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पत्र में टैक्स बार एसोसिएशन अध्यक्ष रोहित अग्रवाल ने बताया कि राज्य जी.एस.टी. द्वारा करदाता द्वारा नये जी.एस.टी. पंजीयन लेने को राज्य स्तर पर लागू किया गया है जो कि पूर्व में सम्बंधित क्षेत्राधिकार के वाणिज्य कर अधिकारी द्वारा दिया जाता था। राज्य स्तर पर पंजीयन प्रक्रिया लागू होने से अनावश्यक देरी हो रही है। नए पंजीयन में अनावश्यक त्रुटियां निकाली जाती हैं, जिनका जबाव देने पर भी नए पंजीयन को अस्वीकार कर दिया जाता है और किसी तरह का कोई हेल्प डेस्क नं. भी विभाग द्वारा जारी नहीं किया गया है। इसलिए नए जी.एस.टी. पंजीयन प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है।
रोहित अग्रवाल कहते हैं कि जी.एस.टी. कर प्रणाली में विभाग द्वारा जो नोटिस दिए जा रहें है वे जी.एस.टी.एन. पोर्टल पर दिए जाते हैं। कई बार नोटिस करदाता की ई-मेल पर भी प्राप्त नहीं होता है और बहुत से व्यापारियांे द्वारा ई मेल का समय समय पर संचालन भी नहीं किया जाता है। जिस कारण वे जबाव नहीं दे पाते। राज्य कर अधिकारियों द्वारा उन करदाताओं का एक तरफा फैैसला किया जा रहा है और करदाता की अनावश्यक रूप से मांग सृजित हो रही है। इस तरह की प्रक्रिया में करदाता को एक नोटिस डाक के माध्यम से भी भेजा जाना चाहिए ताकि उसे उचित न्याय मिल सके। पत्र में बताया कि राज्य कर विभाग, हनुमानगढ द्वारा किए गए फैसलों की अपील करदाता द्वारा बीकानेर में की जाती है जोकि हनुमानगढ से लगभग 270 कि.मी. की दूरी है। करदाता को अपील के लिए बीकानेर जाना पडता है जिससे करदाता के अनावश्यक समय व धन लगता है। ऐसे में अपीलीय प्राधिकारी का माह मे दो दिन हनुमानगढ के कर विभाग में कैम्प होना चाहिए जिससे करदाता को सुगम व सस्ता न्याय मिल सके।
पत्र के मुताबिक, जब जी.एस.टी. लागू हुआ था उस समय हर माह जिलास्तरीय जी.एस.टी. बैठक होती थी। जिसमें उपायुक्त द्वारा जिलास्तरीय जी.एस.टी. में आ रही परेशानियों के निराकरण के लिए सुझाव लिए जाते थे और उन्हें जयपुर कार्यालय में भिजवाये जाते थे। अब किसी तरह की कोई बैठक नहीं की जाती।
टैक्स बार एसोसिएशन के मुताबिक, करदाता द्वारा कर का भुगतान तो समय पर कर दिया जाता है परन्तु किसी कारण से 3बी विवरणी में विलम्ब होने पर उसे ब्याज का भुगतान करना पडता है। जब करदाता द्वारा कर भर दिया गया है और जो विवरणी विलम्ब से भरी जाती है उस पर शास्ती भर दी जाती है तो उस पर ब्याज लगना न्यायोचित नहीं है। कोरोना के समय जब 24.06.2020 को नोटिफिकेशन जारी कर राहत दी गई थी तब भी कर का भुगतान करवाया गया था और विवरणी बाद में दाखिल की गई थी उस समय पर भी जिन करदाताओं द्वारा कर का भुगतान किया गया था उनसे ब्याज नहीं लिया गया था तो अब भी कर का भुगतान होने के बाद भी ब्याज लेना गलत है। इसलिए इसमें परिवर्तन कर इसे तार्किक बनाया जाना चाहिए।
अध्यक्ष रोहित अग्रवाल व सचिव जैनेंद्र कोचर के मुताबिक, जी.एस.टी में एमनेस्टी स्कीम लाई गई थी जिसके तहत जिन करदाताओं द्वारा विवरणी दाखिल नहीं की गई उन्हें छूट दी गई थी लेकिन तब तक इन्पुट क्रेडिट लेने की तिथि जो कि जीएसटी कानून की धारा 16(4) में दी गई है वह समाप्त हो गई थी। अब उन करदाताओं को इन्पुट क्रेडिट मय ब्याज जमा करवाने की मॉग कायम हो रही है। जो दोहरा कररोपण हैं क्योकि एक बार कर विक्रेता को करदाता द्वारा कर जमा करवा दिया गया है और विक्रेता द्वारा कर का भुगतान कर दिया गया है। फिर उससे कर लेना प्राकृतिक न्याय नहीं है। इस समस्या के व्यवहारिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए इस तरह के करदाता को राहत प्रदान करने की आवश्यकता है। कर प्रणाली करदाता के लिए जितनी सुगम होगी उतना ही कर अधिक आएगा।