सुबेसिंह यादव, पूर्व आईएएस
समाज में दुराचार के बढ़ते मामले चिंताजकन हैं। देखा जाए तो इसके लिए सभी जिम्मेदार हैं। मसलन, परिवार बच्चों को संस्कार नहीं देता। समाज ऐसे लोगों को अलग थलग नहीं करता और नजरों से नहीं गिराता। यदि ऐसा होता तो आज बलात्कार और व्यभिचार के आरोपी, अपने पक्ष में भीड़ कैसे इकट्ठी कर पाते। जन प्रतिनिधि कैसे बन पाते। सरकार यदि त्वरित कार्रवाई कर तुरंत सजा दिला पाए तो बेटियों की तरफ बुरी नजर रखने की कोई हिम्मत कैसे करेगा ?
सवाल यह है कि आखिर, इन दुराचारियों को हिम्मत कहां से मिलती है ? इसका जवाब सामने है। दरअसल, जब एक सीएम मणिपुर में तीन माह तक बलात्कार और हत्या के आरोपियों को यह कहकर एक सामान्य घटना बताने का प्रयास करता है, और निर्लज्जता से कहता है कि ऐसे बेटियों को नंगा दौड़ाने और बलात्कार की तो सैकड़ों घटनाएं हुई हैं। देश मा प्रधानमंत्री कहता है कि मणिपुर ही क्यों ऐसी घटनाएं राजस्थान, बंगाल और छत्तीसगढ़ में भी हुई है और संसद में जवाब नहीं देता। ऐसे में यूं लगने लगता है जैसे भारत टुकड़ों में बंटा हुआ देश हो।
हम भी अपने राजनैतिक चश्मे से देखकर टिप्पणी करते हैं। यदि किसी वर्ग विशेष या पार्टी विशेष का बलात्कारी है तो वह संस्कारी है। इस सारी समस्या की जड़ हम मनुष्य या नागरिक हैं। हमने अपने सोचने का तरीका बदल दिया है। पहले बहन-बेटी सारे गांव समाज की होती थी, इसलिए लोग अपराध करने से डरते थे। यदि आज भी हम अपना नजरिया बदल दें तो अपराधियों की सारी ताकत खत्म हो जाएगी। उन्हें परिवार, जाति, धर्म और सत्ता से अपराध करने की ताकत मिल रही है। राजस्थान की घटना को तो हम मानसिक विक्षिप्ता या संस्कार की कमी मान सकते हैं क्योंकि अपराधियों के पीछे सत्ता की ताकत नहीं है। तुरंत गिरफ्तारी हुई है, और निश्चित रूप से सजा भी मिलेगी। लेकिन मणिपुर की घटनाएं और देश की आन, बान और शान पहलवान बेटियों के साथ की घटनाएं, सामान्य घटनाएं नहीं हैं। इनमें समाज और सत्ता अपराधियों के साथ खड़ी है, इसलिए गिरफ्तारी तो दूर एफआईआर दर्ज करवानें के लिए सुप्रीम कोर्ट तक को हस्तक्षेप करना पड़ा।
अपराधी अपराधी होता है, उसकी कोई जाति, परिवार, धर्म और राजनैतिक दल नहीं देखा जाना चाहिए। जब तक हम यानि परिवार, जाति, धर्म और सत्ता इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे तब तक बहन बेटी क्या, आप का जीवन और संपत्ति भी सुरक्षित नहीं है।
दार्शनिक हॉब्स, लॉक और रूसो के सामाजिक समझौते के सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति ने अपनी स्वतंत्रता में कमी कर राज्य की स्थापना, इस उद्देश्य से की थी, कि व्यक्ति के परिवार और संपत्ति की रक्षा राज्य यानी सरकार करेगी। इसे कानून के शासन ‘रूल ऑफ लॉ’ और संविधान के शासन का नाम दिया गया। जब तक कानून के शासन का सम्मान नहीं होगा या कानून लागू करने में किसी आधार पर भेदभाव होगा तब तक न बहन-बेटी सुरक्षित है और ना ही आपकी जीवन और संपत्ति। ये घटनाएं हमारे देश, समाज और परिवार के लिए चेतावनी है यदि हम समय रहते नहीं चेते तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं कि हम बर्बर समाज, असभ्य समाज की तरफ बढ़ रहे हैं।
–लेखक पूर्व आईएएस हैं और सामाजिक-राजनीतिक मसलों पर बेबाकी से राय रखते हैं।