




डॉ. एमपी शर्मा.
क्या आपको अक्सर थकान महसूस होती है? क्या बिना वजह वजन बढ़ रहा है या ठंड सहन नहीं होती? अगर हाँ, तो यह केवल आम कमजोरी नहीं, बल्कि आपके थायरॉयड की धीमी होती गतिविधि का संकेत हो सकता है। हाइपोथायरायडिज्म, एक ऐसा रोग जो शरीर की ऊर्जा, वजन, त्वचा, मानसिक स्थिति और मासिक चक्र तक को प्रभावित कर सकता है। देश के करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रहा है, लेकिन जागरूकता की कमी के चलते यह अक्सर नजरअंदाज रह जाता है। विशेष रूप से महिलाओं में यह रोग कहीं अधिक देखने को मिलता है, और गर्भावस्था से लेकर बुज़ुर्गावस्था तक इसका प्रभाव गंभीर हो सकता है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे इसके लक्षण, कारण, जांच, इलाज और उससे जुड़ी सावधानियों को, ताकि आप और आपके अपने समय रहते सतर्क हो सकें और स्वस्थ जीवन जी सकें।
हाइपोथायरायडिज्म वह स्थिति है जब थायरॉयड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में थायरॉयड हार्माेन (टी3 और टी4) नहीं बना पाती। यह हार्माेन शरीर के मेटाबॉलिज्म, ऊर्जा स्तर और अन्य कई शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है। हार्माेन की कमी से शरीर की गतिविधियाँ धीमी पड़ जाती हैं। भारत में हाइपोथायरायडिज्म खासकर हिमालयी क्षेत्रों, राजस्थान, बिहार, उत्तराखंड और उत्तर पूर्वी राज्यों में अधिक देखा जाता है। इन क्षेत्रों में आयोडीन की कमी, खानपान की आदतें और जागरूकता की कमी प्रमुख कारण हैं।
स्त्री-पुरुष अनुपात
यह रोग स्त्रियों में पुरुषों की तुलना में लगभग 8 से 10 गुना अधिक पाया जाता है। विशेष रूप से 30 वर्ष से ऊपर की महिलाएं अधिक प्रभावित होती हैं। गर्भावस्था के दौरान भी थायरॉयड की जांच अत्यंत आवश्यक होती है।
मुख्य कारण
आयोडीन की कमी। यह थायरॉयड हार्माेन के निर्माण में सबसे जरूरी तत्व है। ऑटोइम्यून रोग (हाशिमोटो थायरॉयडिटिस) यानी शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली खुद ही थायरॉयड ग्रंथि पर हमला कर देती है।
थायरॉयड सर्जरी या रेडियोथेरेपी का इतिहास
-कुछ दवाएं, जैसे लिथियम, एमियोडैरोन आदि।
-जन्मजात नवजात शिशुओं में जन्म से ही थायरॉयड की कमी हो सकती है।
लक्षण
अत्यधिक थकान, वजन बढ़ना, ठंड सहन न होना, त्वचा सूखी होना, बाल झड़ना, कब्ज रहना, मासिक धर्म में अनियमितता, चेहरे और आंखों की सूजन व अवसाद या स्मृति की कमजोरी। खानपान और मोटापा। हाइपोथायरायडिज्म में मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है जिससे वजन बढ़ना आम बात है। बचाव के लिए आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग करें। हरी सब्जियाँ, फल, साबुत अनाज और प्रोटीन युक्त भोजन लें। सोया, ब्रोकली, फूलगोभी, मूली जैसी गॉइट्रोजनिक चीज़ों का सीमित सेवन करें। तले-भुने और प्रोसेस्ड फूड से बचें। नियमित व्यायाम करें।
साधारण ब्लड टेस्ट से थायरॉयड हार्माेन का स्तर जांचा जा सकता है, टीएसएच, फ्री टी3 और फ्री 4, यदि टीएसएच बढ़ा हुआ है और टी3 या टी4 कम है तो हाइपोथायरायडिज्म की पुष्टि करता है।
इलाज
लेवोथायरॉक्सिन नामक दवा प्रतिदिन खाली पेट दी जाती है। सही डोज डॉक्टर द्वारा रक्त परीक्षण के आधार पर तय की जाती है। दवा आजीवन लेनी पड़ सकती है। दवा के साथ नियमित रूप से टीएसएच की जांच आवश्यक है।
डॉक्टरी सलाह व सावधानियाँ
दवा सुबह खाली पेट लें और दवा लेने के बाद 30 मिनट तक कुछ न खाएं। कैल्शियम, आयरन सप्लिमेंट्स थायरॉक्सिन के साथ तुरंत न लें। हर 3-6 महीने में थायरॉयड टेस्ट करवाएं। वजन नियंत्रित रखें, व्यायाम और संतुलित आहार अपनाएं। मानसिक तनाव कम करें।
बचाव के उपाय
गर्भवती महिलाओं की नियमित थायरॉयड जांच हो। नवजात शिशुओं की जन्म के समय जांच जरूरी। आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग। महिलाओं में 30 वर्ष की आयु के बाद नियमित जांच। थकान, मोटापा, अवसाद जैसे लक्षणों को हल्के में न लें।
हाइपोथायरायडिज्म एक सामान्य लेकिन नजरअंदाज किया गया रोग है। समय रहते पहचान और नियमित उपचार से व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ जीवन जी सकता है। जन जागरूकता, समय पर जांच और संतुलित जीवनशैली अपनाकर इस रोग से बचाव संभव है।
-लेखक सुविख्यात सीनियर सर्जन व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं




