…तो गहलोत की ‘मजबूरी” बन गए बलवान!

गोपाल झा.
भादरा में कांग्रेस अंतिम सांसें गिन रही है। उपेक्षित, बेबस और लाचार कांग्रेस। पूनिया का ‘बलवान’ होना ही कांग्रेस की कमजोरी का कारण बन गया। माकपा विधायक बलवान पूनिया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ‘मजबूरी’ क्या बने, भादरा में कांग्रेस की ‘कमजोरी’ जगजाहिर हो गई। कांग्रेस का झंडा उठाने के लिए मजबूत ‘हाथ’ नहीं। जो बचे हुए हैं, उनका व्यक्तिगत जनाधार नहीं। शायद, कांग्रेस आलाकमान ने अब माकपा के माध्यम से इस सीट को अपने पास रखने की रणनीति बना ली है। लेकिन यह रणनीति तो कांग्रेस की है, जो अमूमन सफल नहीं होती।
सवाल लाजिमी है, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कमजोरी क्यों बन गए विधायक बलवान पूनिया? इसके लिए आपको लौटना होगा जुलाई 2020 में। जब राजस्थान सरकार के तत्कालीन डिप्टी सीएम सचिन पायलट अपने समर्थित विधायकों के साथ बगावत पर उतर आए। गहलोत सरकार खतरे में पड़ गई। पायलट को लगा कि अब सीएम बनकर वे सत्ता का चरम सुख हासिल कर लेंगे। आलाकमान सियासी प्लेट में मुख्यमंत्री का मुकुट लाकर उनकी ताजपोशी कर देगा। उनकी मुराद पूरी हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सियासत के ‘जादूगर’ कहे जाने वाले अशोक गहलोत ने उनकी बगावत की ऐसी हवा निकाली कि पायलट का सियासी विमान क्रैश हो गया। उन्हें पैराशुट का इस्तेमाल कर जमीन पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा। डिप्टी सीएम और पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा। अब वे सिर्फ एक विधायक बन कर रह गए।
लेकिन भूली बिसरी कहानी को याद करने का मकसद यह है कि जिन विधायकों के बूते गहलोत ने अपनी सरकार बचाई थी, उनमें एक विधायक भादरा का भी था। विधायक बलवान पूनिया। तीखे तेवर वाला और जमीन से जुड़ा सामान्य परिवार का युवक बलवान पूनिया। पक्का कॉमरेड। वामपंथी विचारधारा से ओतप्रोत। बलवान पूनिया ने नंबर वन सियासी दुश्मन को मॉत देने के लिए दुश्मन नंबर टू का साथ देना उचित समझा। जी हां, वामपंथियों के लिए भाजपा दुश्मन नंबर वन मानी जाती है और कांग्रेस दुश्मन नंबर टू।
खैर। गहलोत की सरकार बच गई। लेकिन यहीं से शुरू हुआ एक अलग तरह का खेल। गहलोत अपने उन विधायकों के सामने दिल हार बैठे जिन्होंने विपरीत वक्त में उनका साथ दिया था। बलवान पूनिया इससे अलग कैसे हो सकते थे? मुख्यमंत्री जब भी विधायकों से कहते कि आप मांगते-मांगते थक जाओगे और मैं देते-देते नहीं थकूंगा तो बलवान पूनिया ने भादरा के लिए मांगने में कोई कसर नहीं छोड़ी और जबान दे बैठे गहलोत भी देने में पीछे नहीं हटे। हां, इस ‘मांगने’ और ‘देने’ के खेल में पीछे रह गए भादरा के कांग्रेसी। यहां तक निकाय और पंचायतीराज में किसको क्या बनाना है, विधायक बलवान पूनिया ही तय करने लगे। किस अधिकारी-कर्मचारी को कहां लगाना है, कांग्रेसी नहीं वामपंथी बलवान पूनिया की चलने लगी। पीछे रह गए तो वो कांग्रेसी जो 2018 में अपनी सरकार बनने पर जश्न मना रहे थे। जो माकपा प्रत्याशी बलवान पूनिया को हराने के लिए भरसक प्रयास कर रहे थे। इस सियासी जोड़तोड़ के सामने वे स्तब्ध रह गए। यही वजह है कि अब भादरा में कांग्रेस एक तरह से ‘गायब’ हो गई। बलवान के एक पैंतरे ने कांग्रेस को छू मंतर कर दिया है। जाहिर है, मौजूदा हालात में कांग्रेस को भादरा से कोई उम्मीद नहीं। यह दीगर बात है कि यह स्थिति कांग्रेस ने खुद बनाई है। बकौल गहलोत, ‘हर गलती कीमत मांगती है।’ तो क्या, कांग्रेस ने ‘कीमत’ चुकाने का पक्का मन बना लिया है ?

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