राजकुमार सोनी.
भारत में ऐसे अनेक संत महात्मा अवतरित हुए हैं जिन्होंने जनमानस में ईश्वरीय भक्ति की धारा प्रवाहित कर सेवा और परोपकार की लौ जगाई थी। ऐसे ही अवतारी महापुरुष पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी जिन्होने पृथ्वी पर ईश्वरीय भक्ति की शुरुआत कर सेवा और परोपकार की लौ जलाई जो आज तक निरन्तर जल रही है और आने वाले युगों में भी जलती रहेगी। गुरबाणी में लिखा है ‘जन्म-मरण दुहहू महि नाही, जन परउपकारी आए’ अर्थात अवतारी शक्तियां जन्म व मरण के बंधन में नहीं रहती हैं वे पर-उपकार के लिए इस जगत में आती है।
कलयुग के अवतार श्री गुरु नानक देव जी लोक कल्याणनार्थ अनेक स्थानों पर गए। आप से जुड़े कुछ ऐतिहासिक गुरुद्वारा ष्पंजा साहिब (अब्दाल) पाकिस्तान, रीठा साहिब (उत्तरांचल) मणिकरण साहिब (हिमाचल प्रदेश), नानक झीरा (कर्नाटक), ननकाना साहिब (लाहौर), चक्की साहब (अहमदाबाद), दरबार साहिब (करतारपुर), गोरख हटडी (पेशावर), हट साहिब (सुलतानपुर लोधी) इत्यादि है।
श्री गुरु नानक देव जी की जब हम जीवनी पढ़ते हैं तो उसमें यह प्रसंग आता है कि आप सन 1521 वैशाख संवत 1578 में हसन अब्दाल पाकिस्तान गए थे। वहां ऊंची पहाड़ियां होने के कारण पानी की अत्यधिक कमी थी। वहां श्री गुरु नानक देव जी के अनुयाई मरदाना को प्यास लगी। श्री गुरु नानक देव जी ने मरदाना से कहा…ऊपर पहाड़ियों पर वली कंधारी के यहां जाकर झरने से अपनी प्यास बुझाओ। वली कंधारी ने इस नाराजगी में पानी देने से इनकार कर दिया कि मरदाना मुस्लिम होकर हिंदू संत श्री गुरु नानक देव जी का अनुयाई क्यों है। मरदाना प्यास से व्याकुल थक हार कर लौट आया। श्री गुरु नानक देव जी ने मरदाना से कहा कि वह वली कंधारी से विनम्र आग्रह करके पानी प्राप्त करें और अपनी प्यास बुझा ले। अहंकारी वली ने फिर इनकार कर दिया, तब श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी दिव्य शक्ति से वली कंधारी का पानी का झरना पहाड़ी के नीचे ही प्रकट कर मरदाने की प्यास बुझाई और वली कंधारी का झरना सूख गया। क्रोधित होकर वली कंधारी ने एक भारी चट्टान श्री गुरु नानक देव जी एवं मरदाना की तरफ फेंकी। गुरु जी ने अपने पंजे से उसे चट्टान को रोका, उस चट्टान पर आज भी श्री गुरु नानक देव जी के हाथ का निशान है, यह धार्मिक स्थल पाकिस्तान स्थित हसन अब्दुल शहर में है, जहां गुरुद्वारा ‘पंजा साहिब’ है।
उदासी के समय देश देशांतर का भ्रमण करते हुए श्री गुरु नानक देव जी एक बार उत्तरांचल स्थित पौड़ी जिले में पहुंचे। यहां रीठा के वृक्षों की भरमार है, एक रीठे के वृक्ष के नीचे गुरु मछिंद्रनाथ और उनके अनुयाई श्री गुरु नानक देव जी से ज्ञानचर्चा कर रहे थे। उन्होंने सत्संग वार्ता के दौरान श्री गुरु नानक देव जी से कहा कि हम भूख से व्याकुल है, कृपया कुछ खाने को दें। वहां रीठे के फलों के अलावा और कोई फल खाने के लिए नहीं था। वृक्ष के कुछ फल नीचे गिरे तो गुरु जी ने उन्हें उठाकर खाने को कहा। उन कड़वे रीठे के फलों को खाकर वे आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि कड़वे रीठे बड़े मीठे थे। तभी तो कहते हैं कि सद्गुरु के वचनों से कड़वे फल भी मीठे हो जाते हैं।
इसी तरह श्री गुरु नानक देव जी ने सिद्ध संतों को ज्ञान उपदेश देते हुए काव्य रूप में एक प्रमुख रचना की है जिसे श्री जपुजी साहिब के नाम से जाना जाता है। इसके नियमित पाठ से मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश उत्सव पर आप सभी को लख-लख बधाइयां।