शंकर सोनी.
क्या आप जानते हैं कि हमारे शरीर में समय निर्धारण की व्यवस्था अंतर्निहित ? जी हां। यह सच है। दरअसल, इसे हम जैविक घड़ी या ‘बायोलॉजिकल क्लॉक’ कहते हैं। आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे।
देखा जाए तो यह घड़ी हमारे मस्तिष्क में होती है। हमारे मस्तिष्क में करोड़ों कोशिकाएं होती है जिन्हे हम न्यूरॉन कहते हैं। ये कोशिकाएं संवेदनशील होती हैं। एक कोशिका से दूसरे कोशिका को सूचना का आदान-प्रदान विद्युत स्पंद द्वारा दिया जाता है। जो पूरे शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित एवं निर्धारित करती हैं।
हम रात को निश्चित समय सोते हैं तथा सुबह जाग जाते हैं। हमारी इस घड़ी से हमें चेतना होती है कि सुबह हो चुकी है। जिसके कारण हम सुबह उठते हैं। नींद में भी हमारा मस्तिष्क सक्रिय रहता है। इस घड़ी की व्यवस्था के कारण ही हम एक मिनट में निश्चित बार 15 से 18 बार सांस लेते हैं। इसी तरह हमारा हृदय एक मिनट में 72 बार धड़कता है।
इसी घड़ी से खाना पचाने जैसी शारीरिक क्रियाए सुचारु रूप से संचालित होती है। हमारा शरीर इसी जैविक घड़ी के अनुरूप कार्य करता है। इससे हमारे शरीर में कार्य करने की क्षमता, हॉर्माेन और तापमान के स्तर में बदलाव होता रहता है।
नींद पूरी नहीं होने से इस घड़ी की सुइयां हमारे शरीर के चक्र से आगे बढ़ जाती हैं और इसका सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है।
जैविक घड़ी से हमारी सोचने, समझने की दशा एवं दिशा, तर्क-शक्ति, निर्णय क्षमता एव व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। हमारी नियमित और अनियमित दिनचर्या का जैविक घड़ी की चाल पर प्रभाव के कारण रक्त में तत्वों के स्तर का उतार-चढ़ाव, शारीरिक तापमान, हॉर्माेन की कमी और अधिकता, हृदय गतिविधि, रक्तचाप, उपापचय आदि कार्य प्रभावित होते हैं। इसके बदलाव से अवसाद, मधुमेह, अनिद्रा, तंत्रिका संबंधी विकार जैसे अल्ज़ाइमर रोग, पार्किंसंस रोग से व्यक्ति ग्रस्त हो सकता है जिससे उसकी पूरी आंतरिक कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। महिलाओं के मासिक चक्र पर भी असर पड़ता है। इस अनियमितता से हमारा स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता या हमारी एकाग्रता भंग हो जाती है।
पेड़-पौधों में निश्चित समय पर फूल लगना एवं फल बनना, बसंत के समय पतझड़ में पुरानी पत्तियों का गिरना एवं पौधों का नई कोपलें धारण करना, समय पर ही बीज विशेष का अंकुरण होना सब जैविक घड़ी की सक्रियता का परिणाम है।
आपने महसूस किया होगा जिस दिन सुबह हमें जल्दी उठ कर बाहर जाना होता तो हम अपने आप ही जल्दी उठ जाते है। यह जैविक घड़ी के कारण होता है।
अक्सर यह कहा जाता है कि सोच को हमेशा सकारात्मक रखे। इसका अर्थ यही है कि अपनी जैविक घड़ी को सही रूप से सेट रखें। यदि जैविक घड़ी गड़बड़ा गई है और आप नकारात्मक सोच में जा रहे है तो घड़ी को रीसेट करें।
मान लीजिए, आप की आयु 65 वर्ष है और आपको हर समय मौत की आशंका परेशान रहती है तो इसका अर्थ आपकी घड़ी को रीसेट करने की आवश्यकता है।
