चिकित्सा केवल पेशा नहीं, सेवा और संवेदना का संकल्प है : डॉ. एमपी शर्मा

डॉक्टर्स डे के अवसर पर जब पूरा देश अपने चिकित्सकों को नमन कर रहा है, तब चिकित्सा समुदाय की जमीनी हकीकत, चुनौतियाँ और सुधार की दिशा में किए जा रहे प्रयासों पर बात करना और भी ज़रूरी हो जाता है। भटनेर पोस्ट डॉट कॉम के साथ बातचीत में आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. एमपी शर्मा ने कई ज्वलंत मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी, चाहे वो ग्रामीण इलाकों की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था हो, चिकित्सकों पर बढ़ती हिंसा, या फिर निजी-सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में संतुलन की ज़रूरत। प्रस्तुत है संपादित अंश…..

‘डॉक्टर्स डे’ पर आप प्रदेश के सभी चिकित्सकों और आमजन को क्या संदेश देना चाहेंगे?
-डॉक्टर्स डे हमें यह याद दिलाने का अवसर है कि एक चिकित्सक केवल दवाइयों और सर्जरी का माध्यम नहीं होता, बल्कि वह सेवा, संवेदना और विश्वास का जीता-जागता प्रतीक होता है। मैं प्रदेश के सभी डॉक्टर साथियों को उनके कठिन परिश्रम, दिन-रात की सेवा भावना और समर्पण के लिए नमन करता हूँ। मैं आमजन से भी आग्रह करता हूँ कि चिकित्सकों को केवल “भगवान का रूप” कहने तक सीमित न रखें, बल्कि व्यवहार में भी उनके प्रति आदर और सहयोग का भाव रखें। डॉक्टर भी इंसान हैं, उनके भी परिवार होते हैं, भावनाएँ होती हैं, और सीमाएँ होती हैं। जब समाज और चिकित्सक दोनों एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं, तभी एक स्वस्थ समाज की नींव रखी जाती है।

राज्य के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति कैसी है? और आईएमए की ओर से क्या प्रयास हो रहे हैं?
-यह बात किसी से छिपी नहीं है कि प्रदेश के अनेक दूर-दराज़ और सीमावर्ती क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ अब भी बेहद कमजोर हैं। डॉक्टरों की भारी कमी, मूलभूत सुविधाओं की कमी, और संसाधनों की असमानता एक बड़ी चुनौती है। आईएमए राजस्थान इस दिशा में लगातार प्रयास कर रहा है, हमने सरकार से माँग की है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत डॉक्टरों को आवास, सुरक्षा और विशेष भत्ता दिया जाए। मोबाइल चिकित्सालय, चिकित्सा शिविर और जनजागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से हम इन इलाकों तक पहुँच बना रहे हैं। सरकार से यह भी आग्रह किया है कि नए डॉक्टरों को प्रशिक्षण देकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्थायी रूप से नियुक्त किया जाए। साथ ही टेलीमेडिसिन और मोबाइल सेवाओं को बढ़ावा देने की दिशा में भी हम लगातार काम कर रहे हैं।

चिकित्सकों पर हो रही हिंसा को लेकर समाज में चिंता है। इस विषय में आईएमए की क्या रणनीति है?
-चिकित्सकों पर हमला, दरअसल, पूरे चिकित्सा तंत्र पर हमला है। जब अस्पतालों में डर का माहौल बनेगा, तो कोई भी डॉक्टर न तो निर्णय ले पाएगा, न ही गंभीर रोगी की देखभाल में मन लगा पाएगा। आईएमए राजस्थान ने इस पर सख्त रुख अपनाया है, हमने सरकार से माँग की है कि “क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट सुरक्षा कानून“ को और अधिक सशक्त बनाया जाए। खासतौर पर ‘मोताणा’, डॉक्टर की देह के साथ प्रदर्शन, और भीड़ का अस्पताल में घुसना, इन सबको कानूनी अपराध की श्रेणी में लाया जाए। हर जिले में पुलिस प्रशासन के साथ हमारी बैठकें होती हैं ताकि डॉक्टरों को सुरक्षा मिले। सभी अस्पतालों में इमरजेंसी प्रतिक्रिया प्रणाली (जैसे अलार्म, गार्ड, सीसीटीवी) अनिवार्य हो, इसके लिए भी हमारी पहल चल रही है। साथ ही आमजन में डॉक्टरों के प्रति समझ और सम्मान पैदा करने के लिए जनसम्पर्क अभियान भी चलाए जा रहे हैं।

प्रदेश में लगातार नए मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं। इससे चिकित्सा शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?ः
-देखिए, अगर बिना योग्यता और अधोसंरचना के मेडिकल कॉलेज खुलेंगे, तो वहाँ से डॉक्टर नहीं, केवल “डिग्रीधारी बेरोजगार” निकलेंगे। चिकित्सा शिक्षा केवल किताबों से नहीं, बल्कि अनुभवी अध्यापकों, प्रयोगशालाओं, और मरीजों से सीखकर मिलती है। आईएमए का मानना है कि कॉलेजों को तभी मान्यता दी जाए जब उनके पास पूर्ण फैकल्टी, लैब, और अस्पताल की सुविधा हो। पी.जी. सीटें सिर्फ डीन के प्रभाव से नहीं, बल्कि फैकल्टी और मरीजों के अनुपात को देखकर बढ़नी चाहिए। छात्रों की फीस पर नियंत्रण हो, प्रक्रिया पारदर्शी हो। हॉस्टल की सुविधा, भोजन, मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा कृ ये सब भी शिक्षा का ही हिस्सा हैं। हम नहीं चाहते कि हमारी अगली पीढ़ी डिग्री तो ले आए, लेकिन आत्मविश्वास और नैतिकता से खाली हो।

निजी और सरकारी डॉक्टरों के बीच समन्वय के लिए आईएमए क्या भूमिका निभा रहा है?
-आईएमए का मूल मंत्र ही है, ‘डॉक्टर फॉर डॉक्टर’। हमारे लिए सरकारी या निजी डॉक्टरों में कोई भेद नहीं। दोनों ही समाज की सेवा में जुटे हैं और दोनों की अपनी समस्याएँ हैं। आईएमए की भूमिका इस प्रकार हैः। मसलन, हम दोनों पक्षों को एक मंच पर लाकर संवाद और समझ बढ़ाते हैं। सरकार की योजनाओं जैसे RGHS और चिरंजीवी योजना में निजी डॉक्टरों की भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं और समय पर भुगतान की माँग भी करते हैं। सरकारी डॉक्टरों की समस्याएँ, जैसे वेतन में असमानता, ड्यूटी के घंटे, पदोन्नति, कैडर को भी सरकार तक पहुँचाते हैं। हर जिले में हम निजी और सरकारी चिकित्सकों की संयुक्त बैठकें करते हैं ताकि समन्वय और सहयोग बना रहे। हमारा उद्देश्य है कि हर डॉक्टर, चाहे वह कहीं भी कार्यरत हो, गरिमा, सुरक्षा और सम्मान के साथ सेवा कर सके।

अंत में आपका कोई व्यक्तिगत संदेश?
-मैं प्रदेशवासियों से बस इतना ही कहूँगा। डॉक्टर भी आपके जैसे ही एक आम इंसान होता है, जिसने एक असाधारण जिम्मेदारी उठाई है। चिकित्सक को दवाओं से ज़्यादा ज़रूरत होती है आपके सहयोग, विश्वास और सम्मान की। जब हम एक-दूसरे की गरिमा को समझेंगे, तभी एक स्वस्थ, समरस और सुरक्षित समाज बन पाएगा।

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