क्यों जरूरी है छात्र संघ चुनाव ?

डॉ. संतोष राजपुरोहित.
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं। इस दृष्टि से लोकतांत्रिक चयन प्रक्रिया बहुत आवश्यक हो जाती हैं। इसी संदर्भ में उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्र संघ चुनावों की परिपाटी का चलन भी हुआ। भारत सबसे युवा देशों में भी शुमार होता हैं। यहां युवाओं की तादाद किसी भी अन्य देश से ज्यादा हैं। इस दृष्टि से भी युवाओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था समझाने समझने के दृष्टिकोण से छात्र संघ चुनाव एक प्रभावशाली माध्यम हो सकता हैं।
लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो छात्र संघ चुनावो का औचित्य क्या हैं? जब उनमें भी बड़े चुनावो वाली सारी बुराइयां आ जाती हैं। छात्र संघ चुनावों में जातिवाद, नशे के बदले वोट, दलगत राजनीति जैसी अनेकों बुराइयों से क्या हम इनकार कर सकते हैं? पैसे का दुरूपयोग इन चुनावों में क्या किसी से छुपा हैं? मुख्यमंत्री स्वयं इस पर चिन्ता जाहिर कर चुके हैं।
नई शिक्षा नीति को लागू करने की सीमा समय, छात्र संघ चुनावो से शैक्षणिक कैलेंडर में कार्य दिवसों की बर्बादी इत्यादि कारणों से इस सत्र प्रदेश में छात्र संघ चुनाव न करवाने की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी हैं।
गत वर्षाे का अनुभव देखे तो  छात्र संघ  चुनावो ने विश्वविद्यालयो और महाविद्यालयों के शैक्षणिक वातावरण को नुकसान ही पहुँचाया हैं। अनुशासन हीनता की पराकाष्ठा के अनेकों उदहारण देखने को मिले हैं।
गुरु शिष्य के सम्बन्धो में गिरावट भी जगजाहिर हैं हालांकि इसके लिए कोई एक पक्ष जिम्मेदार नही हैं। दोनों ही बराबर के भागीदार हैं। जहां अधिकांश शिक्षकों का विद्यार्थी वर्ग से निःस्वार्थ लगाव कम हुआ हैं। शिक्षक की भूमिका से ट्यूटर की भूमिका में आ गए हैं, वहीं विद्यार्थियों में भी अनुशासन हीनता की पराकाष्ठा भी सीमा लांघ गई।
छात्र संघ चुनावों की सार्थकता अधिकतर यह कह कर सिद्ध करने की कोशिश की जाती हैं कि इससे नेतृत्व क्षमता का विकास होता हैं। राजनीति की प्रथम सीढी इन्ही चुनावो से होकर गुजरती हैं। छात्र संघ चुनावों में धनबल, दलगत राजनीति, जातिवाद सहित अनेको बुराइयों को रोकने के लिए लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के आधार पर छात्र संघ चुनाव पुनः प्रारम्भ हुए थे।
उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षक विधार्थी भलीभांति जानते हैं कि क्या वास्तव में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का पालन हुआ? वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नई शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में देखे तो छात्र संघ चुनावो की प्रासंगिकता लगभग खत्म ही हो गयी हैं।
युवा नेतृत्व को बढ़ाने के लिए कौशल विकास एक माध्यम हो सकता हैं। युवाओं की सहभागिता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय सेवा योजना,एन सी सी,रोवर रेंजर सहित अनेकों गतिविधियां उच्च शिक्षण संस्थानों में पहले से संचालित हैं।
भारत सरकार के युवा एवम खेल मंत्रालय के अधीन नेहरू युवा केन्द्र सहित प्रदेश सरकार की अनेको योजनाएं और कार्यक्रम युवाओं की सहभागिता बढ़ाने के साथ साथ नेतृत्व के गुण विकसित करने के लिए उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त वाद विवाद प्रतियोगिताओ के आयोजन,युवा संसद कार्यक्रम इसमे सहायक हो सकते हैं।
(लेखक जाने-माने शिक्षाविद् व राजस्थान आर्थिक परिषद के अध्यक्ष रहे हैं)

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