गोपाल झा.
सूबे की सियासत में ‘बेचैनी’ है। छह सीटों पर उप चुनाव की तैयारी थी लेकिन संख्या बढ़कर सात हो गई। पांच सीटों पर ‘माननीयों’ के ‘निम्न सदन’ के लिए चुने जाने और दो सीटों पर ‘माननीयों’ की मौत के कारण उप चुनाव होंगे। विधानसभा चुनाव के नौ माह भी न हुए और दो ‘माननीयों’ का परलोक सिधारना पीड़ादायी है। यकीनन, बाकी ‘माननीयों; में बेचैनी है। ‘सरकार’ सांसत में है। ‘उप चुनाव’ में जाने का साहस नहीं जुटा पा रही। वैसे भी ‘राज’ किसी का हो, चुनाव में ‘हार और जीत’ अलग बात है लेकिन राज्य में उप चुनाव जीतने का रिकार्ड ‘पंजे वाली पार्टी’ के नाम है। यही वजह है कि ‘फूल वाली पार्टी’ सकते में तो है लेकिन अंदरखाने रणनीति बनाने में जुटी है ताकि इस ‘रिकार्ड’ को तोड़ा जा सके। वैसे भी सात सीटों पर उप चुनाव छोटी घटना नहीं फिर संभावित परिणाम सूबे की सियासत को प्रभावित तो करेंगे ही। कुल 200 सदस्यीय सदन में फिलहाल 193 ‘माननीय’ हैं। बाकी ‘माननीयों’ को इंतजार है जब सदन में सभी 200 ‘माननीय’ एकत्रित होंगे। लेकिन 200 का आंकड़ा पूरा होना ही तो आसान नहीं। फिर तुलसीदासजी ने बहुत पहले लिख दिया था ‘होहि है सोई जो राम रचि राखा।’ अब आप यह मत पूछ बैठिएगा कि राम ने क्या रचा है?
फिर चल गया ‘जादू’
‘पंजे वाली पार्टी’ में एक तबका ‘जादूगर’ को लेकर निश्चिंत हो रहा था। उसे लग रहा था कि ‘जादूगर’ अब ‘हाशिये’ में चले जाएंगे। ‘उड़ान’ वाले नेताजी की मुराद पूरी हो जाएगी। ‘आलाकमान’ ने अब ‘जादूगर’ को ‘अनुपयोगी’ मान लिया है। पिंकसिटी के सियासी गलियारे में इधर-उधर की चर्चा चल रही थी कि ‘जादूगर’ को लगातार दो दिन में दो बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई। स्टार प्रचारक तक तो ठीक है, उन्हें पड़ोसी राज्य के चुनाव में सीनियर आब्जर्वर लगा दिया गया। जाहिर है, ‘जादूगर’ के खिलाफ खबरें प्लांट करवाने वालों के लिए यह झटका था। अब वे खबरनवीसों के सामने ‘कुतर्कों’ की दलील दे रहे हैं। खबरनवीस भी समझ रहे हैं लेकिन यह सोचकर चुप्पी साध लेते हैं कि ‘पंजे वाली पार्टी’ की यह परंपरा है जो निरंतर जारी है। रही बात ‘जादूगर’ की तो उनका ‘जादू’ फेल नहीं होने वाला। वैसे भी, ‘जादू’ एक कला है, इसे सीखने के लिए ‘रगड़ाई’ के दौर से गुजरना पड़ता है। वरना हर कोई ‘जादूगर’ नहीं बन जाता क्या ?
लौट कर आए ‘वजीर ए आला’
‘वजीर ए आला’ विदेश दौरे से लौट आए। पार्टी मुख्यालय में शानदार आयोजन हुआ। वैसे भी ‘फूल वाली पार्टी’ को ‘इवेंट’ वाली पार्टी कहना अतिशयोक्ति नहीं। ‘वजीर ए आला’ को 21 किलो का माला पहनाया गया। दौरे को सफल करार दिया गया। वो भी तब जबकि अभी राइजिंग राजस्थान ग्लोबल समिट के तीन महीने बाकी हैं। रोजगार के अवसर और अर्थव्यवस्था की मजबूती को लेकर दावों की मीनारें तैयार करवाई जा रही हैं। डर यह है कि कहीं ‘सच की आंधी’ में वह मीनार धराशायी न हो जाए। ठीक वैसे, जैसे पहले वाली सरकार के दावों की पोल खुल चुकी है। लेकिन रणनीतिकारों को उम्मीद है, उप चुनाव तक इस तरह की बातें होती रहीं तो ‘सरकार’ के लिए राहें कुछ आसान रहेंगी। वैसे, सच तो यह है कि सरकार के प्रदर्शन से पार्टी को दिक्कत नहीं। विपक्ष की एकजुटता से भी खतरा नहीं। परेशानी तो ‘अपनों’ से है, जिसे झेलना मुमकिन नहीं। काश, ‘फूल वाली पार्टी’ इस दुखती रग का उपचार खोज पातीं!