“उगना” बनकर शिव ने की थी कविवर की ” चाकरी’

डिजिटल डेस्क भटनेर पोस्ट. मधुबनी.
क्या आपको पता है देवाधिदेव भोलेनाथ ने एक महान कवि के सुमधुर भजनों से विभोर होकर उनके यहां नौकरी की थी ? नहीं। तो कोई बात नहीं। हम आपको बताते हैं, विस्तार से। दरअसल, बिहार का मिथिलांचल धर्म, कर्मकाण्ड और समृद्ध संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। इतिहास और पौरोणिक कथाओं से लबालब है। लेकिन आज हम आपको बताएंगे मधुबनी जिले के भवानीपुर गांव स्थित उगना महादेव मंदिर के बारे में। जिसका संबंध मैथिल कोकिल कवि विद्यापति  और ‘उगना’ यानी महादेव के प्रगाढ़ संबंधों का साक्ष्य है। जी हां, हम उगना महादेव मंदिर की बात कर रहे हैं। लोकमान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव ने स्वयं मैथिली भाषा के महाकवि विद्यापति के घर नौकरी की थी। 

महाकवि विद्यापति हिंदी साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख कवियों में से एक हैं, जिन्हें मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाना जाता हैं। वे भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे। उन्होंने भगवान शिव पर अनेकानेक गीतों की रचना की जिसे मैथिली में ‘नचारी’ कहते हैं। मान्यताओं के मुताबिक, देवाधिदेव भोलेनाथ विद्यापति की भक्ति व रचनाओं से बेहद प्रसन्न होकर स्वयं एक दिन वेश बदलकर उनके पास चले आए थे। साथ रहने के लिए भगवान शिव विद्यापति के घर नौकर तक बनने के लिए तैयार थे। उन्होंने अपना नाम ‘उगना’ बताया था। दरअसल कवि विद्यापति आर्थिक रूप से सबल नहीं थे, इसलिए उन्होंने उगना यानि भगवान शिव को नौकरी पर रखने से पहले मना कर दिया। मगर फिर शिवजी के कहने पर ही सिर्फ दो वक्त के भोजन पर उन्हें रखने के लिए विद्यापति तैयार हो गए थे। ऐसी कथा है कि जब एक दिन विद्यापति उगना के साथ गंगा स्नान करने जा रहे थे, तो तेज़ गर्मी व धूप से विद्यापति का गला सूखने लगा, मगर आस-पास जल नहीं था। इस पर साथ चल रहे विद्यापति ने उगना यानी महादेव से जल लाने के लिए कहा। तब भगवान शंकर ने थोड़ी दूर जाकर अपनी जटा खोली व एक लोटा गंगाजल ले आए। 

जल पीते ही विद्यापति को गंगाजल का स्वाद आया, उन्होंने सोचा कि इस वन के बीच यह जल कहां से आया। इसके बाद उन्हें संदेह हुआ। पहले भी उगना की गतिविधियों पर उन्हें शक हुआ था कि यह व्यक्ति कोई चमत्कारिक पुरुष तो नहीं। कविवर विद्यापति ने विनयपूर्वक उगना से पूछा और अपना असली रूप दिखाने को कहा तो महादेव ने उन्हें अपना वास्तविक रूप दिखाया। अब स्थिति बदल गई थी। ‘उगना’ की असलियत सामने आ चुकी थी। विद्यापति के लिए अब ‘उगना’ नौकर नहीं थे। विद्यापति के मन में पश्चाताप था कि उन्होंने महादेव से सेवा करवाई। उधर, भोलेनाथ विद्यापति का साथ छोड़ने को तैयार नहीं थे। उन्होंने एक शर्त रखी कि विद्यापति इस रहस्य का राज नहीं खोलेंगे और जिस दिन खोलेंगे, वे यानी शिव उन्हें छोड़कर चले जाएंगे। विद्यापति ने भगवान शिव की सारी बातें मान लीं, लेकिन एक दिन उगना द्वारा किसी गलती पर कवि की पत्नी सुधीरा ने उगना यानी शिवजी को पीटने के लिए चूल्हे की जलती लकड़ी उठा ली। संयोग से उसी वक्त विद्यापति वहां पहुंच गए और वे व्याकुल होकर बोल पड़े? ‘अरे! ये क्या कर रही हो, यह तो साक्षात शिव हैं!’ विद्यापति के मुख से जैसे ही यह बात निकली सुधीरा मुर्छित होकर गिर पड़ीं और भगवान शिव अंर्तध्यान हो गए।

बताते हैं, ‘उगना’ से बिछोह’ विद्यापति सह नहीं पाए। वे वन-वन भटकते रहे। उनकी मनोदशा बिगड़ सी गई। इसी दौरान उन्होंने ‘उगना वियोग’ पर कई अमर रचनाएं लिखीं जिन्हें सुनकर आज भी मिथिलांचल में शिवभक्त अपनी आंखों से बहती अश्रुधारा को रोक नहीं पाते। इन नचारियों यानी भजनों में शिव की स्तुति है जिसे सुनकर शिवभक्त तृप्ति महसूस करते हैं। उधर, अपने प्रिय भक्त की ऐसी दशा देखकर भोलेनाथ पुनः विद्यापति के समक्ष प्रकट हुए और उन्हें समझाते हुए कहा, ‘हे विद्यापति! अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। परंतु उगना के रूप में जो तुम्हारे साथ रहा उसके प्रतीक चिन्ह के रूप में अब मैं शिवलिंग के रूप में तुम्हारे पास विराजमान रहूंगा।’ उसके बाद से ही उस स्थान यानी भवानीपुर गांव में स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हो गया। जहां आज दिव्य मंदिर है।
मंदिर की खासियत

उगना महादेव मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए आपको छह सीढ़ियां उतरकर जाना पड़ता हैं। इसी प्रकार उज्जैन में स्थित महाकाल मंदिर में भी शिवलिंग तक पहुंचने के लिए छह सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं। उगना महादेव मंदिर का शिवलिंग तल से पांच फुट नीचे है। यहां माघ कृष्ण पक्ष में मनाया जाता नर्क निवारण चतुर्दशी पर्व काफी धूमधाम से मनता है। इस समय जो आप मंदिर देखते हैं उसका निर्माण साल 1932 में हुआ है। इसके अलावा बताया जाता है कि 1934 के भूकंप में मंदिर को कोई भी नुकसान नहीं आया था। हालांकि आज मंदिर का परिसर काफी भव्य बना दिया गया है। मुख्य मंदिर के अलावा परिसर में यज्ञशाला और संस्कारशाला भी बनाई गई है। इस मंदिर के सामने एक सुंदर सरोवर और पास में ही एक कुआं भी है। इस कुएं के बारे में ऐसी मान्यता है कि शिवजी ने यहीं से पानी निकाला था। इस कारण से काफी श्रद्धालु इसका पानी पीने के लिए यहां आते हैं।

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