मोदी पर अंकुश लगाना चाहते हैं भागवत!

भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
भाजपा की राजनीति में एक बार फिर से संगठन और सरकार के बीच संतुलन की चुनौती सामने आ गई है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर चल रही उठापटक ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। यह टकराव केवल एक व्यक्ति विशेष के चयन का मसला नहीं है, बल्कि भाजपा की भावी दिशा और नेतृत्व मॉडल को लेकर दो ध्रुवों के बीच खिंचाव का संकेत है। भाजपा के नए अध्यक्ष को लेकर फैसला टलता जा रहा है। यह विलंब सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा नहीं, बल्कि उस रस्साकशी का नतीजा है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस दोनों अपनी-अपनी पसंद को प्राथमिकता देने का प्रयास कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, मोदी चाहते हैं कि भाजपा की बागडोर उनके करीबी और विश्वस्त व्यक्ति के हाथों में जाए, जिससे 2029 के चुनावों तक पार्टी सरकार के साथ पूर्ण समन्वय में रहे। वहीं, आरएसएस अब मोदी को पूरी तरह से ‘फ्री हैंड’ देने के मूड में नहीं है।
संजय जोशी की वापसी की सुगबुगाहट
इस विवाद के केंद्र में एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है, संजय जोशी। गुजरात के राजनीतिक गलियारों में संजय जोशी को नरेंद्र मोदी का राजनीतिक गुरु माना जाता था। लेकिन समय के साथ दोनों के रिश्ते इतने कड़वे हो गए कि भाजपा और संघ दोनों को इनकी दुश्मनी की कीमत चुकानी पड़ी। अब आरएसएस एक बार फिर संजय जोशी के नाम को आगे बढ़ाकर मोदी को असहज स्थिति में ला चुका है। संघ का यह दांव रणनीतिक है, वह मोदी को यह जताना चाहता है कि अब वह हर निर्णय में अपनी भूमिका निभाना चाहता है। हालांकि मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इस नाम से पूरी तरह असहमत बताए जा रहे हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि संजय जोशी की वापसी का मतलब होगा मोदी युग के प्रभाव का कमजोर होना। ऐसे में मोदी और शाह हरसंभव कोशिश कर रहे हैं कि जोशी को अध्यक्ष पद से दूर रखा जाए।


संभावित दावेदारों की फेहरिस्त
जोशी के अलावा अन्य नामों पर भी चर्चा जारी है। मनोहर लाल खट्टर, शिवराज सिंह चौहान, धर्मेंद्र प्रधान, मनोज सिन्हा और वसुंधरा राजे जैसे वरिष्ठ नेता रेस में हैं। इनमें खट्टर संघ की पहली पसंद माने जा रहे हैं, जबकि चौहान की छवि संतुलित नेता के रूप में उभरती रही है। धर्मेंद्र प्रधान संगठन और सरकार दोनों में अच्छी पकड़ रखते हैं। वहीं, वसुंधरा राजे का नाम भी चर्चा में जरूर है, लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी उन्हें पसंद नहीं करती। संघ के सूत्रों का यह भी कहना है कि यदि संजय जोशी को अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो उन्हें संगठन महासचिव की भूमिका देकर भाजपा की रणनीतिक दिशा पर उनका प्रभाव सुनिश्चित किया जाएगा। इसका मकसद साफ है, मोदी की रणनीति पर एक नियंत्रण रखना और संगठन को पूरी तरह से प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन नहीं होने देना।
गडकरी पर संघ का भरोसा
इस पूरे घटनाक्रम का एक और रोचक पहलू यह है कि संघ अब मोदी के विकल्प की तलाश में भी जुट गया है। सूत्रों के अनुसार, नितिन गडकरी इस विकल्प के रूप में सामने लाए जा सकते हैं। गडकरी की छवि एक सहज, संवादप्रिय और संघनिष्ठ नेता की रही है। हालांकि मोदी और गडकरी के बीच भी संबंध सहज नहीं हैं। गडकरी का स्वतंत्र रवैया और दिल्ली की सत्ता के इर्दगिर्द मंडराने से इंकार करना उन्हें मोदी के समीकरण से बाहर कर देता है। संघ का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी इसी साल 75 साल के हो जाएंगे, जाहिर है, उनकी सक्रिय राजनीति में भूमिका कम हो सकती है और ऐसे में पार्टी को एक नया नेतृत्व मॉडल चाहिए जो संगठन और सरकार दोनों में संतुलन स्थापित कर सके।


संघ और सरकार के रिश्ते की असहजता
मोदी के नेतृत्व में पिछले एक दशक में भाजपा एक केंद्रित नेतृत्व वाली पार्टी बन चुकी है। आरएसएस ने अब तक मोदी को पूरी छूट दी, लेकिन अब उसे लग रहा है कि यह केंद्रीकरण भाजपा के मूल चरित्र के खिलाफ जा रहा है। मोदी के फैसले अकेले लिए जाते हैं, जिनमें न तो संगठन की सहमति होती है, न ही संघ की। यही वजह है कि अब संघ भाजपा को वापस ‘संगठन आधारित’ पार्टी बनाने की दिशा में प्रयासरत है।
अध्यक्ष पद को लेकर हो रही देरी और नामों पर बनी असहमति इस बात की ओर संकेत करती है कि भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं है। आने वाले समय में यह टकराव और गहरा हो सकता है, विशेषकर तब जब 2024 के चुनावों के बाद भाजपा को अपनी नीति, नेतृत्व और संगठनात्मक ढांचे पर पुनर्विचार करना पड़े।
भाजपा अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां उसे तय करना है कि वह एक नेता केंद्रित पार्टी बनेगी या फिर सामूहिक नेतृत्व और संगठन आधारित राजनीति की राह पर लौटेगी। संघ और मोदी के बीच बढ़ती दूरी इस फैसले को और जटिल बना रही है। साफ है, भाजपा की आंतरिक राजनीति में एक बड़ा तूफान आने वाला है, और यह केवल व्यक्तियों की पसंद-नापसंद नहीं, बल्कि विचारधारा और भविष्य की दिशा को लेकर निर्णायक संघर्ष है।

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