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सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों के चंदा लेने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए बड़ा फैसला दिया है। पांच जजों की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा लेने पर तत्काल रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचू़ड़ ने कहाकि यह पूरी तरह असंवैधानिक है। सभी राजनीतिक दलों को 5 मार्च तक इसका हिसाब देना होगा। बकौल चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़-‘राजनीतिक प्रक्रिया में राजनीतिक दल महत्वपूर्ण इकाई होते हैं। कोष जुटाने की जानकारी वह प्रक्रिया है जिससे मतदाताओं को मताधिकार के लिए उचित विकल्प मिलता है। मतदाताओं को चुनावी कोष के बारे में जानने का पूरा हक है जिसके आधार पर उसे मताधिकार करना होता है। बॉन्ड की गोपनीयता पूरी तरह से असंवैधानिक है। केंद्र सरकार की यह स्कीम सूचना के अधिकार का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है।’
काबिलेगौर है, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने 2 नवंबर 2023 को इस मामले में निर्णय सुरक्षित रख लिया था। बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता जेके झांब कहते हैं, ‘अगर इलेक्टोरल बाँड ग़लत थे तो देश इतने सालों से इन्हें बेवजह झेल रहा था, सोचने की बात तो यह है। गार्जियन ऑफ़ फंडामेंटल राइट्स, कस्टोडियन ऑफ़ कांस्टीट्यूशन माननीय सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान ले लेता तो भारत की जनता, वी द पीपल ऑफ़ इंडिया, शायद इस इलेक्टोरल बाँड की जानकारी बरसों पहले ले पाते । कोई नया नियम आरोपित होने के बरसों बाद वह नियम असंवैधानिक स्थापित हो तो एक सौ चालीस करोड़ भारतीय उस असंवैधानिक नियम को बरसों झेल चुके होते हैं। वैसे यह फैसला ऐतिहासिक है और लोकतंत्र के लिए बेहद स्वागतयोग्य है।’