हम कमजोर क्यों हैं ?

image description

गोपाल झा.
ब कभी इतिहास लिखा जाएगा तो मौजूदा वक्त को सबसे भयावह दौर के तौर पर शिनाख्त किया जाएगा। आप पूछेंगे, ऐसा क्यों ? जवाब आपके पास ही है। जी हां। हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहाँ धर्म और जाति की राजनीति हमारी प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊपर पहुंच चुकी है। हम मंदिर-मस्जिद के विवादों पर तो घंटों चर्चा करते हैं, सोशल मीडिया पर तीखी टिप्पणियाँ करते हैं, और उन सरकारों का गुणगान करते नहीं थकते जो हमारी बुनियादी समस्याओं पर ध्यान तक नहीं देतीं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन मुद्दों में उलझकर हमने अपने असल जीवन की समस्याओं को किनारे रख दिया है?
क्या, आपने कभी पीएचईडी के माध्यम से अपने घरों में आए पानी की जांच करवाई है ? नहीं न ? तो एक बार यह काम जरूर कीजिएगा। सच्चाई यह है कि हमारे घरों में पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। नहरों से गंदा पानी आता है, जिसे स्वच्छ करने के लिए न तो पीएचईडी के पास पर्याप्त संसाधन हैं और न ही सरकार की कोई गंभीरता दिखती है। गंदे पानी के कारण लोग कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। यह सिलसिला जारी है, और हम इसे अपनी नियति मानकर बैठे हुए हैं। क्या हमें अपने और अपने बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं?


वायु प्रदूषण भी विकराल रूप ले चुका है। शुद्ध हवा, जो जीवन का मूलभूत आधार है, हमें शायद ही मयस्सर हो। बढ़ते औद्योगीकरण, अव्यवस्थित नगरीकरण और सरकार की निष्क्रियता ने हमें विषैली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर कर दिया है।
रासायनिक खाद, कीटनाशकों और मिलावटी उत्पादों ने हमारे खाद्य पदार्थों को जहर बना दिया है। अनाज, दूध, सब्जियाँ और फल, हर चीज में मिलावट का जहर घुला हुआ है। कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज जैसी घातक बीमारियाँ आम हो गई हैं, लेकिन हम इस गंभीर विषय पर संगठित होकर विरोध करने को तैयार नहीं हैं।


आखिर हम इतने कमजोर क्यों हैं? क्यों हम अपनी असली समस्याओं पर बात करने से कतराते हैं? क्यों हम अपने हुक्मरानों से इस पर सवाल नहीं पूछते? हम धर्म और जाति की राजनीति में उलझकर उन सत्ताधीशों को मजबूत कर रहे हैं, जो हमें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं तक से वंचित रख रहे हैं। हम केवल चुनावी वादों के झांसे में आकर अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लेते हैं।


समय आ गया है कि हम अपनी प्राथमिकताओं को फिर से तय कीजिए। हमें उन मसलों पर जोर देना होगा जो हमारे अस्तित्व से जुड़े हैं। अगर हमने अब भी अपनी आवाज़ नहीं उठाई, तो न हम सुरक्षित रहेंगे और न ही हमारी आने वाली पीढ़ियाँ। सत्ताधीशों से हमें यह सवाल करना ही होगा कि मंदिर-मस्जिद के अलावा हमारे जीवन की असल समस्याओं का समाधान कब होगा? अगर हम ऐसा नहीं कर सके, तो इतिहास हमें कायर और विवेकहीन नागरिकों के रूप में याद रखेगा। हिंदू-मुस्लिम को लेकर परस्पर जहर उगलने से फुर्सत हो तो कभी इस गंभीर मसले पर जरूर गौर कीजिएगा। काश, हम समय रहते जाग जाते!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *