गोपाल झा.
अखबार। यह शब्द मात्र नहीं, हमारे जैसे लाखों खबरनवीसों के लिए जीने का आधार है। अल सुबह से सोशल मीडिया के माध्यम से भारतीय समाचार पत्र दिवस पर बधाइयां मिल रही हैं। जाहिर है, समाचार पत्रों की ताकत बरकरार है। याद आते हैं वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर। पिंकसिटी प्रेस क्लब में पत्रकारों के एक सम्मेलन में उन्होंने समाचार पत्र की स्वीकार्यता पर व्याख्यान दिया था। उन्होंने दो टूक कहा था कि टीवी पत्रकारिता से प्रिंट पत्रकारिता को खतरा नहीं है। टीवी पत्रकारिता में ग्लैमर है, प्रिंट मीडिया साख का प्रतीक है। आप देखकर भी उस स्टोरी पर भरोसा नहीं कर सकते लेकिन लिखी हुई खबरें विश्वसनीयता का प्रमाण मानी जाती रही हैं।
भारतीय लोकतंत्र में समाचार पत्रों की भूमिका सदैव ही महत्वपूर्ण रही है। भारतीय समाचार पत्र दिवस हमें यह याद दिलाता है कि कैसे अखबारों ने देश की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक यात्रा को आकार दिया है। यह दिन भारतीय पत्रकारिता के उस संघर्ष और योगदान को समर्पित है, जिसने देश को जागरूकता, स्वतंत्रता और सत्य की राह पर अग्रसर किया।
भारत में समाचार पत्रों का इतिहास दो शताब्दियों से अधिक पुराना है। 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिकी द्वारा प्रकाशित ‘बंगाल गजट’ को पहला भारतीय समाचार पत्र माना जाता है। इसके बाद 19वीं और 20वीं शताब्दी में पत्रकारिता का प्रभाव बढ़ा और कई अखबारों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के ‘केसरी’ और महात्मा गांधी के ‘यंग इंडिया’ व ‘हरिजन’ जैसे पत्रों ने जनचेतना जागृत की। स्वतंत्रता के बाद, समाचार पत्रों ने लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे सत्ता पर नजर रखने वाले प्रहरी बने और जनहित से जुड़े मुद्दों को उठाने का कार्य किया।
21वीं सदी में डिजिटल मीडिया के आगमन के साथ, पत्रकारिता का स्वरूप बदलने लगा। सोशल मीडिया और वेब पोर्टलों ने खबरों की गति और उपलब्धता को बढ़ा दिया, जिससे पारंपरिक समाचार पत्रों के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगने लगे। इसके बावजूद, अखबारों की ताकत और विश्वसनीयता बनी हुई है। इसका कारण है उनकी प्रामाणिकता और गहराई से किया गया विश्लेषण। समाचार पत्रों में प्रकाशित सामग्री तथ्यों की पुष्टि के बाद ही छपती है, जिससे उनकी विश्वसनीयता बरकरार रहती है। वहीं, डिजिटल माध्यमों पर फेक न्यूज और अपुष्ट सूचनाओं की भरमार रहती है, जिससे अखबारों की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है।
अखबारों की सबसे बड़ी ताकत उनकी प्रमाणिकता होती है। सोशल मीडिया पर फैली झूठी खबरों के बीच समाचार पत्रों की तथ्यपरक पत्रकारिता उन्हें जनता का भरोसेमंद स्त्रोत बनाती है। अखबार केवल खबरें नहीं देते, बल्कि उनकी गहराई से व्याख्या और विश्लेषण भी प्रस्तुत करते हैं।
प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। समाचार पत्र सरकार और प्रशासन के कामकाज पर नजर रखते हैं और जनता की आवाज को सशक्त करते हैं। समाज को शिक्षित करने की भूमिका दृ समाचार पत्र केवल खबरें ही नहीं देते, बल्कि सामाजिक जागरूकता बढ़ाने का भी कार्य करते हैं। वे शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य, राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि विषयों पर जानकारी देते हैं।
हालांकि अखबारों की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है, फिर भी उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऑनलाइन समाचार पोर्टलों और सोशल मीडिया के कारण पाठकों की संख्या में कमी आई है। लोग त्वरित खबरें पसंद करने लगे हैं, जिससे अखबारों के पाठक कम हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर फैलने वाली झूठी खबरों से पत्रकारिता पर असर पड़ा है। हालांकि समाचार पत्र सत्यापन के बाद ही खबरें प्रकाशित करते हैं, फिर भी लोगों का ध्यान सोशल मीडिया पर अधिक होने से अखबारों की विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है। प्रिंटिंग और वितरण की लागत बढ़ने से समाचार पत्र उद्योग को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। डिजिटल युग में अखबारों को भी नई तकनीकों के साथ तालमेल बैठाना पड़ रहा है। ऑनलाइन संस्करण और डिजिटल सदस्यता जैसी नई रणनीतियाँ अपनानी पड़ रही हैं। आज समाचार पत्र भी डिजिटल रूप में उपलब्ध हो रहे हैं। कई प्रमुख अखबारों ने अपने वेब पोर्टल और मोबाइल एप विकसित किए हैं ताकि वे पाठकों की बदलती आदतों के अनुसार स्वयं को ढाल सकें। इसके अलावा, अखबारों को अपनी रिपोर्टिंग में और अधिक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा ताकि वे डिजिटल मीडिया से अलग एक प्रामाणिक और गहरी जानकारी देने वाले स्रोत बने रहें।
यह कहने से गुरेज नहीं कि अब भी तोप मुकाबिल है अखबार। यह कहावत आज भी उतनी ही सटीक बैठती है जितनी पहले थी। अखबार न केवल सूचना का स्रोत हैं, बल्कि वे समाज का दर्पण भी हैं। डिजिटल क्रांति के बावजूद समाचार पत्रों की उपयोगिता और महत्व कम नहीं हुआ है, बल्कि उनकी प्रामाणिकता और गहराई ने उन्हें और भी आवश्यक बना दिया है। भारतीय समाचार पत्र दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि पत्रकारिता का उद्देश्य केवल खबरें देना नहीं, बल्कि समाज को जागरूक करना, लोकतंत्र की रक्षा करना और सत्य को उजागर करना है। अखबारों की यह लड़ाई जारी है, और यह संघर्ष उन्हें और अधिक सशक्त बनाएगा।