




डॉ. संतोष राजपुरोहित.
डॉ. मनमोहन सिंह सिर्फ प्रधानमंत्री नहीं बल्कि अपने सौम्य व समधुर स्वभाव, उच्च कोटि के विद्वान व महान अर्थशास्त्री के तौर पर भी युगों-युगों तक भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में स्मरण रखे जाएंगे। उन्होंने भारतीय अर्थशास्त्र और नीति निर्माण में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 1985 में अहमदाबाद में आयोजित इंडियन इकनोमिक एसोसिएशन के अधिवेशन में वे अध्यक्ष रहे। इस अधिवेशन में उनकी प्रमुख उपलब्धियां और योगदान निम्नलिखित हैं।
सुधारों का दृष्टिकोण: डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक नीतियों और सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर और प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए नीतिगत बदलावों का समर्थन किया।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण: डॉ. सिंह ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारत के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए विचार प्रस्तुत किए। यह दृष्टिकोण बाद में उनके आर्थिक उदारीकरण की नीतियों में परिलक्षित हुआ।
शिक्षा और अनुसंधान पर बल: डॉ. मनमोहन सिंह ने अर्थशास्त्र में अनुसंधान और शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने युवा अर्थशास्त्रियों को प्रेरित किया कि वे नीति निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाएं।
भारतीय अर्थव्यवस्था के मुद्दे: अधिवेशन में उन्होंने कृषि, औद्योगिकीकरण, सार्वजनिक वित्त और मुद्रास्फीति जैसे विषयों पर चर्चा की, जो उस समय भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे।
लंबी अवधि की रणनीति: डॉ. सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए दीर्घकालिक विकास योजनाओं पर जोर दिया, जिनमें आर्थिक स्थिरता, समावेशी विकास, और गरीबी उन्मूलन प्रमुख थे। उनका यह भाषण और नेतृत्व आर्थिक सुधारों और उदारीकरण के लिए उनकी बाद की भूमिका के संकेतक थे। उनकी इस भूमिका ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने में अहम योगदान दिया।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रहते हुए मौद्रिक नीति में सुधार, वित्तमंत्री के रूप में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत करना और प्रधानमंत्री के तौर पर आर्थिक परिदृश्य में भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंदी के दौर में भी सशक्त बनाये रखना उनकी दूरदृष्टि का ही परिणाम थी।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के पूर्व अध्यक्ष हैं



