शंकर सोनी.
राजस्थान में श्रीकरणपुर विधानसभा उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को चुनाव से पहले ही मंत्री पद की शपथ दिलाई जाने के मामले पर विवाद खड़ा हो गया। भाजपा नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 (4) का हवाला देते हुए इसको सही बताया है। भारतीय संविधान का वर्तमान अनुच्छेद 164 (4) पहले दिन से ही विवाद में रहा है । यह प्रावधान गुलामी के समय के कानून ‘भारत सरकार अधिनियम, 1935’ की धारा 10 (2) के रूप में था। जिसके अनुसार मुख्यमंत्री को लगता कि किसी विशेषज्ञ की सलाह की आवश्यकता है, जो सदस्य नहीं है, तो उसे मंत्री के रूप में लिया जा सकता था।
वर्तमान अनुच्छेद 164 (4) संविधान के प्राथमिक प्रारूप में अनुच्छेद 144 (3) था। जिस पर बहस भी हुई थी। बहस के समय प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना ने 01 जून, 1949 को इस अनुच्छेद 144 (3) पर आपत्ति करते हुए कहा कि बिना चुनाव के इस तरह किसी को मंत्री बनाया जाता है और वह व्यक्ति छह महीने में वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित होने में विफल रहता है। तो यह अलोकतांत्रिक होगा कि ऐसे व्यक्ति को मंत्री बनाया जाता है, जो जनता का प्रतिनिधि नहीं है और वयस्क मताधिकार से भी चुनाव नहीं जीत सकता। उन्होंने बहस में आगे कहा कि मैं ऐसे बाहरी व्यक्ति का विरोध करता हूं जो विधानमंडल का सदस्य नहीं है, भले ही वह कितना भी उच्च योग्य क्यों न हो।
उसे छह महीने के लिए भी मंत्री का बहुत जिम्मेदार कार्यालय संभालने के लिए बुलाया जाए। हमने जो अनुभव प्राप्त किया है, उससे हम पाते हैं कि कुछ मामलों में जहां मंत्रियों की नियुक्ति इस प्रकार की गई है, अंततः इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है।
उसे छह महीने के लिए भी मंत्री का बहुत जिम्मेदार कार्यालय संभालने के लिए बुलाया जाए। हमने जो अनुभव प्राप्त किया है, उससे हम पाते हैं कि कुछ मामलों में जहां मंत्रियों की नियुक्ति इस प्रकार की गई है, अंततः इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है।
इस तर्क को अस्वीकार करते डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने कहा एक व्यक्ति जो अन्यथा मंत्री पद संभालने के लिए सक्षम है, वह किसी निर्वाचन क्षेत्र में हार गया है। उसे उस विशेष निर्वाचन क्षेत्र की नाराजगी का कारण माना जा सकता है पर यह कोई कारण नहीं है कि इतने सक्षम को मंत्री नियुक्त करने की अनुमति नहीं दी जाए।
इस प्रावधान के बारे में आर.के. सिधवा ने एक अन्य महत्वपूर्ण आपत्ति करते हुए कहा यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 10 (2) की नकल है। मुझे नहीं लगता कि यह अब आवश्यक है। उन्होंने कहा हमने जो अनुभव प्राप्त किया है, उससे हम पाते हैं कि कुछ मामलों में जहां मंत्रियों की नियुक्ति इस प्रकार की गई है, अंततः इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। जब हमारे पास बड़े सदन होंगे जिनमें व्यापक अनुभव वाले सदस्य होंगे, और कई मामलों में विशेषज्ञ होंगे, तो मुझे लगता है कि यह प्रावधान उचित है।
संविधान प्रारूप पर बहस के समय संविधान के अनुच्छेद के खंड (4) को हटाने के लिए एक तर्क यह भी दिया गया कि जब संशोधन संविधान की चौथी अनुसूची को हटा दिया है जिस पर यह खंड निर्भर करता था, इसलिए अब इसकी आवश्यकता नहीं है। पर 14 अक्टूबर 1949 को बिना किसी बहस के संशोधन को स्वीकार कर लिया गया। हमारे सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा कई मामलों में अनुच्छेद 164 (4) के अंतर्गत चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री या मंत्री पद की नियुक्तियों को संवैधानिक माना है। हालांकि इस प्रावधान पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है।
सुरेंद्र पाल सिंह टीटी के मामले में यह नैतिकता के विरुद्ध है। भाजपा के पास पर्याप्त बहुमत है। टीटी को चुनाव के बाद भी मंत्री बनाया जा सकता था। टीटी को मंत्री पद की शपथ दिलाना आचार संहिता के भी विरुद्ध है।
राजनीतिक सोच की बात करें तो करणपुर के मतदाताओं को अच्छी तरह ज्ञान है कि भाजपा राजस्थान में अच्छे बहुमत से सरकार बना चुकी है और भाजपा प्रत्याशी को जिताना क्षेत्र के विकास के हित में रहेगा। हां, अगर राजेंद्र सिंह राठौड़ जैसे अनुभवी नेता को चुनाव हारने के बावजूद मंत्री पद की शपथ दिलाई जाकर चुनाव में पुनः उतारा जाता तो बात समझ में आ सकती थी। जो भी हो टीटी को शपथ दिलाया जाना नैतिकता के खिलाफ़ है। हो सकता है चुनाव के बाद भाजपा को शर्मीदा होना पड़े।
(लेखक जाने-माने अधिवक्ता और नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं)
राजनीतिक सोच की बात करें तो करणपुर के मतदाताओं को अच्छी तरह ज्ञान है कि भाजपा राजस्थान में अच्छे बहुमत से सरकार बना चुकी है और भाजपा प्रत्याशी को जिताना क्षेत्र के विकास के हित में रहेगा। हां, अगर राजेंद्र सिंह राठौड़ जैसे अनुभवी नेता को चुनाव हारने के बावजूद मंत्री पद की शपथ दिलाई जाकर चुनाव में पुनः उतारा जाता तो बात समझ में आ सकती थी। जो भी हो टीटी को शपथ दिलाया जाना नैतिकता के खिलाफ़ है। हो सकता है चुनाव के बाद भाजपा को शर्मीदा होना पड़े।
(लेखक जाने-माने अधिवक्ता और नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं)