बदलते बाजार की बेरहम सच्चाई, क्यों गिरे दिग्गज ब्रांड ?

डॉ. संतोष राजपुरोहित.
व्यवसाय की दुनिया में स्थायित्व का कोई आश्वासन नहीं होता। जो आज शिखर पर है, वह कल इतिहास बन सकता है। बाजार, तकनीक और उपभोक्ता की पसंद में तेजी से बदलाव आता है, और जो कंपनियाँ इस बदलाव के साथ खुद को नहीं ढाल पातीं, वे चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, पतन की राह पर चल पड़ती हैं। नोकिया, कोडक, वीडियोकॉन, याहू और एचएमवी जैसी कंपनियों का इतिहास हमें यही सबक देता है, सफलता स्थायी नहीं होती, लेकिन सीखने और बदलते रहने की प्रवृत्ति ही किसी संस्था को दीर्घायु बनाती है। यह आलेख उन बड़ी कंपनियों की कहानी है, जिन्होंने समय की चाल को न पहचाना और अपनी ही चमक में खोकर बाज़ार से बाहर हो गईं।
व्यवसाय की दुनिया में सफलता कभी स्थायी नहीं होती। जो कंपनियाँ समय के साथ खुद को नहीं बदलतीं, वे चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, बाज़ार से बाहर हो जाती हैं। इसका प्रमाण हैं कुछ मशहूर कंपनियाँ, वीडियोकॉन, नोकिया, कोडक, ब्लैकबेरी, याहू और एचएमवी, जो कभी अपने क्षेत्रों की अग्रणी थीं, लेकिन आज या तो पूरी तरह समाप्त हो चुकी हैं या अपना प्रभाव खो चुकी हैं।
वीडियोकॉन एक समय भारत के रंगीन टेलीविज़न बाज़ार की जान थी। 1990 के दशक में देश के 25ः रंगीन टीवी बाजार पर इसका कब्जा था। यह कंपनी 17 से अधिक देशों में व्यापार करती थी और ग्राहकों के बीच एक भरोसेमंद नाम बन चुकी थी। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक में बदलाव आया और बाज़ार में स्मार्ट टीवी, एलईडी और वैश्विक ब्रांडों की एंट्री हुई, वीडियोकॉन प्रतिस्पर्धा में पीछे छूट गई।
टेलीकॉम क्षेत्र में प्रवेश करना इसके लिए घातक सिद्ध हुआ। भारी कर्ज़, प्रबंधन में असफलता और तकनीकी नवाचार की अनदेखी के चलते वर्ष 2018 में कंपनी दिवालिया हो गई और 2021 में इसे मात्र 3,000 करोड़ में एक अन्य कंपनी ने अधिग्रहित कर लिया।
नोकिया ने 2000 के दशक में मोबाइल दुनिया पर राज किया। भारत में यह फोन का पर्याय बन चुका था, नोकिया मतलब मोबाइल। लेकिन जैसे ही स्मार्टफोन बाजार में क्रांति आई, नोकिया ने एंड्रॉइड को अपनाने की बजाय माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम को प्राथमिकता दी।
यह एक बड़ी रणनीतिक भूल थी, क्योंकि एंड्रॉइड का जादू तेजी से बढ़ा और नोकिया पिछड़ता चला गया। अंततः 2014 में इसे माइक्रोसॉफ्ट ने अधिग्रहित कर लिया। यह उदाहरण दर्शाता है कि तकनीकी परिवर्तन की अनदेखी कैसे एक वैश्विक लीडर को समाप्त कर सकती है।


कोडक ने ही डिजिटल कैमरे का आविष्कार किया था, लेकिन उसे यह डर था कि इससे उसकी फिल्म रील का व्यापार खत्म हो जाएगा। कंपनी ने जानबूझकर डिजिटल फोटोग्राफी को पीछे रखा, जबकि बाजार उस ओर बढ़ रहा था। अन्य कंपनियों ने इस तकनीक को अपनाया और कोडक को पीछे छोड़ दिया। 2012 में कोडक ने दिवालियापन की अर्जी दाखिल की। यह उदाहरण है कि नवाचार से डरना और बदलाव से भागना कितना महँगा पड़ सकता है।
ब्लैकबेरी 2000 के दशक में बिज़नेस फोन का राजा था। लेकिन जब टचस्क्रीन स्मार्टफोन आए, तो ब्लैकबेरी ने इसे एक ‘गुज़रता फैशन’ मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया। ग्राहक अनुभव की बदलती मांग को समझने में असफल रहने के कारण ब्लैकबेरी भी तकनीक की दौड़ में पिछड़ गया। बाद में जब उसने एंड्रॉइड आधारित फोन लॉन्च किए, तब तक ग्राहकों ने सैमसंग और एप्पल को अपना लिया था। वह प्रतिष्ठा और वफादारी जो कभी ब्लैकबेरी की पहचान थी, खो चुकी थी।
इंटरनेट की शुरुआत में याहू सबसे प्रमुख ब्रांड था। याहू ईमेल, सर्च इंजन, न्यूज और मैसेंजर सबका केंद्र था। लेकिन गूगल, फेसबुक और यूट्यूब जैसे नए प्लेटफॉर्म के उभरते ही याहू अपनी दिशा खो बैठा। उसने न केवल गूगल और फेसबुक को खरीदने के अवसर गंवाए, बल्कि माइक्रोसॉफ्ट का अधिग्रहण प्रस्ताव भी ठुकरा दिया। अंततः 2017 में याहू का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया। यह बताता है कि केवल ब्रांड वैल्यू से सफलता नहीं टिकती।


ब्रिटेन की कंपनी एचएमवी एक समय संगीत और फिल्मों के भौतिक स्वरूप की सबसे बड़ी रिटेल श्रृंखला थी। लेकिन जैसे ही म्यूजिक ऑनलाइन हुआ, और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म छा गए। एचएमवी डिजिटल क्रांति को समय पर नहीं समझ सकी। दो बार दिवालिया हो चुकी इस कंपनी का उदाहरण है कि अगर व्यवसाय डिजिटल युग को न समझे, तो ग्राहक और बाजार दोनों छिन जाते हैं।
उपरोक्त सभी कंपनियाँ इस बात का जीवंत प्रमाण हैं कि सफलता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी यदि कोई कंपनी बदलते समय, तकनीकी विकास और ग्राहक की नई प्राथमिकताओं को नहीं अपनाती, तो उसका पतन निश्चित है। सिर्फ अतीत की चमक पर जीने वाली कंपनियाँ भविष्य की दौड़ में दम तोड़ देती हैं। नवाचार, रणनीतिक लचीलापन और नेतृत्व की दूरदर्शिताकृये ही किसी कंपनी को दीर्घकालिक बनाते हैं। इन उदाहरणों से हमें यह सबक लेना चाहिए कि किसी भी संस्था या व्यक्ति की स्थायित्व की कुंजी है, समय के साथ बदलना और सीखते रहना। वरना बाज़ार किसी को याद नहीं रखता।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं

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