सारनाथ….यहां बुद्ध ने दिया था दिव्य ज्ञान!

राजकुमार सोनी
मो 09460917989

काशी विश्वनाथ और प्रयागराज की यात्रा के दौरान हम भगवान बुद्ध की पवित्र नगरी सारनाथ भी गए, जहां भगवान बुद्ध ने दिव्य ज्ञान दिया। परिवार के साथ इस यात्रा में यह जानकर सुखद लगा कि भगवान बुद्ध के जीवन काल से संबंधित चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक सारनाथ है। पहला प्रमुख तीर्थ स्थल लुंबिनी (नेपाल) में स्थित है जहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। दूसरा बोधगया (बिहार)जहां भगवान बुद्ध ने बोधी प्राप्ति यानी शिक्षा प्राप्त की थी। तीसरा सारनाथ (बनारस) जहां भगवान बुद्ध ने दिव्य ज्ञान यानि प्रथम धर्मोंपदेश दिए थे। चौथा कुशीनगर (गोरखपुर) जहां भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था।

सारनाथ में हमने मनोज कुमार गाइड (भारत सरकार द्वारा प्रशिक्षित) को साथ लेकर सारनाथ स्थल को बारीकी से देखा और समझा। यहां पर तीसरी शती ई. पूर्व से लेकर बारहवीं शती ई. के मध्य निर्मित अनेक विहार स्तूप,मन्दिर,अभिलेख,मूर्ति शिल्प एवं अन्य पूरावशेष जैसे धर्मराजिका स्तूप,अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ,भगवान बुद्ध का पवित्र मन्दिर, घामेख स्तूप (कहा जाता है कि इस धामेख स्तूप के भगवान बुद्ध की नाखून, दांत, अस्थियां आदि का एक हिस्सा एक हरे रंग के बॉक्स में करीब 2,200 वर्ष पहले रखा हुआ है)। इस धामेख स्तूप के बाहर एक पत्थर निकला हुआ है, जिसे छूकर बौद्ध श्रद्धालु ‘बुद्धम शरणम गच्छामि, धम्मम शरणम गच्छामि और संघम शरणम गच्छामि’ मंत्र का जाप करते हैं। कहा जाता है कि इस मंत्र के जाप से परम शांति की प्राप्ति होती है और हमने भी ऐसा ही किया।
वहां पर गाइड के साथ घूम-घूम कर हमने चौखंडी स्तूप, मूलगंध कुटी, धर्मचक्र जिन्न विहार, अन्या संघाराम, बहुसंख्य मनौती स्तूप आदि देखे। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने पहले पांच शिष्यों को पहला धर्म उपदेश यही दिया था। जो धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से बौद्ध साहित्य में वर्णित है। यही सारनाथ में भगवान बुद्ध ने प्रथम बौद्ध संघ भी की स्थापना की थी। बौद्ध ग्रंथों में इस स्थान के लिए ऋषिपत्त्तन अथवा इसिपत्तन एवं मृगदाव अथवा मृगदाय आदि नाम उल्लेखित है।
सारनाथ संग्रहालय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का प्राचीनतम स्थल संग्रहालय में 6,832 मूर्तियां और कलाकृतियां आदि देखीं और यहां भारतीय मुद्रा पर छपा अशोक चक्र और चार सिंह चिन्ह यहीं से लिया गया है। संग्रहालय के अंदर अशोक और चारसिंह का चिन्ह आज भी सुरक्षित रखा हुआ है, उन पर करीब दो हजार तीन सौ साल पहले की गई पालिश की चमक आज भी बरकरार है, लेकिन अशोक चक्र और चारसिंह के मुंह आदि टूटे हुए हैं। देखने के बाद मन में मुगल शासकों और आक्रांताओ के प्रति गहरा रोष और  मलाल है।भ् ाारत के शासकों की एकता और कमजोर शासन प्रणाली के चलते इन लुटेरों ने भारत की प्राचीन सभ्यता संपदा को जमकर लूटा और तोड़फोड़ की, इसका जीता जागता प्रमाण सारनाथ भी है, जहां मोहम्मद गोरी ने आक्रमण करके इसे तोड़फोड़ कर नष्ट भ्रष्ट किया। यहां की स्वर्ण मूर्तियां उठाकर ले गया। कला मूर्तियों को तोड़ डाला। मैंने जितने भी मूर्तियां और अवशेष देखें, सब कहीं ना कहीं से टूटे हुए थे। मुगल शासकों, लूटेरों और अन्य आक्रांताओं का उन मूर्तियों पर ऐसे आक्रोश का कारण नजर आता है कि जैसे किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के अनुसार धन नहीं मिलने पर वह क्रोधवश या चिढ़ कर मूर्तियां तोड़ डालता है।
यह जानकार संतोष हुआ कि योगी सरकार इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित कर रही है। धामेख स्तूप पर शाम को लाइट एंड साउंड का शानदार कार्यक्रम होता है जिसे देखने रोजना हजारों यात्री आते हैं। सारनाथ का पूरा भ्रमण कर मन आनंद से भी भरा, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी सारनाथ स्थल प्रत्येक चीज को सीधा खुद देख रहे हैं।
(लेखक भाजपा ओबीसी मोर्चा श्रीगंगानगर के जिलाध्यक्ष हैं)

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