इसी स्थिति में आप दृढ़तापूर्वक यह सोचें कि आपकी आयु 90 वर्ष है। इसका प्रभाव यह पड़ेगा कि पहले आपकी जो जैविक घड़ी 65 वर्ष सेट थी अब 90 वर्ष पर रीसेट हो जाएगी। चीन के लोगों की जैविक घड़ी 100 वर्ष तक जीने पर सेट है। मस्त रहिए, युवाओं की तरह कपड़े पहने, हंसी मजाक करते रहें और अपनी जैविक घड़ी को रीसेट करें। जैविक घड़ी से तालमेल बनाए रखें सही समय पर जागें। जैविक घड़ी से तालमेल बिठाने की शुरुआत भी सुबह उठने की आदत बनाकर करें।
सुबह समय पर उठें जिससे एक बेहतर दिनचर्या बनेगी और शरीर भी उस समय को अपनाने लगेगा। जिस समय हमारी आंखें खुलती हैं शरीर की आंतरिक गतिविधियां वहीं से सक्रिय होती हैं और इसी के साथ ही मस्तिष्क से कई तरह के हॉर्माेन के स्राव का संकेत भी शुरू हो जाता है। सुबह जल्दी उठने की कोशिश करें, सूर्य की रोशनी को अपने शरीर और चेहरे पर कुछ देर पड़ने दें। सुबह सूर्य की रोशनी के साथ उठने पर दिमाग़ में ताज़गी का संचार होता है, जिससे पूरी दिनचर्या को जैविक घड़ी के सामंजस्य में रखना आसान होता है।
समय से सोएं भी
सोने का समय निर्धारित करें क्योंकि सही समय पर सोने से ही आप सही समय पर उठ पाएंगे और फिर अगले दिन सूर्याेदय के साथ बेहतर दिनचर्या की शुरुआत कर सकेंगे। शाम 7 बजे के बाद कसरत न करें क्योंकि इस समय जैविक घड़ी के हिसाब से मनुष्य का मस्तिष्क शरीर को कम सक्रिय रखता है और दिमाग़ में स्फूर्ति कम होने से शरीर से तालमेल नहीं बैठ पाता और इसी कारण शरीर का जैविक घड़ी से समन्वय नहीं बैठता। रात में मद्यपान से बचें। दोपहर में थोड़ी देर नींद की झपकी ले की जिससे शरीर ऊर्जावान बना रहेगा। सोने के 1-2 घंटे पहले टीवी, मोबाइल आदि स्क्रीन बंद कर दें। सोने के 3 घंटे पहले कुछ भी नहीं खाएं, इससे पाचन सही रहेगा और शरीर का चक्र भी संतुलित रहेगा।
सनद रहे, भोर यानी 1.00-4.00 बजे के दौरान शरीर सबसे गहरी नींद में होता है। सुबह 4.00-5.00 बजे शरीर का तापमान कम होता है इसलिए ठंड ज्यादा लगती है। सुबह 6.00 बजे हॉर्माेन कार्टिसोल के स्राव से शरीर गहरी नींद से बाहर आता है। सुबह 7.00 बजे ब्लड प्रेशर के स्तर में बदलाव आता है। आंतों की गति तेज़ होती है। शौच के लिए सबसे उचित समय। सुबह 9.00 बजे शरीर टेस्टोस्टेरॉन हॉर्माेन ज़्यादा स्रावित करता यह व्यायाम हेतु सही समय है। सुबह 10.00 बजे शरीर सबसे ज्यादा सक्रिय होता है। दोपहर 2.00-4.00 बजे रू शरीर बेहतरीन समन्वय करने की स्थिति में होता है। शाम 6.00 बजे मांसपेशियों को बढ़ाने वाले व्यायाम के लिए सही समय। रात 7.00-8.00 बजे शरीर का तापमान सबसे अधिक होता है। ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। रात 9.00-10.00 बजे शरीर में मेलाटोनिन हॉर्माेन का स्राव होने के कारण सोने के लिए सही समय।
नोट: यह लेख सोशल मीडिया पर उपलब्ध सामग्री और लेखक के व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर लिखा गया है।
बहुत ही कीमती सूचना और बेहतरीन लेख 👍