डॉ. रामकुमार सिहाग.
8 सितंबर को विश्व फिजियोथैरेपी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का विश्व भर में फिजियोथेरेपी चिकित्सा की महत्ता और फिजियोथेरेपी के लिए लोगों को जागरूक करना मुख्य उद्देश्य होता है। साल 1996 में वर्ल्ड कन्फेडरेशन फिजियोथैरेपी ने इस दिवस की शुरुआत की थी। डब्ल्यूसीपीटी की स्थापना 1951 में हुई जो लगभग 125 देशों के सदस्यता के साथ विश्व भर के 10 लाख फिजियोथैरेपिस्ट चिकित्सकों का संगठन है।
फिजियोथैरेपी आधुनिक शिक्षा प्रणाली का एक अहम और अटूट आना है। इसके बिना आज किसी भी सर्जरी, जोड़ प्रत्यारोपण या अन्य कोई ऑपरेशन की 100 फीसद सफलता संभव ही नहीं है।
एक समय था जब फिजियोथैरेपी सिर्फ खेलकूद के दौरान लगी चोटों को सही करने के लिए जाना जाता था। लेकिन अब करीब सभी मस्क्यूलोस्केलेटल बीमारियों जैसे कमर दर्द, गर्दन दर्द, स्लिप डिस्क, घुटनों में दर्द, जोड़ दर्द इसके अलावा बच्चों में जन्मजात अपंगता, लकवा आदि हर तरह की बीमारियों को फिजियोथैरेपी चिकित्सा के सारे से ठीक किया जा सकता है।
इसी दिन यानी 8 सितंबर को ही 13 साल पहले हमने हनुमानगढ़ में फिजियोथेरेपी हॉस्पिटल की शुरुआत की थी। जहां पर पहले मरीज को समझने में बहुत दिक्कत आती थी। परंतु अब किसी को यह बताने में कोई दिक्कत नहीं कि फिजियोथैरेपी चिकित्सा क्या है और इसके क्या फायदे हैं, लोग डायरेक्ट जाकर अपना इलाज करवा रहे हैं।
रीड की हड्डी टूटने यानी कि स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के बाद सिर्फ फिजियोथैरेपी (न्यूरो रिहैबिलिटेशन) नहीं एकमात्र इलाज होता है।
हमें खुशी है कि हनुमानगढ़ में हमने ऐसा हॉस्पिटल बनाया है जो बीकानेर संभाग का एकमात्र ऐसा न्यूरो रिहैबिलिटेशन सेंटर है, जहां पर राजस्थानी ही नहीं, अपितु पंजाब, हरियाणा जैसे अन्य राज्यों के लोग भी आकर अपना इलाज करवा रहे हैं।
एक ओर जहां फिजियोथैरेपी चिकित्सा की महत्ता बढ़ी है, वहीं दूसरी तरफ सरकार की अनदेखी इस महत्वपूर्ण प्रोफेशन के महत्व को कम कर रही है। काउंसिल नहीं होने के कारण पिछले 15 सालों में केवल 62 सरकारी फिजियोथेरेपिस्ट चिकित्सकों की भर्ती और हर प्राइवेट यूनिवर्सिटी पैसों के लालच में घर बैठे फिजियोथैरेपी की डिग्री रेवड़ियों की तरह बांटे जा रही है जिस पर लगाम कसने की सख्त जरूरत है। बहुत से ऐसे डिग्री धारी फिजियोथैरेपिस्ट मिल जाएंगे जो ढंग से फिजियोथैरेपी की परिभाषा भी नहीं बता सकेंगे, ये लोग प्रोफेशन के साथ-साथ मरीजों की जिंदगी के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं। सरकार को जल्द से जल्द फिजियोथैरेपी की स्वतंत्रता काउंसिल बनाकर इस प्रोफेशन को बचाना चाहिए।
फिजियोथैरेपी में बैचलर से लेकर पीएचडी डिग्री की पढ़ाई की जाती है। मास्टर डिग्री के लिए ऑर्थाे, पीडियाट्रिक्स, न्यूरो, स्पोर्ट्स, गायनी आदि ब्रांच उपलब्ध है। काउंसिल नहीं होने के कारण झोलाछाप और पैसे लेकर खरीदी हुई डिग्री के बहुत से लोग मिल जाएंगे जो कि इस प्रोफेशन के महत्व को धूमिल कर रहे हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। खास बात है कि पड़ोसी राज्य हरियाणा, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश व बिहार आदि राज्यों में फिजियोथेरेपी की स्वतंत्रता काउंसिल है। राजस्थान में लगभग 20000 फिजियोथैरेपिस्ट चिकित्सा कम कर रहे हैं। आज हर छोटे बड़े अस्पताल में फिजियोथेरेपी विभाग होता है, सरकार को पीएचसी लेवल पर फिजियोथैरेपिस्ट चिकित्सक लगाना चाहिए। देखा जाए तो अकेले राजस्थान से हर साल लगभग 3000 फिजियोथैरेपिस्ट डिग्री लेकर पास हो रहे हैं, जिसका कोई स्थाई भविष्य नहीं है।