पूर्व उप राष्ट्रपति व राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे भैरोसिंह शेखावत का दोहिता होना ही अभिमन्यु सिंह राजवी का परिचय नहीं है। अभिमन्यु छोटी उम्र में परिपक्व राजनीति करते हैं, एक सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर। सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। चाहने वालों की लंबी फेहरिस्त है। चीफ एडिटर गोपाल झा से लंबी बातचीत में अभिमन्यु सिंह राजवी ने विभिन्न मसलों पर खुलकर जवाब दिए। प्रस्तुत है संपादित अंश
इन दिनों खास क्या कर रहे हैं ?
-देखिए, खास तो कुछ नहीं कर रहे हैं। जो कर रहे हैं सो बस कर रहे हैं। और वह खास है या नहीं है, यह आपलोगों पर निर्भर है कि आप किस तरह देखते हैं। मैं उस पार्टी से जुड़ा हुआ हैं जिसे हमारे परिवार ने परिवारवाद केे खिलाफ खड़ा किया। इसलिए उस परिवार के संस्थापक सदस्य के परिवार से होने के बावजूद पार्टी का एक गौरवान्वित कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रहा हूं। और हां, उसी में अतिसंतुष्ट भी हूं।
क्या इस बार खुद अभिमन्यु चुनावी चक्रव्यूह को भेदने के लिए मैदान में उतरेंगे ?
-देेखिए, पार्टी द्वारा 2018 में भी बहुत कम उम्र का होने के बावजूद मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कहा गया था। लेकिन उस वक्त भी यह निर्णय हुआ कि पिताजी चुनाव लड़ें। मुझे खुशी हुई कि जिस तरह वो नेतृत्व कर सकते थे, विपक्ष की भूमिका निभा सकते थे, वह मैं नहीं कर पाता। मुझे खुशी है पार्टी ने अच्छा निर्णय लिया था। रही बात आगे की तो मैं स्पष्ट कहता हूं कि पार्टी नेतृत्व जो भी निर्णय लेगा, हम उसे शिरोधार्य करेंगे।
आप सकारात्मकता से लबरेज हैं। इतनी कम उम्र में व्यापक परिपक्वता कहां से आ गई ?
-मैं मानता हूं कि जब आप बचपन से सत्ता का आना और जाना दोनों देख लेते हैं। सत्ता के आने से लोग जुड़ते हैं और सत्ता के जाने से लोग पीठ दिखा देते हैं। ये चीज अगर कोई बचपन में देख लेता है तो उसके बाद उसमें सत्ता का नशा नहीं चढ़ता। और उससे बड़ी बात मैं यह मानता हूं कि स्वर्गवासी नाना-नानी ने जिस तरह से हमें बड़ा किया, पाला, उसमें हमें कभी सत्ता का नशा नहीं होने दिया। दूसरी बात, मैं राजनीति में तब आया आदरणीय भैरोसिंह शेखावत का स्वर्गवास हो गया था तो मैंने एक साधारण कार्यकर्ता के तौर पर निचले स्तर पर काम किया। उसके कारण मैं मानता हूं कि मेरे अंदर जो कुछ भी खूबी आप मानते हैं, इसी कारण आ पाई, मैं यही मानता हूं।
एक वक्त भाजपा को भैरोसिंह जनता पार्टी भी कहते थे। तब की और आज की भाजपा में कितना अंतर महसूस करते हैं ?
-जी, अंतर तो स्पष्ट तौर पर है क्योंकि समय के साथ परिवर्तन हर पार्टी में आता है। भारतीय जनता पार्टी भी इससे अलग नहीं। आदरणीय शेखावत साहब की बात करें तो जब उनका नेतृत्व था तो पार्टी अंकुरित हो रही थी, पार्टी धीरे-धीरे बढ़ रही थी। हमें 10, 15, 30 सीटें आती थीं राजस्थान भर में। और आज का समय है जब हम 163 का रिकार्ड ऑलरेडी पार कर चुके हैं। तो निश्चित तौर पर वो पार्टी जिसे लोग कहते कि यह कभी सत्ता में आ ही नहीं सकती और आज की पार्टी जिसे लोग कहते हैं कि इसे सत्ता से जाना बड़ा चमत्कार होगा तो इसमें बहुत अंतर आता है। शायद यही अंतर है। फिर भी मैं कहूंगा कि राजनीतिक गिरावट हर राजनीतिक दल में आई है, कहीं न कहीं भाजपा के अंदर संस्कारों का, चाहेे वह संघ के संस्कार हों, उन संस्कारों के कारण हमारी पार्टी में उतनी तेजी से निम्नता नहीं आई जितनी बाकी पार्टियां गईं। और इस बात को मैं महसूस भी करता हूं।
2023 की तैयारी है और भाजपा में सीएम चेहरा बढ़ता ही जा रहा। इस समस्या का कारण और निवारण क्या हो सकता है आपके हिसाब से।
-देखिए, कारण जैसा कि मैंने आपको बताया कि सबको पता है कि भाजपा सरकार बनाएगी, इसलिए हमारे यहां शायद दावेदारों की संख्या बढ़ रही है, जैसा आपलोग फरमा रहे हैं। लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं का सौभाग्य है कि हर कोई खुद को प्रोजेक्ट करने या आगे बढ़ने का रास्ता देख रहा है, यही भाजपा की खासियत भी है। और मैं इसका फायदा मानता हूं। हमारी पार्टी में जितने बड़े नेता हैं, हर क्षेत्र से हैं तो उसका फायदा पार्टी को भी मिलता है। अगर आप कांग्रेस के अंदर देखेंगे तो जब तक अशोक गहलोत साहब हैं तब तक मेरे हिसाब से दूसरा आदमी सपने भी नहीं देख सकता कि वह नेतृत्व कर सकता है। ऐसा करके सचिन पायलट साहब ने देख लिया, सीपी जोशी साहब ने देख लिया, उनके पहले परसराम मदेरणा साहब ने देख लिया। तो मुख्यमंत्री पद का दावेदार होना इस बात का परिचायक है कि पार्टी में खूब सारे बड़े नेता हैं जो नेतृत्व करनेे का स्कोप भी रखते हैं और दूसरी तरफ वो पार्टी है जिसमें कोई नेतृत्व करने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि उसे पता है कि एक व्यक्ति है जो एक परिवार का कृपापात्र है और वो जब तक बैठे हैं कोई नजर उठाएगा तो उसका दमन कर दिया जाएगा। ऐसे में भाजपा में जो हो रहा है वह लोकतांत्रिक तरीके से सही है।
अपने नाना भैरोसिंह शेखावत की वह खासियत जो आप भी अपनाना चाहते हैं।
-मैं यही कहूंगा झा साहब कि उनकी विशेषता तो आज भी हर दिन नई-नई विशेषता पता चलती है। उनसे बिछड़े 12 साल हो गए। लेकिन इन बरसों में उनका नाम कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। लोगों में उनके व्यक्तित्व के प्रति, जीवन के प्रति, उनकी कहानियों के प्रति रुचि बढ़ती जा रही है, आज भी राजस्थान के गांवों में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है तो यह विशेषता कम है क्या ? मुझे नहीं लगता इससे बड़ी विशेषता कुछ हो सकती है।