सरदार बख्तावर सिंह सिद्धू एक युग पुरुष की तरह थे। ऐसे विरले शख्स जो आजादी के संघर्ष के साक्षी थे, आजादी के बाद के भारत को न सिर्फ बनते देखा बल्कि उसमें अपनी रचनात्मक भूमिका निभाई। कुल 94 साल के जीवन में उन्होंने परिवार, समाज और देश को बहुत कुछ दिया। उनका जाना सबको अखर रहा। लेकिन अनंत यात्रा पर जाना भी तो एक प्रक्रिया है, हर किसी को इससे गुजरना ही होगा।
डॉ. संतोष राजपुरोहित.
बख्तावर सिंह सिद्धू का जन्म 12 फरवरी 1930 को श्रीगंगानगर जिले के गुलाबेवाला गांव में हुआ। इनकी माता हरकौर एवं पिता नरसिंह सिद्धू थे। आपकी पत्नी करतार कौर का 2022 में देहांत हो गया था। बख्तावर सिंह सिद्धू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वर्ष 1937 से सरकारी स्कूल गुलाबेवाला में शुरू की तथा चौथी कक्षा में तहसील स्तर पर चार रुपए प्रतिमाह स्कॉलरशिप शुरू हुई। उस समय यह स्कॉलरशिप तहसील स्तर पर मात्र 6 विद्यार्थियों को ही मिला करती थी। वर्ष 1943 में खालसा स्कूल मुक्तसर में पांचवी कक्षा में प्रवेश लिया तथा वर्ष 1948 में खालसा कॉलेज अमृतसर में बीएससी एग्रीकल्चर में प्रवेश लिया। वर्ष 1953 में बीएससी एग्रीकल्चर की डिग्री तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हाथों प्राप्त की।
सिद्धू साहब ने 25 फरवरी 1955 को कृषि निदेशालय एवं फूड कमिश्नर के निर्देश पर शिवगंज ट्रेनिंग सेंटर में फील्ड इंस्पेक्टर के पद पर कार्यभार ग्रहण किया।
इसी कड़ी में सिद्धू साहब सवाई माधोपुर, श्रीगंगानगर ,भीलवाड़ा सहित कई जिलों में विभिन्न पदों पर कार्य किया। 1964 में जिला कृषि अधिकारी के पद पर मेरिट के आधार पर आपका चयन हुआ। 1972 में जिला कृषि अधिकारी हनुमानगढ़ में भी अपने कार्य किया। 1975 में मेरिट के आधार पर 26 सीनियर अफसरों को पिछाड़ते हुए पदोन्नत होकर डिप्टी डायरेक्टर के रूप में विश्व बैंक द्वारा शुरू किए गए प्रोजेक्ट में बीकानेर में कार्य करने का अवसर मिला।
1980 में परियोजना निदेशक विस्तार राजस्थान नहर बीकानेर के पद पर कार्य किया। 1983 को संयुक्त निदेशक प्रशासन मुख्यालय जयपुर के पद पर कार्य किया। 1987 में अतिरिक्त निदेशक के पद पर पदोन्नति हुई। 1989 में कृषि निदेशक राजस्थान सरकार के पद पर आप पदोन्नत हुए। 30 अप्रैल 1989 को निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए। हमारे क्षेत्र से इस पद पर पहुंचने वाले आप एकमात्र व्यक्ति थे। अधिकतर इस पद पर आईएएस की नियुक्ति होती है।
सिद्धू साहब की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू एवं पंजाबी में हुई। बाल्यकाल में ही पंजाबी की रामायण और सिखों के इतिहास की अनेकों किताबें आपके द्वारा अध्ययन की गई जिसका प्रभाव आपके जीवन पर अत्यधिक पड़ा है। जीवन पर्यंत आप सामाजिक सरोकार जीवन में नैतिकता एवं न्याय प्रियता को अपनाये रखा।
कृषि विभाग में विभिन्न पदों पर अपने प्रशासनिक दायित्व को निभाते हुए सिद्धू साहब ने कभी जाति, धर्म या पद में छोटे-बड़े के आधार पर भेदभाव नहीं किया। अपने कार्यालय में छोटे से छोटे पद पर कार्य करने वाले व्यक्ति के परिवार के सुख-दुख में रुचि लेते हुए उनकी समस्याओं के समाधान का हिस्सा बनते थे और उचित मार्गदर्शन किया करते थे।
अपने कार्यालय के कर्मचारियों के बच्चों की पढ़ाई लिखाई के बारे में अक्सर जानकारी लिया करते थे तथा तथा उनके बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया करते थे। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि जब मुझे एमए अर्थशास्त्र में अजमेर विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडल मिला तो आपने व्यक्तिगत शुभकामनाएं दी। और उसके पश्चात भी जब कभी अखबार में बजट पर प्रतिक्रिया या अन्य किसी आर्थिक गतिविधि पर मेरा कोई आलेख प्रकाशित होता था तो आप मॉर्निंग वॉक के समय जब भी मिलते अक्सर प्रोत्साहित करते थे। दरअसल 1972 के आसपास जब सिद्धू साहब हनुमानगढ़ कृषि विभाग में स्थापित थे उस समय मेरे पिताजी कृषि विभाग में आपके जीप ड्राइवर के रूप में कार्य कर रहे थे। अक्सर पिताजी से आपकी सह्रदयता के किस्से सुनने को मिल जाते थे और बचपन से ही मेरी नजर में आपकी छवि एक आदर्श व्यक्ति रूप में बन गयी थी।
2017 में जब पिताजी का देहांत हुआ तब भी आप खुद सांत्वना देने घर आए। ऐसे विरले ही अधिकारी होते हैं जो अपने कर्मचारी के परिवारों से इतने लंबे समय बाद भी स्नेह रखते हैं, जुड़े रहते हैं। सिद्धू साहब अक्सर पुराने समय की बातें करते हुए बताते थे कि उस समय लोगों में परस्पर विश्वास था लोगों की जुबान की वैल्यू थी। सामाजिक समरसता थी।
30 अगस्त 2024 को अपने निवास स्थान पर ही अंतिम सांस लेकर आप प्रभु चरणों में लीन हो गए आपके परिवार में पुत्र सतविंदर पाल सिंह,पौत्र अमरिंदर सिंह जय सिंह हर्षवीर सिंह है। आपके एक पुत्र नरेन्द्रपाल सिंह 2017 में दिवंगत हो गए तथा बड़े पुत्र एडवोकेट सतबीर सिंह आपके निधन के कुछ दिन बाद ही चल बसे। एसपी सिद्धू साहब ने आपकी सेवा के लिए डेयरी एमडी पद पर रहते स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।
दरअसल बख्तावर सिंह सिद्धू साहब जैसे लोग हमारे समाज की धरोहर थे। संभवतः यह आखिरी पीढ़ी होगी जिन्होंने आजादी से पहले की परिस्थितियों और आजादी के बाद के समाज को बनते बिगड़ते देखा। सिद्धू साहब के निधन से एक युग का अंत हो गया।