


गोपाल झा.
जीवन की सार्थकता उसकी वर्षों की गणना में नहीं, बल्कि उसकी गहराई और उद्देश्य में छिपी होती है। इतिहास गवाह है कि महान व्यक्तित्वों ने उम्र की गणना से नहीं, बल्कि अपने विचारों, कर्मों और समर्पण से समाज को दिशा दी है। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह इसका जीवंत उदाहरण हैं। उन्होंने महज 23 वर्ष 6 महीने और 23 दिन की उम्र में जो काम किया, उसकी गूंज आज भी करोड़ों दिलों में है।
भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, वे एक विचार थे, सामाजिक समरसता, समानता और सांप्रदायिक सौहार्द का विचार। उन्होंने अपने विचारों से अंग्रेजों की नींव हिला दी। उनके लिए आज़ादी सिर्फ ब्रिटिश शासन से मुक्ति तक सीमित नहीं थी, बल्कि एक ऐसे समाज की स्थापना का सपना था जहां जाति, धर्म, वर्ग और क्षेत्रीय भेदभाव का नामोनिशान न हो। भगत सिंह ने साफ कहा था, ‘मजहब इंसान को इंसान से अलग करता है, हमें इंसानियत को धर्म से ऊपर रखना चाहिए।’
कौमी एकता के सच्चे प्रहरी
भगत सिंह हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने कई मौकों पर यह जताया कि धर्म के नाम पर समाज में फूट डालना देशद्रोह से कम नहीं है। उनका मानना था कि अगर देश को वास्तव में स्वतंत्र बनाना है तो सांप्रदायिकता को जड़ से मिटाना होगा। लेकिन आज की विडंबना देखिए, व्हाट्सएप पर हिंदू-मुस्लिम बहस में उलझे लोग भगत सिंह का नाम लेते नहीं थकते! क्या यह उनकी सोच का अपमान नहीं? अगर भगत सिंह को सच में मानते हैं तो उनकी राह पर चलिए। उनके विचारों को समझिए और उन पर अमल कीजिए।
आज हम भगत सिंह की जयंती पर भाषण देते हैं, उनकी तस्वीरों पर फूल चढ़ाते हैं, लेकिन क्या हमने कभी आत्मविश्लेषण किया है? क्या हमने जातिवाद, सांप्रदायिकता और नफरत से मुक्त समाज बनाने का प्रयास किया? क्या हमने समाज के शोषित और वंचित वर्ग को समान अवसर देने की कोशिश की? क्या हम देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं?
सिर्फ नाम लेने से नहीं, कदम बढ़ाने से बदलाव आएगा
भगत सिंह ने कभी अपने नाम या प्रशंसा की परवाह नहीं की। वे एक उद्देश्य के लिए जीए और उसी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा। आज हम उनका नाम तो लेते हैं लेकिन उनके पदचिन्हों पर चलने का साहस नहीं दिखाते। देशप्रेम सिर्फ नारों और सोशल मीडिया पोस्ट से साबित नहीं होता, बल्कि वह कर्मों में दिखना चाहिए।
आज जब समाज में धर्म, जाति और क्षेत्रीयता की दीवारें खड़ी की जा रही हैं, भगत सिंह की विचारधारा और अधिक प्रासंगिक हो जाती है। हमें समझना होगा कि असली देशभक्ति तब है जब हम इन दीवारों को गिराकर समाज में समरसता और एकता स्थापित करें।
सच में भगत सिंह को सम्मान देना है तो उनके विचारों को जीवन में उतारना होगा। जाति, धर्म और क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में सोचना होगा। यही उनके विचारों और शहादत के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इतिहास पुरुष को नमन!

