सृष्टि में जीवन दृष्टि के भाव हैं शिव

डॉ. एमपी शर्मा.
जब हम शिव का नाम लेते हैं, तो हमारे भीतर एक अजीब-सी ऊर्जा, गूंज और गहराई का अनुभव होता है। शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि अस्तित्व का वह परम रहस्य हैं जो हर रूप, हर रेखा और हर रस से परे हैं। वे समाधि में लीन योगी भी हैं और प्रेम में पगे गृहस्थ भी। वे विनाशक हैं, पर सृजन का बीज भी उन्हीं में है। कोई उन्हें कैलाशपति कहता है, कोई नटराज, कोई अर्धनारीश्वर तो कोई नीलकंठ। इस आलेख में हम शिव के उन्हीं विविध रूपों, भावों और संदेशों को समझने का प्रयास करेंगे, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने हजारों वर्ष पहले थे। शिव को जानना केवल धर्म का विषय नहीं, यह स्वयं को जानने की यात्रा का प्रारंभ है।
शिव कौन हैं? शिव एक नाम नहीं, एक चेतना हैं। वो किसी एक रूप, समय या स्थान में बंधे नहीं हैं। वे भोले भंडारी भी हैं, रुद्र भी हैं, संहारक भी हैं और करुणा के सागर भी। शिव वह शक्ति हैं जो निर्माण से पहले हैं और विनाश के बाद भी रहते हैं। शिव को भोलेनाथ कहा जाता है क्योंकि वे बिना छल-कपट के भाव से प्रसन्न हो जाते हैं। चाहे देवता हो या राक्षस, जिसने भी तप किया, सच्चे भाव से शिव की भक्ति की, शिव ने उसे वरदान दिया। उनकी भोलाभाली में भी गहरी चेतना है, वे हर आत्मा को स्वीकारते हैं। उनके लिए ना कोई छोटा है, ना बड़ा, बस भक्ति का भाव चाहिए।


तांडव: प्रेम, पीड़ा और शक्ति का संगम
जब सती ने यज्ञ में प्राण त्यागे, शिव का वियोग असहनीय हो गया। उन्होंने क्रोध, पीड़ा और प्रेम को एक साथ समेटकर तांडव किया। वह नृत्य केवल नाश का नहीं था, वह उस वेदना का भी प्रतीक था जो उन्होंने सती को खोकर झेली।
पत्नी प्रेम: शिव का मानवीय रूप
शिव का प्रेम आदर्श है। सती और फिर पार्वती के प्रति उनका प्रेम समर्पण की पराकाष्ठा है। शिव ने सती को फिर पार्वती रूप में पाया और उन्हें सम्मान दिया। शिव एक ऐसे पति हैं जो शक्ति को नारी रूप में नमन करते हैं, तभी वे अर्धनारीश्वर हैं।
पुत्र वध: धर्म और कर्तव्य की कठोरता
गणेश वध की कथा केवल क्रोध या ग़लती नहीं, बल्कि कर्तव्य, धर्म और आदेश की परिभाषा है। जब पार्वती की आज्ञा के अनुसार गणेश ने किसी को प्रवेश नहीं करने दिया, तब शिव ने कर्तव्य की रक्षा करते हुए उसे मारा और बाद में उसी पुत्र को गणपति बनाकर प्रथम पूज्य भी बनाया।
राक्षसों को भी वरदान: निष्पक्षता का प्रतीक
रावण, बाणासुर, भस्मासुर जैसे असुरों ने भी तपस्या की और शिव से वरदान पाए। शिव केवल जाति, वर्ग या रूप नहीं देखते। वे भक्ति के सच्चे स्वरूप को पहचानते हैं। उनकी यह निष्पक्षता एक गहरा संदेश देती है, ‘सत्य और श्रद्धा से किया गया प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता।’
कन्याओं का आदर्श: शिव जैसा वर क्यों?
आज भी भारत की अनेक कन्याएँ शिव जैसा वर पाने के लिए व्रत करती हैं। कारण स्पष्ट है, शिव केवल शक्ति के देव नहीं, वे एक आदर्श जीवनसाथी हैं, जो पत्नी को सम्मान, प्रेम और बराबरी देते हैं। शिव की पार्वती से भक्ति, संवाद, और विश्वास आज के युग में वैवाहिक संबंधों के लिए भी प्रेरणा है।
शिव का संदेश: जीवन जीने की कला
वैराग्य और गृहस्थ जीवन का संतुलनरू शिव कैलाशवासी हैं, योगी हैं, पर गृहस्थ जीवन भी पूरी निष्ठा से निभाते हैं।
क्रोध और करुणा का संतुलन: शिव का रौद्र रूप और भोले स्वरूप दोनों एक ही समय में संभव हैं, सिखाते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार संतुलन ज़रूरी है।
सत्य और श्रद्धा की स्वीकार्यता: कोई भी शिव का हो सकता है, बस सच्चे मन से पुकारने की ज़रूरत है।
साररू शिव केवल पूजे जाने वाले देव नहीं हैं, वे जीने की एक शैली हैं। उनकी जटाओं में गंगा बहती है, माथे पर चंद्रमा शीतलता देता है, और कंठ में विष, सबको बचाने की भावना लिए हुए। वे संहारक हैं पर सृजन का मार्ग भी दिखाते हैं। शिव वह आदर्श हैं जो हमें सिखाते हैं, ‘स्वयं को जानो, सच्चे बनो, और सबसे पहले स्वयं में शिव को जगाओ।’ हर हर महादेव।
-लेखक सामाजिक चिंतक, विख्यात सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेषाध्यक्ष हैं

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