भटनेर पोस्ट : एक्सक्लूसिव
कांस्टेबल से किसान नेता बनने की क्या कहानी है ?
-देखो, मुझे सेना में जाने का शौक था और कमाण्डो की टेनिंग करनी थी। अब सेना में तो नहीं जा पाए लेकिन दिल्ली पुलिस में भर्ती हो गए। वहां कमाण्डो की टेनिंग हुई। मुरादाबाद में टेनिंग की। फिर बम विस्फोट निस्तारण दस्ता में पोस्टिंग करवाई। वो सिस्टम भी सीखा। और किसान आंदोलन तो शुरू से था। बचपन से परवरिश ही हुई उस माहौल में। फिर 1995 में पुलिस की नौकरी छोड़कर किसान आंदोलन से जुड़ गया पूरी तरह।
-देखो, ये जो सरकार है, जालसाजियों की सरकार है। किसान तो सीधे-सादे होते हैं। हमने कहा कि टैक्टर मार्च निकालेंगे दिल्ली में। अनुमति तो दे दी लेकिन धोखा दे दिया। सरकार धोखे के बिना रहती नहीं। बगैर जालसाजी के नहीं चलती। इस सरकार ने यह साबित कर दिया। हमको जो रूट दिए गए उन पर बैरिकेट्स लगा दिए गए। और दिल्ली के रास्ते खुले छोड़ रखे थे। इनका मकसद ये था कि असली किसान आए न और उनके लोग आकर हुड़दंग मचाएं और आंदोलन को बदनाम कर दिया जाएगा। इसका बड़ा उदाहरण है कि लाल किले पर भी उनके लोग और पुलिस ही उन्हें लेकर गए। उन्होंने पूरी तैयारी के साथ सब कुछ किया। सरकार ने स्क्रिप्ट पहले लिखकर दे दी थी कि ऐसे करना है। इनकी प्लानिंग थी झण्डे के नाम पर मुकदमा दर्ज करने की। हम तो तिरंगा को मानने वाले लोग हैं और इनका इतिहास बच्चा-बच्चा जानता है कि इन्होंने कभी तिरंगा का सम्मान किया ही नहीं। इन्होंने जालसाजी की और खुद तिरंगे का अपमान करवाया। फिर गोदी मीडिया पर दुष्प्रचार कर किसान आंदोलन के मत्थे मढ़ दिया। फिर 28 जनवरी को कहा कि इन्हें हटाओ, ये किसान नहीं आतंकवादी हैं। इस तरह सरकार ने किसानों का मनोबल इतना डाउन कर दिया कि कुछ देर के लिए लगा जैसे कोई अपराध न हो गया हो। लेकिन यह साजिश थी जो हम समझ गए। सुनने वाला कोई नहीं था। उस दिन उन्होंने आठ मोर्चे तोड़े। पुलिस के साथ सत्तारूढ़ पार्टी के गुण्डे भी थे जो बदमाशियां कर रहे थे। हमने मुकाबला किया। उन्होंने पानी का कनेक्शन काट दिया। हमने सोच लिया था, शहीद हो जाएंगे लेकिन मोर्चा नहीं छोड़ेंगे। सिक्ख समाज के सेवादारों ने तन, मन व धन से साथ दिया। उन्होंने कह दिया कि हम आपको छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। स्थिति यह थी कि वे पांच हजार की संख्या में थे और हम थे महज 148 लोग। लेकिन देश ने साथ दिया औैर उन्हें घुटना टेकने के लिए मजबूर होना पड़ा।
आप पर कांग्रेस से मिले होने व कांग्रेस से फंडिंग मिलने के भी आरोप लगे। क्या कहते हैं ?
-वहां तो किसी ने फंडिंग नहीं की। गांव वाले मदद करते थे। आटा, दाल, सब्जियां, दूध व अन्य सामान लेकर आते थे। किसी पार्टी के नेता तो वहां गया ही नहीं। अगर किसी ने आटा, दाल भिजवा दिया हो तो हम कहते नहीं लेकिन फंड तो न लिया व किसी ने दिया।
प्रधानमंत्रीजी हमेशा कहते रहे हैं कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। अब तो हो गई होगी फिर आप आंदोलन की बात क्यों करते हैं ?
-भई, ये तो झूठ बोलने वाले लोग हैं। एक नंबर के झूठे। कोई इलाज नहीं इनका। कब क्या बोल दे। झूठ बोलने में माहिर हैं। आमदमी बढ़ाने की बात करते रह गए और महंगाई बढ़ गई। आमदनी बढ़ाई तो अपने आकाओं की। गरीब, मजदूर, किसान, छोटे दुकानदार, व्यापारी सब के सब परेशान हैं महंगाई से। गैस सिलेंडर 400 का था अब 1100 रुपए है। पेटोल 70 रुपए प्रति लीटर से 115 हो गया। डीजल के दाम देख लो।
अभी आप जगह-जगह जाकर पंचायत कर रहे हैं। किसानों की समस्याओं का खाका तैयार कर रहे हैं। बड़ी और कॉमन समस्याएं क्या हैं किसानों की ?
– देखो, किसानों की सबसे बड़ी समस्या है कि उन्हें फसलों की समुचित कीमत नहीं मिल रही। हमने कहाकि आप 1969 को आधार मान कर फसलों की कीमतें तय कर दो। उस टाइम जो बाजार था, उसको आधार वर्ष मान लो। बाजार में किस वस्तु की क्या कीमत थी, फसलों के क्या दाम थे। जैसे हम गेहूं की बात करें। उस वक्त गेहूं का एमएसपी था 76 रुपए किलो। एक कर्मचारी की सेलरी थी 70 रुपए। तो एक महीने की सेलरी में वह एक क्विंटल गेहूं नहीं खरीद सकता था। सोने का भाव 10 रुपए तोला था। 30 रुपए की एक हजार ईंटें मिलती थीं। आज आप इनका मार्केट वैल्यू तय कर लो।