



गोपाल झा.
राजस्थान में सत्ता परिवर्तन के सवा साल से अधिक हो गए। कोई भी सरकार हो, इतने समय में उसके कामकाज की दिशा तय हो जाती है, छवि बननी शुरू हो जाती है। लेकिन राजस्थान में तस्वीर कुछ और ही है। भजनलाल शर्मा, पहली बार विधायक बने और सीधे मुख्यमंत्री पद हासिल करने में कामयाब रहे। उम्मीद थी कि एक नया नेतृत्व, नई ऊर्जा और नई शैली देखने को मिलेगी। लेकिन आज जब सवा साल बाद उनके अपने ही दल के कार्यकर्ता और नेता यह सवाल कर रहे हैं कि ‘मुख्यमंत्री जी, सरकार आपके पास है या उन अफसरों के पास, जो फोन भी नहीं उठाते?’, तब मामला केवल कार्यशैली का नहीं, बल्कि लोकतंत्र के भविष्य का हो जाता है।

हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर दौरे की घोषणा क्या हुई, जैसे नेताओं और कार्यकर्ताओं की जुबान पर वर्षों से दबा हुआ लावा फूट पड़ा। दो दिन में दर्जनों नेताओं के फोन और मैसेज आ रहे, इस आग्रह के साथ कि ‘मुख्यमंत्री को बताइए, हमें अफसरशाही ने दरकिनार कर दिया है।’ सनद रहे, इनमें से ऐसे नेता भी शामिल हैं जो कभी सरकार में रसूखदार रहे हैं।
जाहिर है, किसी सरकार के लिए यह गंभीर स्थिति है। सवाल यह भी नहीं है कि फाइल कौन निपटा रहा है, असली सवाल यह है कि जनप्रतिनिधियों की सुनवाई क्यों नहीं हो रही? अगर विधायक, सांसद, मंत्री और पार्टी पदाधिकारी ही दरकिनार किए जा रहे हैं, तो फिर आम जनता की बिसात ही क्या?
अफसरशाही बेलगाम क्यों?
एक समय था जब अफसर ‘लोकसेवक’ माने जाते थे, जनता की सेवा के लिए, नेता की योजना के क्रियान्वयन के लिए। आज हालत यह है कि कई अफसर खुद को ‘शासक’ समझने लगे हैं। वे निर्णय लेते हैं, आदेश देते हैं और उल्टे नेताओं को ‘समझाने’ की कोशिश करते हैं।
कुछ अधिकारी तो इतने ‘सुपरपावर्ड’ हो चुके हैं कि पत्रकारों को भी सीधा जवाब देना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। अब सवाल यह है कि ये ‘घमंड का अटूट कवच’ अफसरों को कौन पहना रहा है? क्या उन्हें यह भरोसा मिल चुका है कि नेतृत्व शिथिल है और वे ही असली ताकत हैं?

भाजपा के लिए भी खतरे की घंटी
अगर भाजपा के अपने कार्यकर्ता, पार्षद, सरपंच, विधायक, पूर्व विधायक व अन्य जनप्रतिनिधि ही खुद को असहाय महसूस करने लगें, तो पार्टी संगठन की जड़ें खुद-ब-खुद कमजोर होने लगती हैं। और यह वही भाजपा है जिसके नुमाइंदे बात-बात पर ‘डबल इंजन की सरकार’ की दुहाई देते हैं। लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं, ‘डबल इंजन में डाइरेक्शन’ कौन तय कर रहा है?
अब वक्त है टर्निंग प्वाइंट का
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को यह समझना होगा कि यह सवा साल का वक्त जनता के लिए शायद गुजर गया हो, लेकिन पार्टी के लिए यह अलार्म बेल है। उन्हें स्पष्ट और कठोर संदेश देना होगा कि सरकार जनप्रतिनिधियों के नेतृत्व में चलेगी, अफसरों की मनमानी से नहीं। अफसरशाही को जवाबदेह बनाना होगा, जनप्रतिनिधियों, मीडिया और जनता के प्रति भी। प्रशासनिक समीक्षा बैठकों में केवल योजनाओं की बातें नहीं, बल्कि जनसंवाद, संवेदनशीलता और सिस्टम की जवाबदेही की चर्चा होनी चाहिए। सभी कलेक्टरों और एसपी को स्पष्ट निर्देश दें कि जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा अस्वीकार्य है। अफसरों की परफॉर्मेंस रिव्यू में ‘जन संवाद’ और ‘स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ समन्वय’ को भी मानक बनाया जाए। जरूरत पड़े तो बेलगाम अफसरों का स्थानांतरण भी हो, ताकि संदेश जाए, सरकार चुनी हुई है, नियुक्त नहीं।

लोकतंत्र की असली तस्वीर
लोकतंत्र में सरकार केवल चुनाव जीतने से नहीं चलती, वह संवाद से, संतुलन से और सम्मान से चलती है। जनप्रतिनिधि अगर जनता की आवाज हैं, तो अफसर उस आवाज को कार्य में बदलने की मशीनरी। लेकिन अगर मशीनरी ही आवाज को दबाने लगे, तो फिर लोकतंत्र मौन हो जाता है। मुख्यमंत्रीजी! इस बात को महसूस कीजिएगा।


