वेदप्रकाश शर्मा.
पूरे राजस्थान में भादरा की राजनीति हमेशा चर्चा में ही रहती है। भाजपा ने श्राद्ध पक्ष में प्रथम लिस्ट जारी करते हुए भादरा विधानसभा क्षेत्रसे पूर्व विधायक संजीव बेनीवाल को प्रत्याशी घोषित किया है।
संजीव बेनीवाल ने अपना प्रथम चुनाव 1998 में कांग्रेस की टिकट पर जीता था और उसके बाद लगातार दो चुनाव कांग्रेस की टिकट पर हारने के बाद 2013 के चुनाव में भाजपा में शामिल हुए और भाजपा की टिकट से चुनाव जीता। 2018 के चुनाव में भाजपा ने फिर उन्हें प्रत्याशी बनाया और वह चुनाव हार गए। इस बार तीसरी बार भाजपा ने संजीव बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया है। बेनीवाल का पिछला रिकॉर्ड देखे तो वह एक बार चुनाव जीतते हैं और फिर दो बार हारते हैं।
भादरा विधानसभा क्षेत्र में पार्टियां की टिकट का कोई ज्यादा महत्व नहीं रहता क्योंकि भादरा की जनता का अलग ही मूड होता है। साल 1993 में कांग्रेस पार्टी ने डॉक्टर सुरेश चौधरी को प्रत्याशी बनाया और भाजपा ने लालचंद डूडी को प्रत्याशी बनाया परंतु भादरा की जनता ने चौधरी ज्ञान सिंह को भारी बहुमत से विजय बनाया। 2003 के चुनाव में कांग्रेस ने संजीव बेनीवाल एवं भाजपा ने लालचंद जी की धर्मपत्नी विमला डूडी को प्रत्याशी बनाया। जनता ने फिर दोनों टिकटों को हराकर निर्दलीय डॉक्टर सुरेश चौधरी को विधायक चुना। 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने संजीव बेनीवाल एवं बीजेपी एवं इनेलो के गठबंधन से भीमसिंह बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया। इस बार भी जनता ने तीनों ही पार्टियों को रद्द करते हुए निर्दलीय जयदीप डूडी को जिताया। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने डॉक्टर सुरेश चौधरी एवं भाजपा ने संजीव बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया। इस बार भी जनता ने दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों को हराकर कामरेड बलवान पूनिया को जिताया।
भादरा की राजनीतिक इतिहास पर दृष्टि डालने से यही पता चलता है कि यहां टिकट कोई मायने नहीं रखती। चुनाव के आखिरी समय में जनता ही फैसला करती है।
भाजपा की टिकट घोषित होने के बाद संजीव बेनीवाल के कार्यकर्ताओं में उत्साह है जबकि पूर्व आईएएस डॉक्टर एसपी सिंह के कार्यकताओं मे निराशा नजर आ रही है। कांग्रेस ने अभी अपनी सूची जारी नहीं की है। जबकि आम आदमी से महंत रूपनाथ चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। भादरा विधानसभा का चुनाव हर बार ही बहुत ही रोचक होता है, इस बार भी नए ही समीकरण बनेंगे।