





भटनेर पोस्ट डॉट कॉम.
हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय पर बीते कुछ वर्षों से विकास का जो ‘ढोल’ बजाया जा रहा था, वह अब बारिश की तेज़ रफ्तार बूँदों के बीच पूरी तरह भीग गया है। जनप्रतिनिधियों के बयानों और योजनाओं की चकाचौंध में जो विकास चमक रहा था, वह एक रात की बारिश में बुरी तरह धुल गया। मंगलवार रात को हुई 98 मिमी बारिश ने न केवल शहर की सड़कों को झील में बदल दिया, बल्कि नगर नियोजन, नाली निकासी और वासीय विकास की तैयारियों की असलियत भी उजागर कर दी।
शहर के हृदय स्थल माने जाने वाले जंक्शन क्षेत्र और उससे सटे इलाकों में मानो हाहाकार मच गया। हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, नई खुंजा, पुरानी खुंजा, सेक्टर 12, पीडब्ल्यूडी कॉलोनी, आरसीपी कॉलोनी, बिजली कॉलोनी, सुरेशिया और सिविल लाइंस, इन तमाम इलाकों में घरों के भीतर तक पानी घुस गया। जिन कॉलोनियों को ‘आधुनिक’ और ‘विकसित’ कहा जाता था, वहां लोग अपने घरों में पानी देख ‘नए ठिकाने’ तलाशते नजर आए। जंक्षन के अधिकांष अंडरपास में पानी भर गया और यातायात बाधित हुई।
मौत, तबाही और बेबसी का मंजर
बारिश सिर्फ असुविधा बनकर नहीं आई, बल्कि कई लोगों के लिए यह त्रासदी बन गई। मक्कासर गांव में दर्जनों मकान बारिश के चलते क्षतिग्रस्त हो गए। ग्रामीणों को अपने घर छोड़कर राजकीय विद्यालय में शरण लेनी पड़ी। लेकिन सबसे दुखद खबर दो केएनजे क्षेत्र से आई, जहां एक मकान गिरने से एक महिला की मौत हो गई। जिला प्रशासन की ओर से एडीएम उम्मेदीलाल मीणा मौके पर पहुंचे, हालात का जायजा लिया और पीड़ित परिवार को ढांढ़स बंधाया। बाद में वे जिला अस्पताल भी गए और परिजनों को हरसंभव सहयोग देने का आश्वासन दिया।

शहर की सड़कों पर झील जैसा मंजर
शहर की प्रमुख सड़कों का हाल देखिए तो तस्वीर और भी भयावह हो जाती है। श्रीगंगानगर रोड, अंबेडकर चौक, मुख्य डाकघर के सामने, वाल्मीकि चौक, हर तरफ दो से तीन फुट तक पानी भरा हुआ है। यहां तक कि पुलिस अधीक्षक के सरकारी आवास तक में पानी घुस गया है। कलक्टर और एसपी कार्यालय परिसर भी जलजमाव से अछूते नहीं रहे। प्रशासनिक तंत्र की रीढ़ कहे जाने वाले ये भवन भी जलभराव की चपेट में आ गए हैं, तो आम नागरिकों के घरों की हालत का अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। कई प्रमुख स्थानों के पास के खाली भूखंडों ने झील का रूप ले लिया है। वहीं, अंदरूनी इलाकों में छोटे वाहन तो क्या, दोपहिया तक ले जाना मुश्किल हो गया। स्कूल जाने वाले बच्चों और दफ्तर जाने वाले कर्मचारियों को खासा संघर्ष करना पड़ा।

प्रशासन सवेरे चार बजे से मैदान में उतरा
प्रशासन की ओर से दावा किया गया कि जैसे ही हालात गंभीर होने लगे, वैसे ही अलर्ट जारी कर दिया गया। कलक्टर डॉ. खुशाल यादव, एडीएम उम्मेदीलाल मीणा, नगरपरिषद आयुक्त सुरेंद्र यादव और अन्य अधिकारी सुबह चार बजे से ही शहर के दौरे पर निकल पड़े। सड़कों पर भरा पानी, बंद नालियां और क्षतिग्रस्त कॉलोनियां देखकर अधिकारियों के चेहरों पर चिंता साफ झलक रही थी।
कलक्टर डॉ. खुशाल यादव कहते हैं, ‘रातभर हुई करीब 98 मिमी बारिश ने पूरी व्यवस्था को चुनौती में डाल दिया। नगरपरिषद की टीम पूरी तरह जुटी हुई है और चार से पांच घंटे में पानी निकासी का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। नागरिकों से आग्रह है कि वे धैर्य बनाए रखें और बारिश को देखते हुए एहतियात बरतें।’
विकास के दावों की परतें उधेड़ता जलजमाव
हर चुनाव में शहर को ‘मिनी चंडीगढ़’ बनाने के दावे किए जाते हैं, नालियों के चौड़ीकरण, सीवरेज सिस्टम, हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर योजनाओं की घोषणाएं होती हैं। लेकिन एक रात की बारिश ने वह सबकुछ बिखेर दिया, जो कागजों पर ‘विकास’ कहलाता था। विशेष रूप से हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी जैसे इलाकों में पानी का प्रवेश इस बात का प्रमाण है कि वहां की ड्रेनेज व्यवस्था केवल नाम मात्र की है। जब तक हालात सामान्य रहते हैं, तब तक कागज़ी फाइलों में सब कुछ बेहतर नजर आता है, लेकिन जैसे ही कोई संकट दस्तक देता है, सारा ‘विकास’ बहकर चला जाता है।

जनता में गुस्सा, सोशल मीडिया पर छलका आक्रोश
जलभराव की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए हैं। स्थानीय नागरिकों ने नगरपरिषद और प्रशासन को आड़े हाथों लिया है। कुछ ने लिखा-‘यह विकास नहीं, विनाश का ब्लूप्रिंट है।’ तो किसी ने कहा-‘प्रशासन की टीम दौरे पर जरूर है, लेकिन समाधान के बजाय सिर्फ आश्वासन मिल रहा है।’ विपक्षी दलों ने भी मौके को भुनाने में देर नहीं की। उन्होंने सवाल उठाया कि जब बारिश की हर बार यही तस्वीर होती है, तो आखिरकार स्थायी समाधान क्यों नहीं निकाला जाता? उन्होंने यह भी पूछा कि अगर एक एसपी का आवास भी जलजमाव से सुरक्षित नहीं, तो फिर आम नागरिक किस पर भरोसा करें?
सवालों के घेरे में नगर नियोजन और बजट खर्च
यह संयोग नहीं कि हर साल मानसून में हनुमानगढ़ के कई हिस्से जलमग्न हो जाते हैं। सवाल यह है कि क्या नगरपरिषद द्वारा समय रहते नालों की सफाई की जाती है? क्या नई कॉलोनियों को बसाने से पहले जल निकासी की समुचित योजना बनाई जाती है? क्या सिर्फ टेंडर पास कर देना और उद्घाटन कर फोटो खिंचवाना ही प्रशासन की जिम्मेदारी है? जनता पूछ रही है कि हर वर्ष बजट में जिन योजनाओं के लिए करोड़ों रुपये स्वीकृत होते हैं, उनका लाभ ज़मीनी हकीकत में क्यों नजर नहीं आता?




