भटनेर पोस्ट ब्यूरो. जयपुर.
राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा तीन दशक से चली आ रही सियासी परंपरा को कायम रखते हुए बेहतर प्रदर्शन कर सत्ता में वापसी करेगी, इस पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं। दो दिन पहले पार्टी की एकता के दावों की ऐसी हवा निकली कि आलाकमान भी सकते में है। सरकार की विफलताओं के खिलाफ पार्टी ने भाजपा प्रदेश कार्यालय से राजभवन तक पैदल मार्च कार्यक्रम किया था।
सूत्रों के मुताबिक, पैदल यात्रा में सभी विधायकों व सांसदों को अनिवार्य रूप से शामिल होने के निर्देश मिले थे। लेकिन आए तो 72 में से सिर्फ आठ विधायक। संख्या के लिहाज से सांसदों ने जरूर लाज बचाई लेकिन बीजेपी के लिए यह संख्या भी गर्व करने लायक नहीं थी यानी महज 10 सांसद शरीक हुए। सनद रहे, राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से 24 पर भाजपा का कब्जा है। इस तरह बीजेपी के भीतर जबरदस्त मंथन शुरू हो चुका है। मोदी को चेहरा बनाकर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम करने वाली पार्टी के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ‘भटनेर पोस्ट’ को बताते हैं कि आलाकमान ने इस प्रकरण को गंभीरता से लिया है। राजे और पूनिया के बीच विवाद की खाई गहरी है। दूसरे बड़े नेताओं के साथ भी राजे के संबंध ठीक नहीं। ऐसे में बहुत जल्दी इस पर फैसला हो सकता है। संभवतः पार्टी पैदल मार्च से अनुपस्थित जनप्रतिनिधियों को नोटिस जारी कर कारण पूछेगी, संतुष्ट नहीं होने पर उन्हें चेतावनी भी दी जा सकती है। पार्टी मानती है कि चुनाव से पहले इस तरह की हरकतों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
काबिलेगौर है कि इस पैदल मार्च से पूर्व सीएम वसुंधराराजे और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने दूरी बना ली थी। पूनिया के पास न तो विधायक हैं और न ही सांसद लेकिन राजे तो विधायकों व सांसदों को प्रभावित करने का माद्दा रखती ही हैं। पैदल मार्च से गैरहाजिर विधायकों की तो बड़ी संख्या है, ऐसे में शामिल होने वाले विधायकों में कालीचरण सराफ, दीप्ति माहेश्वरी, सूर्यकांता व्यास, रामलाल शर्मा, मदन दिलावर, मंजीत चौधरी और संजय शर्मा जबकि सांसदों में निहालचंद मेघवाल, राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़, रामचरण बोहरा, बाबा बालकनाथ, सुमेधानंद सरस्वती, मनोज राजौरिया, सुखबीर सिंह, जसकौर मीणा, रंजीता कोली भी शामिल हैं।