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हनुमानगढ़ जिले में हरियाणा सीमा पर स्थित भादरा की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर आ गई है। पूर्व आईएएस डॉ. एसपी सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया है। उनके अनुज डॉ. सुरेश चौधरी विधायक रहे हैं। अब यह तय लग रहा है कि विधानसभा चुनाव में डॉ. एसपी सिंह की मौजूदगी सियासी समीकरण का नया अध्याय लिखेगा।
देखा जाए तो डॉ. एसपी सिंह के बीजेपी में शामिल होने से पूर्व विधायक संजीव बेनीवाल की बेचैनी में इजाफा हुआ है। वे अब तक टिकट को लेकर खुद को ‘सेफ जोन’ में मान रहे थे लेकिन जिस तरह हालात बदल रहे हैं, बेनीवाल का बेचैन होना मायने रखता है।
राजनीति पर नजर रखने वाले मानते हैं कि पूर्व आईएएस डॉ. एसपी सिंह यूं ही भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं। रिटायरमेंट के बाद वे लगातार भादरा में हैं। अब तक वे विधानसभा क्षेत्र के प्रत्येक गांवों और वार्डों में जाकर अमूमन प्रत्येक लोगों तक पहंुचने का प्रयास कर चुके हैं। इस दौरान स्थानीय समस्याओं को लगातार उठा रहे हैं। डॉ. एसपी सिंह ब्यूरोक्रेसी से आए हैं, उन्हें समस्याओं के निराकरण का तरीका बखूबी आता है। इसलिए लोग उनकी तरफ खिंचे चले आते हैं।
सवाल यह है कि पूर्व आईएएस डॉ. एसपी सिंह के बीजेपी में शामिल होने के बाद जिस तरह उनके टिकट फाइनल होने के दावे किए जा रहे हैं तो पूर्व विधायक संजीव बेनीवाल क्या करेंगे ? करीब साढ़े तीन दशक से भादरा की राजनीति को निकट से देखने वाले वेदप्रकाश शर्मा कहते हैं, ‘बेशक, डॉ. एसपी सिंह टिकट को लेकर झंडी मिलने के बाद ही बीजेपी में शामिल हुए होंगे। ऐसे में पूर्व विधायक संजीव बेनीवाल के सामने दो ही विकल्प हैं। एक तो वे ‘घर वापसी’ करें यानी कांग्रेस का दामन थामें या फिर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर किस्मत आजमाएं। इसके अलावा बेनीवाल के पास कोई और चारा नहीं है।’
राजनीतिक प्रेक्षक इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि भादरा की राजनीति में इस बार तीन चेहरे ही प्रमुख होंगे। डॉ. एसपी सिंह, संजीव बेनीवाल और विधायक बलवान पूनिया। एक संभावना यह भी है कि कांग्रेस माकपा के साथ तालमेल कर भादरा सीट बलवान पूनिया को सौंप दे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिस तरह बलवान पूनिया को ‘प्रमोट’ कर रहे हैं, उससे इस संभावना को बल मिलता है। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस भादरा क्षेत्र में आगामी दो दशक के लिए खत्म हो जाएगी। वहीं, बेनीवाल पर भरोसा करने पर कांग्रेस की पैठ मजबूत होगी, इसमें कोई संशय नहीं।
काबिलेगौर है, भादरा में जाट मतदाताओं की संख्या अधिक है। चूंकि सभी गंभीर प्रत्याशी जाट होते हैं, इसलिए जाटों का वोट बंटता है। इसके बाद मूल ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग प्रभावी भूमिका में रहता है। वहीं मुस्लिम और ब्राह्मण का वोट निर्णायक होता है। पिछले साढ़े तीन दशक की राजनीति को निकट से देखें तो मुस्लिम और ब्राह्मण मतदाताओं ने जिधर रुख किया, उसके सर पर जीत का सेहरा बंधा। भले वे पूर्व विधायक ज्ञान सिंह चौधरी हों या फिर डॉ. सुरेश चौधरी, संजीव बेनीवाल या फिर बलवान पूनिया। प्रेक्षकों की मानें तो इस वक्त तक मुस्लिम वर्ग विधायक बलवान पूनिया के साथ दिखता है, अगर इसमें कोई परिवर्तन होता है तो हालात बदल सकते हैं। वैसे ब्राह्मण और वैश्य बीजेपी के स्वभाविक वोटर्स माने जाते हैं। लेकिन भादरा की राजनीति में यह हर बार लागू हो, मुमकिन नहीं। वहां के वोटर्स पार्टी से ज्यादा व्यक्ति को महत्व देते हैं। ऐसे में आगामी चुनाव बेहद दिलचस्प होगा, इसमें दो राय नहीं।