राजस्थान का आईएएस अफसर, विपक्ष जिन्हें कहता है ‘सुपर सीएम’

भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजस्थान की नौकरशाही के मौजूदा प्रमुख, मुख्य सचिव सुधांश पंत, एक ऐसे प्रशासनिक अधिकारी हैं, जिनके व्यक्तित्व और कार्यशैली की चर्चा न केवल ब्यूरोक्रेसी के गलियारों में होती है, बल्कि राजनीतिक हलकों में भी उनका नाम विशेष महत्व रखता है। एक ओर जहां वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के विश्वस्त माने जाते हैं, वहीं दूसरी ओर विपक्ष उन्हें ‘सुपर सीएम’ कहकर कटाक्ष करता है। यह उपाधि मात्र आलोचना नहीं, उनकी प्रभावशीलता का संकेत भी है।
सुधांश पंत 1991 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। मेरठ, उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले पंत ने अपने लंबे करियर में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाईं। उनका ब्यूरोक्रेटिक अनुभव विविध क्षेत्रों में फैला हुआ है, चाहे वह स्वास्थ्य, शहरी विकास, या प्रशासनिक सुधार जैसे विषय हों या राजस्व और नियोजन के क्षेत्र।
उनकी सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है, निर्णय लेने की स्पष्टता और क्रियान्वयन की तेज़ी। वे उन अफसरों में हैं जो ‘फाइल को घुमाने’ की बजाय ‘फैसला करने’ में यकीन रखते हैं। यही कारण है कि जहां भी उनकी पोस्टिंग रही, उन्होंने प्रशासनिक व्यवस्थाओं में स्थायी सुधार की छाप छोड़ी।
वरिष्ठता को दरकिनार कर मिली सर्वाेच्च जिम्मेदारी
जब दिसंबर 2023 में राजस्थान में सत्ता परिवर्तन हुआ और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, तो ब्यूरोक्रेसी की कमान सुधांश पंत को सौंपी गई। दिलचस्प बात यह रही कि वरिष्ठता में वे चौथे स्थान पर थे, जबकि तीन अन्य अफसर सुबोध अग्रवाल, वी. श्रीनिवास और शुभ्रा सिंह उनसे सीनियर थे। लेकिन राजनीतिक नेतृत्व ने उनके अनुभव, कार्यकुशलता और भरोसेमंद छवि को प्राथमिकता दी।
यह नियुक्ति महज प्रशासनिक निर्णय नहीं थी, बल्कि एक रणनीतिक दांव भी माना गया। यह संकेत था कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और दिल्ली नेतृत्व राज्य की नौकरशाही में पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं, और इसके लिए उन्हें एक ऐसा अधिकारी चाहिए जो न केवल केंद्र से जुड़ा हो, बल्कि सख्त, स्पष्ट और लक्ष्य-प्रधान निर्णय ले सके।


चर्चा में रहते हैं पंत
सुधांश पंत की कार्यशैली को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि वे ‘एकल निर्णय’ और ‘सुस्पष्ट दिशा’ के पक्षधर माने जाते हैं। वे अफसरों की बड़ी बैठकें कम करते हैं, लेकिन जब करते हैं तो उनके निर्देश स्पष्ट, समयबद्ध और परिणामोन्मुख होते हैं। उन्हें ‘विलंब’ और ‘अस्पष्टता’ पसंद नहीं। उनकी यही कार्यशैली उन्हें कई बार विवादों में भी डाल देती है। विपक्ष उन पर आरोप लगाता है कि वे मंत्रियों और विधायकों को दरकिनार कर ‘सीएम जैसे’ व्यवहार करते हैं। कुछ तस्वीरों ने इस आरोप को हवा दी जब विधायक मुख्य सचिव के चौंबर के बाहर लंबा इंतजार करते नजर आए। इस दृश्य ने प्रशासनिक अनुशासन बनाम राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बहस को जन्म दिया।
दिल्ली से वापसी और भूमिका में बदलाव
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान सुधांश पंत को अपेक्षित भूमिका नहीं मिली। वे कुछ हद तक ‘हाशिये’ पर थे। नवंबर 2022 में वे केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले गए। लेकिन जैसे ही सत्ता बदली, उन्हें दिसंबर 2023 में विशेष रूप से वापस बुलाकर राज्य की ब्यूरोक्रेसी की बागडोर सौंपी गई। इस वापसी ने एक बात स्पष्ट कर दी, उनमें ‘विश्वास’ और ‘सक्षम प्रशासन’ की छवि इतनी मजबूत है कि सत्ता परिवर्तन के बाद भी वे शीर्ष पसंद बने।


जनस्वीकृति और छवि
राजस्थान जैसे विशाल और जटिल राज्य में एक मुख्य सचिव का आम जनमानस में लोकप्रिय होना दुर्लभ है। लेकिन सुधांश पंत अपवाद हैं। वे जनता के बीच ‘सुलभ’ और ‘उत्तरदायी’ अफसर माने जाते हैं। चाहे वह सरकारी योजनाओं की क्रियान्विति हो या फिर प्रशासनिक फैसले। यही उनकी कार्यशैली में सबसे बड़ी विशिष्टता है।

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