भटनेर पोस्ट डॉट कॉम.
पीलीबंगा सीट कांग्रेस के लिए चुनौती बन गई है। साल 2008 के बाद कांग्रेस को यहां सफलता नहीं मिल पाई। वर्ष 2013 में भाजपा से द्रोपदी मेघवाल और 2018 में धर्मेंद्र मोची ने कांग्रेस के विनोद गोठवाल को पराजित किया। चूंकि पिछली बार हार का अंतर मामूली था, इसलिए कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार विनोद गोठवाल को मैदान में उतारा है। 2013 में जब 85.21 फीसद वोट पड़े तो विनोद गोठवाल को द्रोपदी मेघवाल से 10 हजार 198 वोटों के अंतर से पराजित होना पड़ा था लेकिन जब साल 2018 में मतदान का लेवल डाउन हुआ यानी 83.20 फीसद मतदान रहा तो विनोद कुमार की हार का अंतर महज 300 के भीतर था। मतलब साफ है, जब वोटों को परसेंटेज गिरता है तो कांग्रेस को सुकून मिलता है। इस लिहाज से देखें तो इस बार पीलीबंगा में फिर मतदान का प्रतिशत गिरा है वो भी करीब दो फीसद। जाहिर है, इससे कांग्रेस प्रत्याशी लाभ की उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन एक बात साफ है। आरएलपी गठबंधन प्रत्याशी सुनील क्रांति को मिले वोट से भी बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशी के भाग्य का फैसला हो सकता है। अगर सुनील क्रांति ज्यादा वोट लाते हैं तो कांग्रेस को यकीनन नुकसान होगा और इससे भाजपा प्रत्याशी धर्मेंद्र मोची का भाग्य काम करेगा। अगर सुनील कम वोट लाते हैं तो विनोद गोठवाल को स्पष्ट तौर पर फायदा होगा, ऐसा माना जा रहा है।