धर्म, यूपी और सुप्रीम कोर्ट!

एमएल शर्मा.
कावड़ यात्रा मार्ग पर अब अनवर ना सही, ॐ ही सही। जी हां, उत्तरप्रदेश में अब कमोबेश यही हालात है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद यूपी सरकार के उस आदेश को सिरे से खारिज कर दिया गया है जिस आदेश के अनुसार दुकानदारों को अपने धर्म व जाति की पहचान बताने के निर्देश दिए गए थे। इस मुद्दे पर चारों खाने चित्त हुई अजयसिंह बिष्ट की सरकार जब और कुछ ना कर सकी तो कावड़ यात्रियों का धार्मिक उन्माद शांत करने के लिए हिन्दू संतो को अगुवा नेता बनाकर यह हथकंडा अपनाया गया है। हालांकि, राज्य सरकार के दिशा निर्देश अनुसार सभी होटल, रेस्टोरेंट व्यवसायियो व फल विक्रेताओं ने अपने नाम व धर्म के साइन बोर्ड लगा लिए थे। यह दीगर बात रही कि आम बेचने वाला मोहनलाल अपने मलीहाबादी आम उस्मान आढ़तिया की दुकान से लेकर आया था। पवित्र श्रावण मास में अपने होटल पर खीर बेचने वाला रमाशंकर दूध कल्लू खान से लेता है।
मामले पर ष्सुप्रीम हस्तक्षेप बाद नया शिगुफा निकला कि प्रत्येक हिंदू व्यापारी अपनी दुकान पर ॐ का चिन्ह व भगवा झंडा लगाए ताकि भोले के भक्तों को पहचान करना सुलभ हो। इस संबंध में कावड़ यात्रियों का कहना है कि पिछले कई सालों से यही व्यवसायी श्रद्धालुओं की आवभगत करते आ रहे है। ऐसे में महज चुनावी फायदे के लिए सांप्रदायिकता का जहर घोलना कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता। हाई कमान की टेढ़ी नजर के कारण योगी जी को शक्ति परीक्षण के रूप में यही तरीका भाया। पर यह पूर्णतया उल्टा पड़ेगा इसका भान उन्हें स्वप्न में भी नहीं था। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री का उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से टकराव जग जाहिर हो गया। इसी की परिणिति है की कावड़ यात्रा मार्ग पर अब ष्भगवानष् अपने चिन्हों के रूप में दर्शन देंगे। यूपी के संतों के आह्वान पर होटल व्यवसायियों ने हिंदू धार्मिक चिन्ह लगाने शुरू कर दिए हैं।
उधर, ताजा मामले के अनुसार मोनू सिंह नामक श्रद्धालु गंगा में डूबने लगा तो आशिक अली नामक युवक ने अपने जान की परवाह न करते हुए उसका जीवन बचाया। जिस पर विपक्ष की पार्टियों के नेताओं ने अपने ट्विटर हैंडल पर इस बात की प्रशंसा की। जब कुछ अच्छा हो तो वाहवाही लाजमी है। अब देखिए, भाजपा को इससे भी दिक्कत पैदा हो गई। भाजपा के भक्त बने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ चौनलों ने इस खबर को दूसरे ही रूप में प्रसारित किया। लेकिन यह पब्लिक है सब जानती है। वहीं दूसरी तरफ मोनू सिंह की जान बचाने वाले आशिक अली ने कहा कि उसका आशय, डूब रहे व्यक्ति की बिना यह जाने कि वह किस धर्म का है, जान बचाना था ना कि मीडिया में जाना। हालांकि यह साधारण बात है लेकिन मंशा असाधारण है। गौरतलब है कि भाजपा पर आरोप लगता रहा है कि यह पार्टी धर्म व जाति के नाम पर सत्ता सुख हासिल करती रही है पर एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में ऐसा हर दफा हो, यह मुमकिन नहीं है।
खैर, अब तो इस को भोलेनाथ ही बचाएंगे। जय शंकर की।

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