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हालांकि इस बात के कई महीने बीत गए लेकिन दिव्या ने अब इस मामले में अपनी पीड़ा जाहिर की।
बकौल दिव्या मदेरणा, ‘मैंने 10 साल अपने जीवन के (एक दशक) यहाँ पर सजदे किए है। मेरी राजनीतिक पैदाइश इस दर्द और वेदना से हुई है। क्रूंदन और विरह जो नियति ने मेरे भाग्य में लिखा वही से मेरे राजनीतिक संघर्ष का आग़ाज़ हुआ। इस अभिशाप के साथ नियति ने मुझे फ़ौलाद की सलाख़ों से दोस्ताना कराया और उन सलाख़ों ने एक बेटी का किसी भी परिस्थिति में ना टूटने वाला हौसला देख वरदान दिया निडरता का, साहस का, शक्ति का, अनवरत चलने का और फ़ौलाद की तरह तटस्थ रहने का। सार्वजनिक जीवन में जिसे यह निडरता मिल जाये वह कर्तव्य पथ पर हमेशा अभिजीत है, क्योंकि मूल्यों की राजनीति ही असली व अंतिम विजय है।’
दिव्या ने कहाकि जिसकी ऐसी निष्ठुर कहानी हो वो भला शादी के बारे में सोच भी कैसे सकती है? उन्होंने हनुमान बेनीवाल को जवाब देते हुए कहाकि आप सोचिए, कि आप जेल में हों और आपकी बेटी शादी मना रही हो। कैसा फील होगा।