कौन बनाएगा सरदार पटेल का नया भारत ?

image description

वेदव्यास.
राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री थे जिन्हें आज हम सब लौहपुरुष के रूप में जानते हैं। अंग्रेजों की दासता से मुक्त भारत के इतिहास में जहां महात्मा गांधी को राष्ट्र निर्माता और जवाहरलाल नेहरू को लोकतंत्र के नव निर्माण का प्रणेता माना जाता है वहां वल्लभभाई पटेल को राष्ट्रीय एकता का मंत्रदाता कहा जाता है। गांधी, नेहरू और पटेल की त्रिमूर्ति समझे बिना नई पीढ़ी-भारत की खोज का कोई सपना नहीं जान सकती। हम नहीं जानते कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता किसने बनाया, नेहरू को चाचा नेहरू किसने कहा और पटेल को लौहपुरुष का प्रतीक क्यों पढ़ाया गया। वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के करमसद गांव में और देहांत 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई में हुआ था। आप सोचें कि जिस तरह स्वामी रामकृष्ण के लिए विवेकानंद थे उसी तरह महात्मा गांधी के लिए वल्लभभाई पटेल क्यों थे ?
राष्ट्रीय एकता की कहानी को पढ़कर ही हम यह कह सकते हैं कि तब सात सौ से अधिक देश रियासतों को पटेल ने साम, दाम, दंड और भेद में किस तरह भारत की एकता के सूत्र में पिरोया था और महान भारत का इतिहास-भूगोल जोड़ा था। नया भारत अब हमें ऐसा दूसरा कोई सरदार पटेल शायद ही दे सके। आजादी के 77 साल बाद जो लोग अब भारत के इतिहास को बदलने का पूर्णलेखन कर रहे हैं उन्हें इस तथ्य और सत्य को स्वीकारना होगा कि भारत में लोकतंत्र और संविधान का शासन जिस दूरगामी सोच का परिणाम है उसकी आधारशिला का निर्माण कोई 200 साल के स्वतंत्रता संग्राम से और भारत की विविधता से एकता की अवधारणा से हुआ है। यही कारण है कि भारत का इतिहास आज भी सहिष्णुता और अहिंसा का संगम है।
वल्लभभाई पटेल को उनके जाने के अब 75 साल बाद याद करने की प्रासंगिकता पर जब हम आज की ऐतिहासिक भ्रांतियों को लेकर विचार करते हैं तो हमें लगता है कि हम 2024 में 1947 से अधिक विभाजित हैं, असहिष्णु हैं तथा अलोकतंत्रवादी हैं। यदि आज सरदार पटेल जीवित होते तो उन्हें ये देखकर पीड़ा होती कि भारत की आत्मा अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होकर भी आज धर्म, जाति, क्षेत्रीयता और भाषा की संकीर्णताओं तथा पाखंड से कितना कष्ट में है? पटेल को राष्ट्रीय एकता की सरकारी दौड़ का हिस्सा बनाकर हम युवा पीढ़ी को ये तक नहीं बता पा रहे हैं कि एकता की आवश्यकता अनेकता के संघर्ष में ही क्यों याद आती है और दो विश्व युद्ध की विभीषिका भोगकर ही कोई महान लेखक टाल्सटाय फिर ‘युद्ध और शांति‘ जैसा उपन्यास कैसे लिखता है?
हमारी एकता तो अपने स्वतंत्रता संग्राम को भूलकर इतनी दयनीय हो गई है कि नया भारत बनाने के लिए और राष्ट्रवाद लाने के लिए तथा सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका डालनी पड़ी। वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी और अंबेडकर इसीलिए अचानक आज सबसे अधिक सरकारी स्तर पर गाए-बजाए जा रहे हैं कि एक सौ चालीस करोड़ देशवासियों के सपनों में दलित आदिवासियों का निरंतर उत्पीड़न और अल्पसंख्यकों का विकास की मुख्यधारा से निष्कासन तथा महिलाओं-बच्चों का लगातार शोषण हो रहा है। आज के दिन आधुनिक भारत को नया भारत बनाने की जो मुहिम चल रही है उसी का ये परिणाम है कि सत्य और अहिंसा के अन्वेषक महात्मा गांधी को स्वच्छता मिशन का कार्यभार दे दिया गया है तो विवेकानंद को सनातन सहिष्णु मानवता से हटाकर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का युवा उद्घोषक बना दिया गया है तो अंबेडकर हिंदुत्व की छतरी में खड़ा कर दिया गया है तो नेहरू के भारत निर्माण की अमरगाथा से बाहर निकालकर पटेल को सरदार सरोवर में एकता का सर्वाेच्च शिखर बनाकर नर्मदा की गोद में बैठा दिया गया है।


वल्लभभाई पटेल के सपनों का नया भारत अब कुछ इस तरह बनाया जा रहा है कि पिछड़ी जातियों के सभी पटेल आरक्षण मांग रहे हैं, सभी किसान कर्ज माफी और आत्महत्या की दौड़ में जुट गए हैं तथा भारत की नौकरशाही पारदर्शिता, संवेदनशीलता और जवाबदेह से मुक्त होना चाहती है। मुझे याद है कि सरदार पटेल देश के पहले गृहमंत्री और सूचना प्रसारण मंत्री थे लेकिन अब आप इन दो मंत्रालयों को ही देख लें तो पता चलेगा कि सरदार पटेल को वहां कोई नहीं जानता। दरअसल, यु्ग बदल गया है और सरदार पटेल जैसे सभी महापुरुष अब नए भारत के पाठ्यक्रम से निकाल दिए गए हैं और प्रेरणाओं के मंदिरों में भूखा-नंगा और कुपोषित लोकतंत्र अच्छे दिन के लिए घंटी-घंड़ियाल बजा रहा है। राम के दरबार में रहीम की कोई सुन ही नहीं रहा है। वल्लभभाई पटेल के बहाने कुछ बातें आपको फिर याद दिलाना चाहता हूं कि हमारे राजस्थान राज्य की स्थापना 30 मार्च, 1949 को पटेल के कर कमलों से हुई थी। कृपया हमें बताएं कि नए राजस्थान में सरदार पटेल की कौनसी आवाजें आज सुनाई पड़ रही हैं। राजस्थान में सरदार पटेल की कोई एकता यात्रा कहीं होती है क्या? हम आजकल पटेल को याद करके नेहरू को छोटा साबित करने में लगे हुए हैं जो कि इतिहास के साथ अन्याय है। हम एक बार फिर से अपने लौहपुरुष और राष्ट्रीय एकता के निर्माता की जीवन गाथा को पढ़े तो सही और जानने का प्रयत्न तो करें कि सरदार पटेल बनने के लिए जीवन दर्शन नई पीढ़ी को दें ताकि भारत के लोकतंत्र में फिर किसी एकता, समता और सहज सहिष्णुता का संचार हो सके। सरदार पटेल एक किसान के बेटे थे और आज का दुख ये है कि किसान की कोई सुनता ही नहीं है? अतः वल्लभभाई पटेल को याद करने तथा उनके बताए मार्ग पर चलते रहने का जुनून नए युवा भारत में पैदा होना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार हैं, प्रस्तुत आलेख ‘अंधेरे में रोशनी की तलाश‘ पुस्तक से साभार)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *