





भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
हनुमानगढ़ जिले के भादरा कस्बे में 11 जुलाई को अप्रत्याशित घटनाक्रम हुआ, जब राजस्थान जन चेतना मंच ने बिजली, पानी और नगरपालिका की बदहाल व्यवस्था के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन का नेतृत्व भादरा के पूर्व विधायक डॉ. सुरेश चौधरी ने किया। जन चेतना मंच के दर्जनों कार्यकर्ता हाथों में तख्तियां लिए नारे लगाते हुए उपखंड अधिकारी कार्यालय पहुंचे। करीब 250 से 300 लोग एसडीएम से बाहर आकर ज्ञापन लेने की मांग करते रहे लेकिन एसडीएम ने बाहर आकर ज्ञापन लेना उचित नहीं समझा। तीखी धूप और प्रचण्ड गर्मी से लथपथ पूर्व विधायक डॉ. सुरेश चौधरी और उनके दर्जन भर समर्थक ज्ञापन लेकर ऑफिस पहुंचे तो मामला गंभीर हो गया। एसडीएम कल्पित शिवराण और डॉ. सुरेश चौधरी के बीच तीखी बहस हो गई। बताया जा रहा है कि जब ज्ञापन देने पहुंचे प्रदर्शनकारियों को एसडीएम ने बाहर बुलाकर ज्ञापन लेने से इनकार कर दिया, तब डॉ. चौधरी खुद दफ्तर में घुस गए। इस दौरान दोनों के बीच हुए संवाद ने पूरे घटनाक्रम को तूल दे दिया। चश्मदीदों के अनुसार, एसडीएम ने अपमानजनक लहजे में कहा-‘तेरे जैसे बहुत देखे हैं।’ जवाब में डॉ. चौधरी ने भी तल्खी दिखाते हुए कहा-‘तू मुझे जानता नहीं, ठीक कर दूंगा।’
‘बचपना’ दिखाने वाला प्रशासन?
भादरा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में कार्यरत एसडीएम कल्पित शिवराण का यह व्यवहार केवल अशोभनीय ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक गरिमा के विरुद्ध बताया जा रहा है। स्थानीय प्रबुद्धजन और राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि जिस तरह का ‘तू-तड़ाक’ वाला लहजा एसडीएम ने अपनाया, वह किसी नौसीखिए अधिकारी को शोभा दे सकता है, लेकिन एक अनुभवी प्रशासक को नहीं। उनके रवैये को लेकर अब चर्चा जोरों पर है कि क्या वे पद की गरिमा भूल बैठे हैं?
पूर्व विधायक की चेतावनी और 15 दिन की मोहलत
डॉ. सुरेश चौधरी ने उपखंड कार्यालय के भीतर ही खुले मंच पर कहा कि यदि प्रशासन ने बिजली, पानी और नगरपालिका से जुड़ी समस्याओं का समाधान 15 दिन में नहीं किया, तो कार्यालय जाम कर दिया जाएगा। उन्होंने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि भादरा का एसडीएम खुलेआम भ्रष्टाचार का खेल रहा है और यह अब ज्यादा दिनों तक बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
भविष्य में ‘भादरा मॉडल’ आंदोलन?
भादरा की राजनीति में डॉ. सुरेश चौधरी कोई नया नाम नहीं हैं। 1993 में उन्होंने कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा था, हालांकि हार गए थे। लेकिन 2000 में जब उन्होंने जन चेतना मंच की स्थापना कर जनसंघर्ष की राह पकड़ी, तो उनके नेतृत्व में हुए एक आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में एक छात्र की मृत्यु हो गई थी। यह घटना आज भी भादरा की राजनीति में एक मोड़ मानी जाती है। 2003 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में शानदार जीत हासिल की थी। इस पृष्ठभूमि में अब उनके नेतृत्व में एक बार फिर सड़क पर जनआंदोलन की आहट सुनाई दे रही है।

क्या एसडीएम की कार्यशैली आंदोलन की वजह बनी?
स्थानीय लोगों के अनुसार एसडीएम कल्पित शिवराण का व्यवहार पहले दिन से ही विवादों में रहा है। उन पर यह भी आरोप लगे हैं कि वे नशा करके ऑफिस आते हैं, घंटों मोबाइल गेम खेलने में मशगूल रहते हैं, और जनसुनवाई के नाम पर खानापूर्ति करते हैं। यह भी बताया गया कि जिस दिन प्रदर्शन हुआ, उस वक्त जब 250 लोग तेज धूप में बाहर इंतजार कर रहे थे, तब एसडीएम मोबाइल पर गेम खेल रहे थे। डॉ. चौधरी ने इसी बात को लेकर आपत्ति जताई, जिससे मामला बिगड़ा।
भाजपा भी नाराज, विपक्ष भी आक्रामक
दिलचस्प बात यह है कि एसडीएम के व्यवहार से सिर्फ जन चेतना मंच ही नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ता भी नाराज बताए जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा का एक धड़ा भी उन्हें हटाने के प्रयास में जुटा है। इस प्रकरण ने स्थानीय राजनीति में नए समीकरण बना दिए हैं।

क्या भादरा बनेगा राजनीतिक अखाड़ा?
भादरा की राजनीति लंबे समय से कांग्रेस, भाजपा, माकपा व निर्दलीयों के बीच झूलती रही है। अब एक बार फिर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच टकराव ने यह संकेत दिया है कि आने वाले समय में भादरा की राजनीति के केंद्र में हो सकता है। डॉ. सुरेश चौधरी जैसे संघर्षशील नेता की वापसी और युवा प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यशैली टकराव की उस स्क्रिप्ट को जन्म दे रही है, जिसकी परिणति बड़ा आंदोलन या राजनीतिक विस्फोट हो सकता है। सामाजिक कार्यकर्ता वेदप्रकाश शर्मा कहते हैं, ‘केवल ज्ञापन और नारेबाजी की घटना नहीं है। यह जनविरोध, प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक असंतोष का विस्फोटक मिश्रण है। भादरा में चल रही यह उठापटक आने वाले समय में न केवल हनुमानगढ़, बल्कि पूरे राजस्थान की राजनीति को झकझोर सकती है। अब देखना यह है कि प्रशासन चेतता है या आंदोलन और आक्रोश और गहराता है।’



