जीवन के दो पहिए हैं, सत्य और विश्वास!

डॉ. एमपी शर्मा.
मनुष्य का जीवन एक रथ की भांति है, जो दो पहियों पर चलता है, सत्य और विश्वास। दोनों ही जीवन की दिशा और गति तय करते हैं। एक आंख है, जो स्पष्ट देखती है; दूसरा दिल है, जो अंधेरे में भी उम्मीद का दिया जलाए रखता है। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या ये दोनों हमेशा एक ही दिशा में चलते हैं? क्या कभी ऐसा होता है कि सत्य और विश्वास एक-दूसरे से टकरा जाएं? क्या कभी ऐसा भी आता है जब किसी को चुनना पड़े, या तो सत्य, या विश्वास? आइए इस गूढ़ और गहराई लिए प्रश्न का उत्तर खोजें दृ सरल शब्दों में, लेकिन गहराई से।
सत्य क्या है?
सत्य वह है, जो यथार्थ है। जो अनुभव, तर्क और प्रमाण पर आधारित हो। सत्य को देखा, परखा और दोहराया जा सकता है। यह सृष्टि की उस भाषा में लिखा होता है, जिसे विज्ञान, तर्क और विवेक समझते हैं। जैसे, सूर्य पूर्व से उगता है। यह भौतिक सत्य है। मनुष्य की मृत्यु निश्चित है, यह जीवन का शाश्वत सत्य है। ईमानदारी, परिश्रम और समय का मूल्य, ये नैतिक सत्य हैं, जो समाज की रीढ़ बनाते हैं। सत्य कभी-कभी कठोर भी होता है। यह भावनाओं की नहीं, बल्कि तथ्य की कसौटी पर चलता है। सत्य वह दर्पण है, जिसमें हम खुद को बिना श्रृंगार के देख सकते हैं। सच्चे, नंगे, निर्मम रूप में। यही कारण है कि कभी-कभी सत्य असुविधाजनक लगता है।


विश्वास क्या है?
विश्वास वह शक्ति है, जो आंखों से नहीं, दिल से देखती है। यह वह पुल है, जो कल्पना और यथार्थ के बीच बनता है। जब सब रास्ते बंद हो जाते हैं, तब विश्वास वह झरोखा होता है जिससे रोशनी की किरण भीतर आती है। उदाहरणस्वरूप, माँ अपने नवजात शिशु पर आंख मूंदकर भरोसा करती है, कि वह समय पर दूध मांगेगा, सोएगा, और फिर बड़ा होगा। मरीज डॉक्टर को देखकर विश्वास करता है कि यह व्यक्ति उसकी पीड़ा को समझेगा और इलाज करेगा। भक्त बिना साक्षात प्रमाण के यह मानता है कि उसका भगवान उसे देख रहा है, सुन रहा है। विश्वास का कोई तराजू नहीं होता, कोई वैज्ञानिक उपकरण नहीं होता जो इसे माप सके। यह जीवन की वह अनुभूति है, जो बिना साक्ष्य के भी हृदय में स्थिर रहती है।
क्या सत्य और विश्वास साथ चल सकते हैं?
बिल्कुल। और जीवन का सौंदर्य भी वहीं प्रकट होता है, जहां ये दोनों साथ कदम मिलाकर चलते हैं। किसी भी वैज्ञानिक खोज की शुरुआत विश्वास से होती है, विश्वास कि किसी समस्या का हल है। फिर प्रयोग, परीक्षण और सत्यापन से वह सत्य बनती है। उसी प्रकार, जब रिश्तों में बार-बार ईमानदारी और पारदर्शिता देखी जाती है, तो विश्वास गहराता है। यह अनुभवजन्य सत्य है कि सच्चाई से पनपा विश्वास सबसे मजबूत होता है। हर आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत विश्वास से होती है। जैसे कोई व्यक्ति योग करता है, तो प्रारंभ में वह अपने गुरु या ग्रंथों पर विश्वास करता है। फिर वह धीरे-धीरे अनुभव से उसे सत्य मानने लगता है।
शिक्षा भी इसी प्रक्रिया से गुजरती है। छात्र पहले शिक्षक पर भरोसा करता है, फिर ज्ञान की कसौटी पर सब कुछ समझने और स्वीकारने लगता है।


पर टकराव कब होता है?
सत्य और विश्वास में टकराव तब होता है, जब विश्वास आंखें मूंद लेता है और सत्य को नकारने लगता है। यह अंधविश्वास की स्थिति होती है। झाड़-फूंक, टोने-टोटके, चमत्कारी ताबीज जैसे उपाय तब टकराव पैदा करते हैं, जब लोग इन पर अंधविश्वास करते हैं और चिकित्सा विज्ञान को अस्वीकार करते हैं। मान लीजिए, कोई व्यक्ति वर्षों से मानता रहा कि कोई विशेष बाबा उसकी तकलीफें दूर करेगा। लेकिन समय, तर्क और अनुभव बार-बार बता रहे हैं कि यह धोखा है, तब व्यक्ति के विश्वास और सत्य के बीच भीषण टकराव होता है। कई बार भावनाएं इतनी प्रबल होती हैं कि व्यक्ति सत्य को स्वीकार नहीं कर पाता।
तो समाधान क्या है?
सत्य और विश्वास के बीच संतुलन ही जीवन की कुंजी है। सत्य आंखों की दृष्टि है, जिससे राह साफ दिखाई देती है। विश्वास दिल की रोशनी है, जिससे अंधेरी रात में भी हिम्मत रहती है। अगर हम केवल सत्य को पकड़े रहें, तो जीवन बहुत कठोर और रूखा हो सकता है। और अगर केवल विश्वास के भरोसे चलें, तो धोखे और भ्रम के दलदल में फंस सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम सत्य में संवेदना रखें और विश्वास में विवेक। जब कोई मां अपने बच्चे पर विश्वास करती है और साथ ही डॉक्टर की सलाह मानती है, वह दोनों की साझेदारी है। जब कोई वैज्ञानिक विश्वास के साथ प्रयोग करता है, और तर्क के साथ उसका विश्लेषण करता है, यह दोनों का सामंजस्य है। जब कोई भक्त भगवान में विश्वास रखता है, और साथ ही नैतिक जीवन जीता है, यह विश्वास और सत्य की संगति है।
सत्य और विश्वास दो विरोधी नहीं, पूरक हैं। ये जीवन की दो ज़रूरी सीढ़ियाँ हैं। एक हमें ऊँचाई दिखाती है, दूसरी उस पर चढ़ने की ताक़त देती है। जब विश्वास में विवेक हो और सत्य में संवेदना, तब ये दोनों बिना टकराए, बिना थकाए, जीवन को संपूर्ण बना देते हैं। सत्य जीवन को दिशा देता है, और विश्वास उसे ऊर्जा। दोनो साथ हों, तो जीवन रथ कभी डगमगाता नहीं दृ बल्कि मंज़िल तक पहुँच जाता है।
-लेखक सामाजिक चिंतक, सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं

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