अब नगरपरिषद चुनाव पर भी सियासी परदा, हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजस्थान में लोकतंत्र की सबसे निचली इकाइयों, पंचायतों और नगर निकायों को लेकर चल रही उठा-पटक अब न्यायपालिका के दरवाजे तक जा पहुँची है। हाल ही में राज्य सरकार द्वारा 55 नगरपालिकाओं के चुनाव टालने और प्रशासक नियुक्त करने के निर्णय को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई, जिस पर अब अदालत ने राज्य सरकार से चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। पूर्व विधायक संयम लोढ़ा की ओर से दाखिल इस जनहित याचिका में गहरी चिंता जताई गई है कि राज्य सरकार बिना विधिक प्रक्रिया अपनाए मनमाने तरीके से प्रशासकों की नियुक्ति कर रही है, जो न केवल संविधान के 74वें संशोधन की आत्मा के खिलाफ है, बल्कि राजस्थान नगरपालिका अधिनियम-2009 का सीधा उल्लंघन भी है।
याचिकाकर्ता के वकील पुनीत सिंघवी ने अदालत में तर्क रखते हुए कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट भी साफ कह चुका है कि केवल प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में ही स्थानीय निकाय चुनावों को टाला जा सकता है। लेकिन यहां सरकार संविधानिक जिम्मेदारी से ही मुंह मोड़ रही है।’
हाईकोर्ट की दो टूक, चार हफ्तों में जवाब दें
मामले की सुनवाई जस्टिस श्रीचंद्रशेखर और जस्टिस आनंद शर्मा की खंडपीठ ने की। पीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि आखिर किन कारणों से पांच महीने बीत जाने के बावजूद भी चुनावों की घोषणा नहीं की गई। सरकार की तरफ से महाधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद पेश हुए और उन्होंने कहा, ‘सरकार चुनाव कराने के लिए पूरी तरह तैयार है। हम अदालत के समक्ष विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करेंगे।’
याचिका में खासतौर पर इस बात पर बल दिया गया है कि 74वें संविधान संशोधन ने स्थानीय निकायों को स्वायत्तशासी, जवाबदेह और लोकतांत्रिक इकाइयों के रूप में मान्यता दी है। अब यह राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग की बाध्यता है कि वे कार्यकाल समाप्त होने से पहले चुनाव करवाएं। अगर संवैधानिक प्रावधान इतना स्पष्ट है, तो फिर क्या वजह है कि चुनाव अब तक नहीं कराए गए? क्या यह प्रशासनिक सुस्ती है, या फिर चुनावों को टालने के पीछे कोई रणनीतिक राजनीति? यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले राज्य सरकार ने जनवरी 2025 में प्रस्तावित 6759 ग्राम पंचायतों के चुनाव भी यह कहकर टाल दिए थे कि पंचायतों का पुनर्गठन और सीमांकन किया जा रहा है। तब भी मौजूदा सरपंचों को ही प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। इस फैसले को भी हाईकोर्ट में चुनौती मिली हुई है और मामला अब भी विचाराधीन है। सरकार ने जवाब में कहा था कि सीमांकन की प्रक्रिया मई-जून तक चलेगी, इसलिए चुनाव जून से पहले संभव नहीं हैं।
लोकतंत्र में प्रशासकों की सेंध?
जनता का सीधा सवाल है, अगर निर्वाचित प्रतिनिधियों की जगह प्रशासक ही शासन करेंगे तो लोकतंत्र का क्या औचित्य रह जाएगा? पंचायतों से लेकर नगरपालिकाओं तक, आम जनता की आवाज और भागीदारी ही लोकतंत्र की आत्मा है।

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