भटनेर पोस्ट ब्यूरो. नई दिल्ली.
कुछ कहने के लिए मुंह खोलना जरूरी नहीं, चुप्पी ही बहुत है। चुप्पी बेहतर मानी जाती है लेकिन हर जगह नहीं। खासकर जब ‘सुलह’ होने की खबर ‘फैलाई’ जा रही हो। राजस्थान की राजनीति अमूमन कांग्रेस और बीजेपी के बीच फंसी रहती है। इस बार स्थिति अलग है। आपसी कलह का पहिया ऐसा घूमा कि कांग्रेस भी पिस रही है और बीजेपी भी। यह दीगर बात है कि मीडिया में मोदी-राजे विवाद से अधिक गहलोत-पायलट अनबन की चर्चा होती है। खैर।
कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत-पायलट के बीच मतभेद की बात को स्वीकार किया है। महासचिव वेणुगोपाल चार घंटे तक चली मैराथन मीटिंग के बाद गहलोत-पायलट के साथ मीडिया के सामने आए। राजस्थान कांग्रेस में ‘सब कुछ ठीक’ होने की खबर दी। हालांकि अगल-बगल खड़े मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की ‘मुस्कुराहट’ साफ बता रही थी कि अभी बहुत कुछ बाकी है। वेणुगोपाल ने यह नहीं बताया कि किन मसलों पर सुलह हुई है। बकौल वेणुगोपाल ‘कांग्रेस में सब कुछ ठीक है। गहलोत और पायलट मिलकर चुनाव लड़ेंगे और राजस्थान में फिर कांग्रेस की सरकार बनाएंगे।’
वेणुगोपाल ने यह नहीं बताया कि मौजूदा सरकार को ‘गिराने’ के लिए कोई कसर नहीं छोड़ने वाले पायलट अगली बार कांग्रेस की सरकार बनाने में क्यों मददगार होंगे? क्या, आलाकमान ने उनकी एकमात्र ‘इच्छा’ मानने की रजामंदी दे दी है ? मुख्यमंत्री बनने की इच्छा। सचिन इसके अलावा किसी बात पर राजी होने से रहे। अगर इतने ही संतोषी होते तो डिप्टी सीएम और पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पद पर रहते हुए बीजेपी से हाथ क्यों मिलाते?
गहलोत भी अब आर-पार के मूड में लगते हैं। पहली बार उन्होंने आलाकमान को चुनौती देने में हिचिकिचाहट महसूस नहीं की। वे सचिन पायलट की राजनीतिक ‘शक्ति’ को भलीभांति जानते हैं। इसलिए वे आलाकमान के सामने ‘समर्पण’ करने में सहज महसूस नहीं कर रहे। बहरहाल, सुलह का फार्मूला सार्वजनिक नहीं हुआ है। दोनों असंतुष्ट नेताओं ने ‘चुप्पी’ नहीं तोड़ी है। ऐसे में ‘सुलह’ की परिणति के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। फिर भी, आलाकमान की सक्रियता और एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाने वाले दोनों नेताओं का साथ बैठकर चर्चा करना कांग्रेस के लिए सुखद संकेत है, इससे अधिक कुछ नहीं। परिणाम को लेकर इंतजार के अलावा कोई चारा नहीं।