




डॉ. एमपी शर्मा.
राम। यह कोई साधारण नाम नहीं है। यह भारत की आत्मा है, संस्कृति का सार है और जीवन का वह आदर्श है जो युगों-युगों तक न केवल पूजित रहा है, बल्कि लोकमानस में गहराई से रचा-बसा है। कोई उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहता है, कोई उन्हें ईश्वर का अवतार, तो कोई उन्हें राजा रामचंद्र के रूप में स्मरण करता है। आज जब एक ओर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है, वहीं आम बोलचाल में हम ‘अब तो उसका राम ही निकल गया’ या ‘राम नाम सत्य है’ जैसे वाक्य भी सुनते हैं। यह दर्शाता है कि राम केवल इतिहास की किसी किताब में नहीं, बल्कि हमारे विचारों, भावनाओं और भाषा में जीवित हैं। लेकिन एक गंभीर सवाल उठता है, क्या राम बनना आसान है? क्या हमने राम से कुछ सीखा है? क्या राम आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने त्रेतायुग में थे?
मर्यादा का प्रतीक: जब राजा दशरथ ने राम को 14 वर्ष का वनवास दिया, तो उन्होंने न कोई तर्क दिया, न विद्रोह किया। बिना कोई प्रश्न उठाए, पिता के वचन की मर्यादा निभाते हुए, राज्य और वैभव का परित्याग कर दिया।
सीख: माता-पिता के आदेश को सर्वाेपरि मानना। अपने स्वार्थ से पहले परिवार व समाज की प्रतिष्ठा को रखना।

भाईचारे की मिसाल: लक्ष्मण के प्रति राम का स्नेह हो या भरत के साथ उनका आत्मिक संबंध, राम ने भाईचारे की परिभाषा ही बदल दी। भरत द्वारा राम की खड़ाऊँ रखकर राज्य चलाना विश्वास और त्याग की पराकाष्ठा है।
सीख: पारिवारिक एकता और आपसी सम्मान। ईर्ष्या नहीं, आदर्श के प्रति समर्पण।
एक आज्ञाकारी शिष्य: राम ने विश्वामित्र के साथ रहकर न केवल राक्षसों का संहार किया, बल्कि एक अनुशासित शिष्य के रूप में गुरुकुल की परंपरा को निभाया।
सीख: शिक्षा केवल ज्ञान नहीं, अनुशासन और आस्था भी है। सीखते रहने की प्रवृत्ति ही प्रगति का मार्ग है।
पति और राजा के बीच संतुलन: सीता की अग्नि परीक्षा का प्रसंग आज भी बहस का विषय है। यह निर्णय निजी स्तर पर कठोर और विवादास्पद रहा, पर यह भी दिखाता है कि राजा राम ने समाज की अपेक्षाओं को प्राथमिकता दी।
सीख: नेतृत्व में कभी-कभी कड़े फैसले आवश्यक होते हैं। व्यक्तिगत भावनाओं पर सामाजिक उत्तरदायित्व भारी पड़ता है।
एक न्यायप्रिय शासक: रामराज्य को आदर्श शासन व्यवस्था कहा गया है। एक धोबी की शंका के कारण सीता को पुनः वनवास देना भले ही हृदयविदारक था, पर इसने यह सिद्ध किया कि राम के लिए न्याय सर्वाेपरि थाकृचाहे वह परिवार पर ही क्यों न पड़े।
सीख: सत्ता में निष्पक्षता और कठोरता का संतुलन आवश्यक। शासक के लिए सभी समान, चाहे परिवार हो या प्रजा।
वंचितों के प्रति करुणा: राम ने शबरी के जूठे बेर खाए, निषादराज गुह से मित्रता की, वानरराज सुग्रीव और हनुमान को गले लगाया। उन्होंने समाज के सबसे निचले तबके को अपनाया।
सीख: सच्चा धर्म वह है जो समावेशी हो। ‘रामत्व’ जाति, वर्ग और भाषा से परे होता है।
राम क्या हैं?
एक जीवन पद्धति: सत्य, संयम, त्याग, करुणा और मर्यादा का समन्वय।
एक परीक्षा: क्या हम स्वार्थ छोड़कर समाज के लिए खड़े हो सकते हैं?
एक आदर्श: पुत्र, पति, भाई, राजा और मानव के रूप में संतुलन बनाए रखना।
राम बनना कठिन क्यों है?
आज का युग स्वार्थ, स्पर्धा और सुविधा का युग है। राम बनने का अर्थ है, अपने लाभ के स्थान पर लोकहित की चिंता करना, अपने सुख के स्थान पर समाज की सेवा करना। यह आसान नहीं है। लेकिन यही तो परीक्षा है। राम ने आदर्शों को सिर्फ कहा नहीं, जिया भी। आज आवश्यकता राम की पूजा से कहीं अधिक, उनके पदचिन्हों पर चलने की है।
सारः राम को केवल अंतिम यात्रा में याद करना या एक मंदिर में मूर्तिरूप देकर पूजना, रामत्व का सार नहीं है। राम का स्मरण तभी सार्थक है जब, हम सत्य बोलें, कर्तव्य निभाएं, मर्यादा में रहें, और न्याय के पक्ष में खड़े हों। हर व्यक्ति में एक राम है, बस उसे जागृत करने की आवश्यकता है। ‘राम नाम सत्य है’ तभी अर्थवान होगा, जब हम अपने जीवन में सत्य और धर्म को स्थान देंगे।
-लेखक सामाजिक चिंतक और पेशे से जाने-माने सर्जन हैं




