डॉ. नीतीश कुमार वशिष्ठ.
उत्साह के बिना जीवन नीरस हो जाता है। हमारी जिंदगी को उत्साह से लबरेज रखने के लिए उत्सवों का प्रावधान रखा गया। पांच दिवसीय दीपोत्सव इनमें से प्रमुख है। आइए, जानते हैं दीपोत्सव के मायने…
धनतेरस: यह पहला दिन है। यह सेहत से जुड़ा पर्व है। कहते हैं, ‘पहला सुख निरोगी काया’। बताते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे। उन्हें आयुर्वेदाचार्य कहा जाता है। कलश से बहुमूल्य रत्न-आभूषण आदि भी निकले थे। लिहाजा, धनतेरस न सिर्फ भगवान धन्वंतरि की जयंती के रूप में मनाते हैं बल्कि इस दिन बर्तन और स्वर्ण आभूषण खरीदने की परंपरा भी है।
रूप चतुर्दशी: सौंदर्यबोध जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। वर्ष का यह खास दिवस सजने और संवरने के लिए है। मान्यता है कि सूर्योदय से पहले उबटन लगाना शुभ रहता है। इससे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
दिवाली: दीपोत्सव का प्रमुख दिवस। मां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। धन बेहद जरूरी है, जीवन के लिए। सुख-सुविधाएं हासिल करने का यही साधन है। इसलिए मां लक्ष्मी का विशेष पूजन होता है। एक मान्यता और है। कहा जाता है मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम इसी दिन रावण का संहार कर अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की खुशी और स्वागत में अयोध्यावासियों ने घरों और सड़कों के किनारे दीए जलाए थे।
गोवर्धन पूजा: हमारे देश में गोधन या पशु पालन की परंपरा रही है। जीवन-यापन में गाय, बैल आदि का बड़ा महत्व रहा है। इस दिन पालतू गाय, बैल आदि को नहाया जाता है। तेल से मालिश की जाती है। उन्हें औषधीय पदार्थ खिलाने की भी परंपरा है। मान्यता है कि जब नाराज होकर इंद्रदेव ने गोकुल को डुबोने का प्र्रयास किया तो योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था और गोकुलवासियों की रक्षा की थी। इसके बाद ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।
भाईदूज: भाई-बहन का रिश्ता अटूट और स्नेह के बंधन से जुड़ा है। बहनें अपने भाई की लंबी आयु के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। भाई को अपने घर बुलाती हैं, माथे पर टीका करती हैं। इस तरह दीपोत्सव का यह पांच दिवसीय आयोजन पूर्ण हो जाता है।