नवरात्रि के मायने

गोपाल झा.

मनुष्य अपने जीवन में किन अभिलाषाओं को पाने के लिए संघर्ष करता है ? इस प्रश्न का सीधा सा उत्तर है, धन, ज्ञान और शक्ति। इन्हीं से हम वैभवशाली बनते हैं। सनातन धर्म इन तीनों वैभव पर नारी शक्ति का अधिपत्य होना प्रमाणित करता है। लक्ष्मी धन की देवी हैं, सरस्वती ज्ञान और दुर्गा शक्ति स्वरूपा। नारी की महिमा का बखान करने के लिए इतना संदेश काफी है। 

 देखा जाए तो यह निर्विवाद सत्य भी है। नारी सब पर भारी है। जब भी अवसर मिलता है वह पुरुषों के सामने सर्वश्रेष्ठ होने का प्रमाण देती रहती है। शिक्षा के क्षेत्र में बेटियां किस तरह लड़कों को पटखनी दे रहीं। खेल का क्षेत्र हो या कोई अन्य। जब भी परिवार ने बेटी पर भरोसा किया, बेटियां उस पर खरी उतरी हैं, अपवाद को छोड़कर। बस, बात भरोसे पर आकर टिक जाती है। किस बात का भरोसा ? बेशक, बेटियों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों के मन में सदैव आशंका रहती है। विवाह के बाद बेटी के साथ अच्छा व्यवहार होगा भी या नहीं, माता-पिता आशंकित रहते हैं। यह कटु सत्य है, इसी वजह से लाखों बेटियों की प्रतिभाएं घुटकर दम तोड़ देती हैं। उत्पीड़न के बढ़ते मामले बेहद पीड़ादायक है।

 प्रश्न यह उठता है कि आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? कहना न होगा, नारी उत्पी़ड़न के लिए परिवार भी जिम्मेदार है। हम बात-बात पर बेटियों को टोकते हैं। उसे समाज के भयावह पहलुओं से भयभीत करते हैं लेकिन बेटों को उन बुराइयों के प्रति आगाह नहीं करते। बेटा और बेटी में यही फर्क बुराइयों को जन्म देता है। सबसे बड़ी दिक्कत है, संस्कारों का पतन। आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल लोग संस्कारों की अनदेखी कर रहे तो फिर नारी सम्मान कैसे संभव है ? कटु सत्य है, हम सनातन धर्म के नाम पर खूब राजनीति करते हैं, ढोंग करते हैं। जबकि सनातन धर्म के मूल को समझना नहीं चाहते। सचमुच, असली सनातनी कहलाने का अधिकार सिर्फ उन्हें है जो मन, कर्म और वचन से नारी के लिए प्रति उदारता, सम्मान और श्रद्धा का भाव रखते हैं। सनातन-सनातन का ढिंढ़ोरा पीटने मात्र से कोई असली सनातनी नहीं हो सकता। उसे अपने स्वभाव में सनातन के नैतिक सिद्धांत को अपनाने की भी जरूरत है।

 नवरात्रि नारी सम्मान का पर्व है। नारी के लिए प्रति श्रद्धा और सम्मान बनाए रखने के लिए स्मरण करवाने का त्यौहार है। सिर्फ नवरात्रि की शुभकामनाएं और पूजा-आराधना का कोई अर्थ नहीं, गर मन में नारी के प्रति सद्भाव न हों। पुत्र की इच्छा में पुत्रियों की हत्या महापाप है। बेटा और बेटी में अंतर करना भी महापाप की श्रेणी में ही आता है। दोनों का बराबर महत्व है। समान अवसर उपलब्ध करवाना हमारा दायित्व है।

आइए….नवरात्रि में घट स्थापना के साथ महिलाओं के प्रति सोच बदलने, उनके प्रति सम्मान का भाव विकसित करने और बेटियों के प्रति दोहरी मानसिकता त्यागने का संकल्प लेते हैं। सनानत धर्म में कहा भी गया है, जहां पर नारी का सम्मान है, वहां पर देवता निवास करते हैं। अपने घर में भला कौन नहीं चाहेगा देवता का वास हो, और वह नारी सम्मान से भी संभव है। तो फिर देर किस बात की? नारी मां है, बहन है, बेटी है, पत्नी है, और भी विविध रूप हैं नारी के। बस, हमें उनके प्रति पवित्र सोच रखने की जरूरत है। अगर हम सबके मन में यह भाव विकसित हो जाए तो नवरात्रि मनाने की सार्थकता सिद्ध हो जाएगी, वरना यह सब ढोंग है, दिखावा है, और कुछ नहीं। बहरहाल, ममतामयी जगजननी हम सबको यह भाव धारण करने की शक्ति दे। जय माताजी की।

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