वन नेशन, वन इलेक्शन: फायदे और नुकसान

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डॉ. सन्तोष राजपुरोहित.
न नेशन, वन इलेक्शन’ (समानांतर चुनाव) नीति के तहत राजस्थान जैसे राज्यों में आर्थिक और प्रशासनिक लाभ हो सकते हैं। यह नीति लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों को एक साथ आयोजित करने का प्रस्ताव देती है। राजस्थान के संदर्भ में इस नीति के संभावित आर्थिक लाभ यह हो सकते हैं। राजस्थान में हर विधानसभा चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। निर्वाचन आयोग, राजनीतिक दल, और उम्मीदवारों का खर्च अलग-अलग होता है। इससे बार-बार चुनाव कराने की जरूरत खत्म होने से बड़ी मात्रा में धन की बचत होगी। लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर खर्च में 30-40ः तक की कमी हो सकती है। चुनाव के दौरान पुलिस बल, सरकारी कर्मचारी, और अन्य संसाधनों का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है। चुनावी प्रक्रिया में सरकारी कर्मचारियों की बार-बार तैनाती से बचा जा सकेगा। स्कूल, कॉलेज और अन्य सरकारी संस्थान चुनाव प्रक्रिया के कारण बंद नहीं होंगे, जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित नहीं होगी। चुनाव आचार संहिता बार-बार लागू होने से विकास कार्य रुक जाते हैं। राजस्थान जैसे राज्यों में बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास परियोजनाओं पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को रोका जा सकता है।


विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी विकास योजनाओं को समय पर लागू किया जा सकेगा। बार-बार चुनाव राजनीतिक अस्थिरता का कारण बनते हैं। राज्य में निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनेगा, जिससे उद्योग और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
राजनीतिक स्थिरता से विदेशी और घरेलू निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा। चुनाव प्रक्रिया के दौरान प्रशासन का ध्यान विकास कार्यों से हटकर चुनाव प्रबंधन पर केंद्रित हो जाता है। चुनाव प्रक्रिया एक बार में पूरी होने से प्रशासनिक संसाधनों का कुशल उपयोग संभव होगा। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सरकारी सेवाओं की आपूर्ति में बाधा नहीं आएगी। वर्तमान में राजस्थान में हर चुनाव के दौरान राजनीतिक दल विज्ञापन, प्रचार, और रैलियों पर भारी खर्च करते हैं। एक साथ चुनाव होने से राजनीतिक दलों का खर्च कम होगा। उम्मीदवारों और दलों के लिए वित्तीय पारदर्शिता बढ़ेगी। राजस्थान में चुनावों के दौरान सुरक्षा कारणों से पर्यटन गतिविधियों में व्यवधान आता है। स्थिर राजनीतिक माहौल और कम चुनावी व्यवधान से पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। विदेशी पर्यटकों के आगमन में वृद्धि हो सकती है। बार-बार चुनाव से जनता में चुनाव थकान होती है। एक साथ चुनाव होने से नागरिकों की भागीदारी बढ़ेगी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होगी। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ नीति राजस्थान में चुनावी खर्च में कमी, प्रशासनिक संसाधनों का कुशल उपयोग, और विकास परियोजनाओं में तेजी जैसे कई आर्थिक लाभ प्रदान कर सकती है। इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सभी हितधारकों (सरकार, निर्वाचन आयोग, और राजनीतिक दलों) का सहयोग आवश्यक है।
संभावित नुकसान और सीमाएं
संविधानिक और कानूनी अड़चनें:
संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, और 174 के तहत संसद और विधानसभाओं का कार्यकाल अलग-अलग होता है। इसे एक साथ करना संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता को जन्म देगा। राज्यों की स्वायत्तता पर सवाल उठ सकता है।
लोकल मुद्दों की अनदेखी: एक साथ चुनाव होने पर स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के साये में दब सकते हैं। क्षेत्रीय पार्टियों की प्रासंगिकता कम हो सकती है।
लॉजिस्टिक और प्रशासनिक चुनौतियां: इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराने के लिए भारी संख्या में सुरक्षा बलों और चुनाव अधिकारियों की आवश्यकता होगी। एक बार में चुनाव कराना अव्यवहारिक हो सकता है, खासकर बड़े राज्यों और संवेदनशील क्षेत्रों में।
मध्यावधि चुनाव की स्थिति: अगर किसी राज्य की सरकार कार्यकाल से पहले गिर जाए, तो पूरे देश में दोबारा चुनाव कराना कठिन होगा। इस स्थिति में, राष्ट्रपति शासन या अस्थायी व्यवस्था पर निर्भरता बढ़ सकती है।
राजनीतिक अस्थिरता का खतरा: एक साथ चुनाव कराने से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी हो सकती है। अलग-अलग चुनाव क्षेत्रीय दलों को मजबूत करते हैं, जो संघीय ढांचे के लिए आवश्यक है।
आर्थिक बोझ: यद्यपि इसे लागत कम करने के लिए प्रस्तावित किया गया है, लेकिन प्रारंभिक स्तर पर इसे लागू करने की प्रक्रिया महंगी और जटिल हो सकती है।
निष्कर्ष: ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक आकर्षक विचार है, लेकिन इसे लागू करने से पहले सभी संवैधानिक, प्रशासनिक, और व्यावहारिक पहलुओं पर गहन चर्चा और सहमति आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना जरूरी होगा कि इससे लोकतंत्र और संघीय ढांचे को किसी भी तरह की क्षति न हो।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के अध्यक्ष रहे हैं

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