बात निकली है तो दूर तक जाएगी!

भटनेर पोस्ट डॉट कॉम.
पत्रकारिता का पहला सिद्धांत है-शब्द, शब्द का अर्थ, अर्थ का भाव और भाव का प्रभाव। लिखे, कहे और छपे हुए शब्दों के गहरे अर्थ होते हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बातों से इसका अहसास आसानी से हो सकता है। गहलोत जो बोलते हैं वे कबीर की उलटबांसियों की तरह होते हैं। इनके गहरे अर्थ होते हैं। कुछ लोग केवल शब्दों को पकडते हैं। कुछ शब्दों के अर्थ तक पहुंचते हैं। बहुत कम होते हैं जो अर्थ के भाव तक पहुंच पाते हैं। इन भावों के प्रभाव को तो कोई बिरले ही समझ पाते हैं। जिस तरह कबीर जो बोलते हैं? उनके अर्थ खोजने में लोगों को बरस लग गए, कुछ ऐसा ही गहलोत के साथ है। वे आज जो बोल रहे हैं, उसको समझने में सालों लग जाएंगे।
हाल ही में अशोक गहलोत का एक बयान आया कि अदालतों में वकील जो फैसला लिखकर ले जाते हैं, जज वही फैसला लिख देते हैं। हल्ला हो गया कि ये क्या बोल गए गहलोत ?
अब भाई लोगों को तो बात का बतंगड बनाना था, सो बना दिया। गोदी मीडिया का कई बार जिक्र कर चुके गहलोत से खार खाए बैठे लोगों को मसाला मिल गया। लग गए ‘कारसेवा’ में। लेकिन वे इस बात से अनजान हैं कि गहलोत जो बोलते हैं उन शब्दों के गहरे अर्थ होते हैं। आज जो बात निकली है तो वह बहुत दूर तक जाएगी। न्यायपालिका पर टिप्पणी कर उन्होंने एक लंबी और सार्थक बहस छेड दी है। इससे कुछ लोगों का तिलमिलाना वाजिब है लेकिन उनकी तिलमिलाहट दिखावटी है। जजों के फैसलों पर टिप्पणी करना अदालत की अवमानना का कारण बन सकती है, इसलिए सबकी बोलती बंद रहती है वरना हकीकत सबको मालुम है।
अब गहलोत ने जो कहा है उसके मायने ये हैं कि उनकी टिप्पणी को न्यायपालिका नकारात्मक दृष्टिकोण से लेने की बजाय सकारात्मक नजरिए से ले और अगर कहीं सुधार की गुंजाइश है तो उस पर अमल करे। गहलोत के बयान से एक बात तो साफ हो गई कि उनकी बातों को हल्के में नहीं लिया जा सकता, अगर वे कुछ कह रहे हैं तो उस सबके कान लगे रहते हैं। यही बात गहलोत को देश के अन्य मुख्यमंत्रियों से अलहदा करती है। अब यह बात तय है कि गहलोत को पूरा देश और मीडिया बहुत गंभीरता से ले रहा है, यह उनके राष्ट्रीय स्तर का नेता बनने की निशानी हो सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *