ये कौन चित्रकार है! जिनकी डॉट पेंटिंग मचा रही धूम

भटनेर पोस्ट डॉट कॉम. 

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में गांव है मक्कासर। यह चर्चित इसलिए है कि यह विधायक, जिला प्रमुख और दो सांसद देने वाला गांव है। लेकिन गांव की पहचान यहीं पूरी नहीं होती। गांव में एक कलाकार ऐसा भी है जिसे ‘राजस्थान का पिकासो’ कहा जा सकता है। हां, स्पेन के महान चित्रकार पाब्लो पिकासो की तरह हरदीप सोहल विवदित पेंटिंग्स नहीं बनाते लेकिन पिकासो की तरह ही सोहल की पेंटिंग्स मानवीय संवेदनाओं का सजीव दस्तावेज है। 
 सोहल के पिता सरदार जोगेंद्र सिंह ने जब बेटे हरदीप सोहल की पहली कलाकृति देखी तो हैरान रह गए। दरअसल, छोटी सी उम्र में उन्होंने गुरू नानकदेव की पेंटिंग बनाई थी। माता-पिता की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। लेकिन वे अपने बेटे की प्रतिभा पहचानने में चूक गए। इसका बड़ा कारण था, उस वक्त अधिकांश अभिभावक पेंटिंग्स में बच्चों का भविष्य नहीं देख पाते थे। ऐसे में हरदीप सोहल बाकी बच्चों की तरह मक्कासर के सरकारी स्कूल से प्राथिमक शिक्षा हासिल करने के बाद माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा अर्जित करने के लिए टाउन स्थित फोर्ट स्कूल में दाखिल लेने पहुंचे। सीनियर सेकेंडरी के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और पेंटिंग में जुट गए। कला के क्षेत्र में उस्ताद बने हरदर्शन सिंह सोहल। रिश्ते में भाई हैं। हरदीप सोहल बताते हैं, ‘उस्ताद ने पेंटिंग्स की बारीकियां समझाईं। साल 1991-92 की बात है, पहली सफलता मिली जब बठिंडा में सरदार शोभा सिंह मैमोरियल चित्रकला सोसायटी की ओर से प्रदर्शनी लगाई गई और उसमें मुझे भी अपनी पेंटिंग रखने का मौका मिला। वहां पर दिग्गज कलाकारों की पेंटिंग थी लेकिन प्रदर्शनी में एकमात्र पेंटिंग बिकी जो मेरी बनाई हुई एक दुल्हन की पेंटिंग थी। मंच से घोषणा हुई कि सबसे छोटी उम्र के कलाकार की पेंटिंग बिकी है। यह सुनकर अपार संतुष्टि मिली।’ 
 हरदीप सोहल की खासियत है कि उन्होंने हमेशा कठिन कामों को हाथ में लिया। उस वक्त फिल्मी गीतों के कैसेट खूब बिकते थे। कैसेट पर डिजाइन का काम ‘टफ’ था। रेखाचित्र के माध्यम से डिजाइन का काम होता था। सोहल कहते हैं, ‘काम भले कठिन था लेकिन उसे मूर्त रूप देने में मजा आता था।’ 
 एक दौर वह भी आया जब सोहल को पेंटिंग का काम छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। बड़ा कारण कला की बेकद्री। सोहल कहते हैं, ‘एक बार पेंटिंग बना रहा था तभी एक सज्जन आए। पेंटिंग देख खूब खुश हुए। उन्होंने पेंटिंग की कीमत पूछी, मैंने 10 हजार बताया तो उन्होंने कहाकि फिर तो कोई कैलेंडर ही खरीद लेंगे 150 रुपए में। उनका जवाब सुनकर पेंटिंग छोड़ने का मन बनाया और दूसरे कामों में जुट गया ताकि परिवार का भरण पोषण किया जा सके।’ 

 डॉट पेंटिंग का आगाज 
रोजगार के सिलसिले में सोहल ने हनुमानगढ़ छोड़ दिया। बठिंडा और पटियाला में खूब रहे। आखिरकार, हनुमानगढ़ लौटे और फिर साल 1996 के बाद 2016 में पहली बार पेंटिंग बनाई। चुनौतियों को स्वीकार करने वाले सोहल ने ‘पेन डॉट’ पद्धति से पेंटिंग की शुरुआत की। जिसे खूब वाहवाही मिली। इस तरह उन्होंने करीब 150 से अधिक पेंटिंग बनाई। जिनमें महानायक अमिताभ बच्चन, डीम गर्ल हेमामालिनी, दीपिका पादुकोण व गुरदास मान आदि शामिल हैं। यह दीगर बात है कि सोहल हर तरह की पेंटिंग बनाने में सिद्धहस्त हैं। अब तक वे ऑयल पेंटिंग, पेंसिल, कॉमर्शियल व पेन डॉट से सैकड़ों पेंटिंग्स बना चुके हैं। चित्रकार हरदीप सोहल बताते हैं, ‘पेन डॉट पद्धति थोड़ी मुश्किल है। इसमें एक चित्र बनाने में कम से कम एक से डेढ़ महीने लग जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद जब लोग इसका महत्व नहीं जानते तो मन उदास हो जाता है।’ 

 विदेश में छा रहा है बेटा प्रिंस 
हरदीप सोहल की दो संतान हैं। एक बेटा और एक बेटी। बेटी की शादी हो गई। बेटा प्रिंस भी चित्रकारिता में पहचान बना चुका है। विदेशों में प्रिंस के बनाए पेंटिंग्स की भारी डिमांड है। देखा जाए तो पिता की सच्ची विरासत को प्रिंस ने आसानी से न सिर्फ महसूस किया बल्कि उसे मजबूती के साथ संभाला भी। हरदीप सोहल अब इस कला को आगे बढ़ाने के लिए योजना तैयार कर रहे हैं। सोहल फ्लैक्स संस्थान अपनी बेहतरीन सेवा के लिए विख्यात हो चुका है। ऐसे में अब सोहल नई पीढ़ी को चित्रकारिता व पेंटिंग के प्रति रुचि तैयार करने और समुचित प्रोत्साहन देने की योजना पर काम कर रहे हैं। कहते हैं, ‘एक-दो साल में इसे अमली जामा पहनाएंगे। जिन बच्चों की रुचि है, उन्हें समुचित प्रोत्साहन देने की दरकार है। इसके लिए प्लानिंग कर कार्य करेंगे।’

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