पर हड़ताल खत्म होने की सूचना दी है और राज्य सरकार ने भी। दोनों तरफ संतुष्टि दिखाई जा रही है। फिर भी सवाल कई हैं, जिनका जवाब समय मांगेगा। जरूर मांगेगा। डॉक्टर्स और सरकार से भी। खैर। फिलहाल आप यह समझिए कि जो डॉक्टर्स राइट टू हेल्थ बिल को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए थे, वह लागू होगा या नहीं। इसका जवाब सीधा सा है, राजस्थान के प्रत्येक नागरिक को अब राइट टू हेल्थ मिल गया है। इसके साथ ही राजस्थान पूरे देश का पहला और एकमात्र राज्य बन गया है जहां पर प्रत्येक नागरिक की सेहत की फिक्र सरकार करेगी। मरीजों को राहत दी जाएगी।
अब बर्फ कैसे पिघली, इस पर आते हैं। दरअसल, मंगलवार को डॉक्टर्स और सरकार के बीच आठ मांगों पर समझौता हो गया है। मुख्य सचिव उषा शर्मा से मीटिंग के बाद इस पर फैसला लिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सेक्रेटरी प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स सोसाइटी डॉ विजय कपूर ने बताया कि सुबह 10.30 बजे डॉक्टरों का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्य सचिव से वार्ता के लिए उनके निवास पर पहुंचा था। सरकार ने हमारी मांगें मान ली है। हम सरकार के ड्रॉफ्ट से संतुष्ट है। समझौते के पहले डॉक्टर्स ने महारैली निकाली। पिछले 10 दिन में डॉक्टर्स का ये दूसरा शक्ति प्रदर्शन था। इस रैली के बाद डॉक्टर्स का डेलिगेशन मुख्य सचिव से मिला और अपना आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया। इससे पहले 27 मार्च को भी बड़ी रैली जयपुर में निकाली गई थी।
समझौते के तहत 50 बिस्तरों से कम वाले निजी मल्टी स्पेशियलिटी अस्पतालों को आरटीएच से बाहर कर दिया है। सभी निजी अस्पतालों की स्थापना सरकार से बिना किसी सुविधा के हुई है और रियायती दर पर बिल्डिंग को भी आरटीएच अधिनियम से बाहर रखा जाएगा। अब निजी मेडिकल कॉलेज अस्पताल, पीपीपी मोड पर बने अस्पताल, सरकार से मुफ्त या रियायती दरों पर जमीन लेने के बाद स्थापित अस्पताल (प्रति उनके अनुबंध की शर्तें), अस्पताल ट्रस्टों द्वारा चलाए जाते हैं (भूमि और बिल्डिंग के रूप में सरकार द्वारा वित्तपोषित) आरटीएच के दायरे में आएंगे। राजस्थान के विभिन्न स्थानों पर बने अस्पतालों को कोटा मॉडल के आधार पर नियमित करने पर विचार किया जाएगा। आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए पुलिस केस और अन्य मामले वापस लिए जाएंगे। अस्पतालों के लिए लाइसेंस और अन्य स्वीकृतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम होगा। फायर एनओसी हर 5 साल में रीन्यू करवाई जाएगी। नियमों में कोई और परिवर्तन हो तो आईएमए के दो प्रतिनिधियों के परामर्श के बाद किया जाएगा। समझौते के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर कहा, ‘मुझे खुशी है कि राइट टू हेल्थ पर सरकार व डॉक्टर्स के बीच अंततः सहमति बनी और राजस्थान राइट टू हेल्थ लागू करने वाला देश का पहला राज्य बना है। मुझे उम्मीद है कि आगे भी डॉक्टर-पेशेंट रिलेशनशिप पहले जैसी रहेगी।’ 

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