सिस्टम से जूझ रहे पूर्व जेल अधीक्षक नंद सिंह शेखावत, नगर निगम और ट्रैफिक पुलिस से मांगा जवाब

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भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजधानी जयपुर की सफाई व्यवस्था, अवैध अतिक्रमण, आवारा पशुओं की समस्या और ट्रैफिक जाम जैसे मुद्दों पर राजस्थान हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने नगर निगम ग्रेटर, नगर निगम हैरिटेज और ट्रैफिक पुलिस को इस संबंध में विस्तृत जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। यह कार्रवाई एक जनहित याचिका और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व में दिए गए आदेशों के अनुपालन में की जा रही है। हाईकोर्ट ने इन समस्याओं पर उठाए गए सवालों का जवाब देने के लिए नगर निगम और यातायात पुलिस के संबंधित अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर स्पष्टीकरण देने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने इन मुद्दों पर प्रशासन की ओर से अब तक हुई कार्रवाई का विवरण तलब किया है। इस मामले में एक अहम तथ्य यह भी सामने आया है कि जयपुर के पूर्व जेल अधीक्षक नंद सिंह शेखावत ने अक्टूबर 2024 से ही लगातार शहर की बिगड़ती स्थिति को लेकर संबंधित अधिकारियों और राज्य सरकार को पत्र लिखकर आगाह किया था। उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजे गए पत्र में शहर की सड़कों पर फैले कचरे, आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या, अवैध अतिक्रमण और ट्रैफिक जाम की गंभीरता को स्पष्ट रूप से इंगित किया था।
पूर्व जेल अधीक्षक नंद सिंह शेखावत की शिकायतों के आधार पर शासन सचिवालय ने नगर निगम को आवश्यक कार्रवाई करने और रिपोर्ट भेजने के निर्देश भी दिए थे। हालांकि, नगर निगम की ओर से इस निर्देश पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। पत्राचार और चेतावनियों के बावजूद न तो कोई बैठक आयोजित की गई, न ही सड़कों पर किसी प्रकार का ठोस कार्य प्रारंभ हुआ।
शेखावत ने अपने पत्र में उल्लेख किया था कि जयपुर शहर की कई सड़कों और गलियों में नियमित रूप से कचरा फैला रहता है, जिससे दुर्गंध और बीमारियों का खतरा बना रहता है। इसके अलावा, सड़कों पर घूम रहे आवारा पशु दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। अवैध अतिक्रमण के कारण पैदल चलने वालों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ट्रैफिक व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब है कि मुख्य सड़कों पर रोजाना घंटों तक जाम लगा रहता है।
उल्लेखनीय है कि शेखावत द्वारा उठाए गए मुद्दों को लेकर अब तक प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस पहल नहीं की गई। मामले की फाइलें सचिवालय और नगर निगम के दफ्तरों में लंबित पड़ी हैं। राज्य सरकार के निर्देशों के बावजूद न तो निरीक्षण हुआ, न ही सुधारात्मक कार्रवाई।
हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब नगर निगमों और ट्रैफिक पुलिस से विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि संबंधित अधिकारी स्वयं उपस्थित होकर स्पष्टीकरण देंगे और अदालत को यह जानकारी देंगे कि जनहित में की गई शिकायतों और सुझावों पर अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
यह मामला अब राज्य सरकार, नगर निगम और यातायात विभाग के लिए जवाबदेही का विषय बन गया है। अदालत की अगली सुनवाई में प्रशासन से ठोस योजना और कार्रवाई रिपोर्ट की अपेक्षा की जा रही है।

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