October 20, 2025

3 thoughts on “निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी, आखिर क्यों ?

  1. बेहतरीन बात बेहतरीन तरीके से रखी आपने गोपाल भाई
    अजब बात यह है कि आज नैतिक व्यक्ति भी निंदक होता जा रहा है हमेशा दूसरों का। क्योंकि उसका सारा रस ही इस बात में है कि वह नैतिक है और दूसरे लोग नैतिक नहीं हैं। इसलिए जो कौम इस तरह से नीति के चक्कर में पड़ जाती है, वह निंदक हो जाती है। हम अपने ही मुल्क में इस बात को भलीभांति समझ सकते हैं।

  2. अभी संस्कृति ,आदर्श ,चरित्र ,जीवन मूल्यों पर ग्रहण चल रहा है । इस ग्रहण को हटने में अभी कम से कम 40 वर्ष और लगेंगे।
    इस इन व्यवस्थाओं में बस शरीर को जिंदा रखना है , आत्मा को सुलाए रखना है । लक्ष्य विहीन जिंदगी को किसी तरह से पूरा करना है यही जीवन है ….. ज ……से जिंदगी

  3. वाह भाई गोपाल जी ! बेहद शानदार आलेख लिखा है । तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी शब्द हमें सम्बल देता है । आप जैसे मित्रों के आलेख पढ़कर कुछ घुटन कम होती है । उदासी के बावजूद कुछ अच्छा होने की लालसा में चेहरे पर उदासी के बादल छंटने लगते हैं । बड़ा खतरनाक दौर है । आजादी के समय प्रगतिशील लोगों ने क्या सपने देखे थे । किसने सोचा था ऐसा दौर भी आएगा । इस उम्मीद से लिखते रहिए की शब्द कभी भौंतरे नहीं होते । प्रेमादर

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