जानिए…किन विचारधाराओं में जकड़ा है हमारा समाज ?

आरके वर्मा.

हमारा समाज विभिन्न प्रकार की विचारधारा में जकड़ा हुआ है और ये विचारधाराएं सामाजिक उन्नति व प्रगति में बाधक हैं और सहायक भी। आइए, जानते हैं, मनुष्य किन-किन विचारधारओं की जकड़न में है और इसकी वास्तविक स्थिति क्या है ?
आस्तिक: स्वयं को किसी बाहरी शक्ति के अधीन मानना। जिनके ज्ञान व कर्मों का प्रतिफल किसी बाहरी शक्ति पर टिका हो। जिसकी आत्मा मुक्ति हेतु किसी बाहरी शक्ति पर आश्रित हो। ऐसे लोग कुछ गुरु शरण में चले जाते हैं, कुछ आत्म केन्द्रित हो जाते हैं। ये भाव प्रधान व धार्मिक जीवन जीते हुए-दया, धर्म, करुणा में बंध कर अक्सर कठोर सामाजिक परिवर्तन कारी निर्णय लेने में अक्षम होते हैं क्योंकि ये शिक्षा से अधिक विद्या को महत्व देते हैं।आध्यात्मिक सही दिशा न मिलने के कारण कभी कभी ये सुस्त, आलसी व निक्कमे बन समाज पर बोझ बन जीवन काटते हैं।
ये दो प्रकार के होते हैं। प्रवृत्ति मार्गी और निवृति मार्गी।

प्रवृत्ति मार्गी: सांसारिक जीवन भोगते हुए दैहिक वासनाओं के साथ-साथ मनुष्य जीवन की सार्थकता सिद्ध करने में जीवन बिताते हैं। मन के अधीन होकर कर्मकांड व चमत्कारों पर विश्वास करते हैं। ये भीरू होते हुए भी सदैव सृजन मार्गी के विरोध में खड़े मिलते हैं।

निवृत्ति मार्गी: आध्यात्मिक चिंतन द्वारा आत्मा को परिमार्जित कर मोक्ष अर्थात  निवृत्ति पर जोर देते हैं-नाम, मंत्र, श्रद्धा, जप, तप-त्याग-तपस्या, कर्म, ज्ञान (आगम व निगम) आदि पर विश्वास रखते हैं।
नास्तिक: यह किसी बाह्य शक्ति पर विश्वास न कर अपने कर्म की शक्ति पर विश्वास करते हैं। स्थापित परंपराओं, आस्थाओं व पाखंड, गुरुडम आदि के धुर विरोधी होते हैं। ये ज्ञान-विज्ञान और कर्म को अधिक महत्व देते हुए जीवन यापन करते हैं। ये मानवीय भावनाओं को कम व मानव संवेदनाओं को अधिक महत्व देते हैं। भाव शरीर कम विकसित होने के कारण इनको ये एहसास होता रहता है कि हम सही, शेष सब कुमार्गी हैं। ये विद्या से रहित शिक्षा को अधिक महत्व देते हैं इसलिए संस्कार पक्ष कमजोर हो जाता है।

वास्तविक (यथार्थी): ये सभी तरह की विचारधाराओं के ज्ञाता होते हैं। जीवन के सत्य के निकट भी होते हैं। मानवीय भावनाओं व संवेदनाओं के साथ कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हैं। अनेक  विचारधाराओं के करीब होने पर भी समर्थन किसी का नहीं करते केवल मानवीय मूल्यों और सद्गुणों को आगे रखकर निज कर्तव्य को महत्व देते हैं। ये कर्म, ज्ञान-विज्ञान व प्रज्ञान को महत्व देते हैं-आपो दीपो भव, नर तूं नारायण है, अपना मूल पहचान व अहम् ब्रह्मास्मि को सार्थक करते हैं। शिक्षा व विद्या दोनों में तारतम्य स्थापित कर आगे बढ़ते हैं।
स्वार्थी: यह सांसारिक मोह-माया व अनेक प्रकार के भोगों में फंसे रहने के कारण कठचित्त हो जाते हैं। केवल स्वार्थ हेतु परिवार व समाज में सहयोग करते हैं वो भी शर्तों व अपेक्षा के साथ। ये कभी सच्चाई के निकट नहीं होते, अवसरवादी और मौकापरस्त होते हैं। इनका बाहुल्य किसी भी समाज को गर्त में ले जाने का काम करता है। इनका कोई विजन नहीं होता, अपना हित साधना ही इनका विजन है। अपनी अहम तुष्टि के कारण ये समाज को ऊंच-नीच, भेदभाव, निंदा-स्तुति व वैर-विरोध में फसाए रखते हैं। इनकी नीतियां स्पष्ट नहीं होती। ये नफरती जहां भी जाते हैं, समस्याएं साथ लेकर जाते हैं।

अंतर्विरोधी: ये अंर्तद्वंद्व में फंसे रहते हैं ये जिस पथ के गामी होते हैं उससे सब को नीचा समझते हैं दूसरों के पंथ व विचारधारा में दोष व कमियां ढूंढ कर उनकी ही अधेड़-बुन में लगे रहते हैं, समाज के लिए ये भी घातक होते हैं क्योंकि ये भीतर से कमजोर होने के कारण सामाजिक उत्तर दायित्व कम व धार्मिक पंथ कट्टरता अथवा अपनी ही विचारधारा को अधिक महत्व देते हैं।
परिवर्तन गामी: ये सदैव समय के परिवर्तन के साथ उत्कृष्ट मार्ग के अनुगामी होते हैं और शीघ्र ही परिवर्तन की विचारधारा को ग्रहण कर लेते हैं। ये नास्तिक और आस्तिक दोनों विचारधाराओं से निकलकर जीवन की वास्तविकता के साथ जीते हैं। पुरातन व सनातन विचारधारा के साथ-साथ ये नवीन विचारधारा में बहकर सामाजिक परिवर्तन के जनक बनते हैं। ये यथार्थ व वास्तविकता के निकट होते हैं। ये जीवन के सत्य को नई विचारधारा में पिरो कर सामाजिक नवनिर्माण व नवसृजन का कार्य करते हैं। ये किसी भी समाज को सक्षम, सबल व प्रभावशाली बनाने में तन-मन-धन से सहयोग करते हैं ये विजनरी, मिशनरी व स्थिर सोच के धनी होते हैं जिस समाज में ऐसे लोगों का बाहुल्य होता है वह समाज अग्रणीय कहलाता है। अच्छे विचारों के साथ- साहस, सरलता, निस्वार्थ सेवा भावना, स्नेहशीलता व दानशीलता इनकी विशेषता होती है।
अतः समय की मांग है कि सामाजिक उन्नति के लिए हम वास्तविक (यथार्थवादी) होते हुए परिवर्तनकारी बने तभी हमारा समाज व देश उन्नति करेगा, शेष हमारे व्यक्तिगत विषय है इन्हें स्वयं तक ही सीमित रखें।
लेखक सामाजिक चिंतक व डीएवी स्कूल के प्राचार्य हैं

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