समाज में संभावनाओं का द्वार खोलेगा ‘कला और कद्रदान’ कार्यक्रम, क्यों बोले मूल ओबीसी समाज के लोग ?

भटनेर पोस्ट सोशल डेस्क.
हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय स्थित जीएस रिसोर्ट में रविवार यानी 29 दिसंबर को हनुमानगढ़ जिला वैश्य महा सम्मेलन की ओर से ‘कला और कद्रदान’ विषयक कार्यक्रम हुआ। इसमें वैश्य समाज और मूल ओबीसी से जुड़ी जातियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बेहद गरिमामयी कार्यक्रम में अतिथियों की औपचारिकता के बिना विभिन्न जातियों के प्रतिनिधियों ने अनौपारिक तौर पर अपनी बात रखी। कार्यक्रम के सूत्रधार अमित माहेश्वरी ने कहाकि वैश्य समाज का यह पहला प्रयास है जिसमें मूल ओबीसी से जुड़े प्रतिनिधियों के साथ सामाजिक तौर पर मंचं साझा करने का अवसर उपलब्ध करवानने का प्रयास किया गया है। चूंकि कोई भी जाति अकेले दम पर विकास नहीं कर सकती। इसके लिए उसे दूसरी जातियों के सहयोग की जरूरत पड़ती है। पूर्वजों ने हजारों साल पहले इसी सोच के साथ सामाजिक ताना बाना तैयार किया था जो कलांतर में थोड़ा कमजोर हुआ लेकिन अब इसकी जरूरत फिर महसूस की जा रही है। अमित माहेश्वरी ने कहाकि सामाजिक समरसता बेहद जरूरी है। इसके लिए सभी जातियों को आपसी भाईचारे की भावना के साथ सांस्कृतिक तौर पर एक होने की जरूरत है।
उद्यमी शिवरतन खड़गावत, रामनिवास माण्डन, सुरेंद्र जलंधरा, मनोज सैनी, रामप्रताप भाट, दुर्गादत्त सैनी, कृष्ण घोड़ेला, रामलाल किरोड़ीवाल, रामकुमार मोयल, कृष्ण जांगिड़, मांगीलाल सुथार, बालकृष्ण गोल्याण, तरुण विजय, सुशील जैन, अनिल गुंबर आदि ने अपनी बात रखी। सबने कार्यक्रम को उपयोगी बताते हुए हनुमानगढ जिला वैश्य महासम्मेलन की पहल को मुक्तकंठ से सराहा। वक्ताओं ने कहाकि हनुमानगढ़ में इस पहल को व्यापक करने की जरूरत है।
अपेक्षित परिणाम का भरोसा
वक्ताओं ने कहाकि जब वैश्य और मूल ओबीसी समाज मिलकर कोई पहल करेगा तो उसके अपेक्षित परिणाम आएंगे। यूं भी गत चुनावों में इस एकता के सकारात्मक परिणाम आए और आगे और संभावनाएं फलीभूत होंगी। खास बात है कि कार्यक्रम में पहुंचे विधायक गणेशराज बंसल को दूसरी पंक्ति में बैठने की जगह मिली। आयोजकों ने बताया कि यहां पर अतिथि और अलग से स्वागत करने की परंपरा नहीं है। न ही किसी को अतिथि बनाने की परंपरा है। सब एक हैं और इन परंपराओं में ऐसा दिखता भी है।
सैद्धांतिक पक्ष को व्यावरिक जामा पहनाने की कोशिश

हनुमानगढ़ जिला वैश्य महासम्मेलन के प्रतिनिधि और कार्यक्रम के प्रणेता अमित माहेश्वरी ने स्पष्ट किया कि यह एक नवाचार है। चूंकि सभी जातियों के मिलने से ही समाज का निर्माण होता है। इस सैद्धांतिक पक्ष को व्यावहारिक जामा पहनाने का प्रयास किया गया है। इसके दूरगामी परिणाम नजर आएंगे। उन्होंने वैश्य व मूल ओबीसी जातियों से पहुंचे प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे सकारात्मक सोच के साथ एकजुटता का संकल्प लें और मिलकर अपने सपनों को साकार करें।
‘कला और कद्रदान’ का मतलब
अमित माहेश्वरी ने कार्यक्रम के मोटो ‘कला और कद्रदान’ की व्याख्यात करते हुए बताया कि कुम्हार, भाट, सैनी, माली व अन्य मूल ओबीसी की जातियां अपनी विशिष्ट कलाओं के लिए विख्यात है। इनकी कलाओं के कद्रदान के तौर पर समूचा समाज है। इसमें वैश्य भी है। जब कला और इनके कद्रदान एक साथ मंच साझा कर संगठन का हिस्सा बनेंगे तो दोनों के लिए असीम संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। इसलिए इस कार्यक्रम का यह नाम रखा गया।

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