गोपाल झा.
‘भटनेर पोस्ट’ ने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में एक फैसला किया था। अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित अतिथियों को स्मृति चिन्ह के तौर पर ‘संविधान की प्रस्तावना’ की प्रति भेंट करने का निर्णय। मकसद यह था कि जिम्मेदार लोग हर पल संविधान की रक्षा के प्रति सजग रहें। ‘भटनेर पोस्ट’ की इस पहल को भरपूर समर्थन मिला।
हम सबके लिए सुखद बात है, संविधान के प्रति सजगता का संदेश देने में राजस्थान अग्रणी भूमिका निभा रहा है। संविधान का मूल अर्थ समझाने के लिए पाकिस्तान सीमा पर स्थित यह राज्य लगातार पहल कर रहा है।
राज्यपाल कलराज मिश्र ने राजभवन में संविधान पार्क का तोहफा दिया। कलराज मिश्र कहते हैं, ‘संविधान पार्क में संविधान निर्माण से लेकर लागू होने की ऐतिहासिक यात्रा को विभिन्न कला-रूपों में संजोया गया है। संविधान पार्क हमारे लिखित संविधान पर उकेरी प्राचीन भारतीय संस्कृति से जुड़ी कलाकृतियों का भी मूर्त रूप है। आमजन संविधान की संस्कृति से अधिकाधिक जुड़ सकेंगे।’ जाहिर है, राज्यपाल चाहते हैं कि संविधान का महत्व न सिर्फ बरकरार रहे बल्कि प्रत्येक नागरिक खुद को पहले भारतीय समझे और अपने दायित्वों के प्रति सजग रहे।
संविधान के महत्व को दर्शाने की दिशा में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यपाल के कदम को और आगे बढ़ाया है। अब स्कूलों में बच्चों को संविधान की उद्देशिका और मौलिक कर्तव्य पढाए जाएंगे। हर शनिवार को स्कूलों में ‘नो बैग डे’ होगा और उसी दिन संविधान की प्रस्तावना का वाचन होगा।
देखा जाए तो राज्यपाल और मुख्यमंत्री का यह कदम सराहनीय है। जिस दौर में धार्मिक और जातिगत कट्टरता बढ़ने से सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने का खतरा महसूस हो रहा हो तो ऐसे समय में संविधान ही हमें बचा सकता है। हम सबको एक सूत्र में पिरोने वाले चंद शब्द ‘हम भारत के लोग’ बेहद प्रासंगिक हैं। संविधान की प्रस्तावना में कहीं पर धर्म, जाति व क्षेत्र विशेष को बढ़ावा नहीं दिया गया है, सबको एक शब्द की परिधि में बांधा गया है और वह शब्द है ‘भारतीय’।
हम हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी आदि कुछ भी हो सकते हैं। हम किसी राज्य के मूल निवासी हो सकते हैं लेकिन हमारा संपूर्ण परिचय ‘भारतीय’ के तौर पर ही होगा। सच तो यह है संविधान के सार को समझने के बाद हम बेहतर नागरिक बन जाते हैं। आज भारत को हिंदू, मुस्लिम या अन्य धर्मावलंबियों की कट्टरता से खतरा है तो इसका एकमात्र उपचार है, आप संवेदनशील व सुशिक्षित नागरिक तैयार कीजिए। यह काम सिर्फ और सिर्फ संविधान कर सकता है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं, ‘अगर हम बच्चों को शुरू से ही मूल अधिकारों के साथ मूल कर्त्तव्यों के प्रति सजग करते रहेंगे तो उसके भीतर एक जिम्मेदारी का बोध विकसित होगा और आगे चलकर वही बच्चा परिवार, समाज और देश का नाम रोशन करेगा। इसलिए संविधान की उद्देशिका और मौलिक कर्तव्य पढ़ाने का निर्णय लिया गया है।’
कुल मिलाकर, सरकार के इस निर्णय का तहे दिल से स्वागत होना चाहिए और हम सबको यह प्रयास सुनिश्चित करना चाहिए कि अपने बच्चों को व्यक्तिगत प्रयासों से भी संविधान की शिक्षा देंगे और उनमें जिम्मेदारी का भाव विकसित करेंगे। यकीनन, बच्चा बुराइयों से दूर रहेगा। इससे न सिर्फ परिवार व समाज को संवेदनशील सदस्य प्राप्त होगा बल्कि देश को भी सभ्य, सुयोग्य और सुशिक्षित नागरिक मिल सकेगा। इसी से परिवार, समाज और देश का उत्थान संभव है।